कागज में ही करोड़पति बन गया रिक्शा चालक, आयकर विभाग का नोटिस देखकर हुए हैरान

Update: 2021-10-24 13:55 GMT

यूपी। क्या आप यकीन करेंगे कि एक व्यक्ति जो रिक्शा चलाकर अपनी गुजर बसर करता हो, उसकी आयकर देनदारी 3.47 करोड़ रुपये है। स्वयं रिक्शा चालक प्रताप सिंह को भी आयकर के नोटिस को देख यकीन नहीं हुआ। रिक्शे वाले के संपर्क करने पर आयकर अधिकारियों को भी जालसाजी का अंदेशा हुआ। फिलहाल थाना हाईवे में मामले की तहरीर दी गई है। इस मामले को बोगस बिल के मास्टरमाइंड की करतूत माना जा रहा है। बैंक में खाता खोलने के इच्छुक प्रताप सिंह ने लगभग ढाई साल पहले अपने घर के पास जन सुविधा केन्द्र पर जाकर पैन के लिए आवेदन किया। केन्द्र संचालक ने कहा कि एक महीने में उसका कार्ड आ जाएगा। लेकिन नहीं आया। रिकार्ड चेक किया तो पता चला कि कोरियर कंपनी ने यह कार्ड संजय सिंह नाम के व्यक्ति साइबर कैफे संचालक को दे दिया है। जबकि कोरियर के नियम के अनुसार यह पैन कार्ड स्वयं धारक या उसके मान्य पते पर ही डिलीवर होना था। रिक्शा चालक ने चक्कर काटे तो उसको पैन कार्ड का कलर प्रिंट दे दिया गया। रिक्शा चालक इस बात से बेखबर था कि उसके नाम से करोड़ों रुपये के व्यवसाय चल रहे हैं।

जिन शातिरों ने रिक्शा चालक का असली पैन कार्ड उड़ा लिया था। उन्होंने उसके नाम से जीएसटी में पंजीकरण कराया। लगभग 43.44 करोड़ रुपये का टर्नओवर एक ही साल (2018-2019) में कर डाला। आयकर एवं जीएसटी के बीच हुए एमओयू के कारण दोनों विभाग एक दूसरे से डाटा शेयरिंग करते हैं। इसी डाटा शेयरिंग की पड़ताल में आयकर के प्रोजेक्ट इंसाइट के सॉफ्टवेयर को यह केस संदिग्ध लगा। क्योंकि इसमें भारी भरकम टर्नओवर के बावजूद रिटर्न दाखिल नहीं किया जा रहा था। फरवरी 2020 में पैन कार्ड धारक को नोटिस भेज दिया गया। नोटिस दर नोटिस भेजे गए। जो कि संभवत: रिक्शा चालक तक पहुंचे ही नहीं।

पैन कार्ड धारक के सामने न आने के बाद विभाग ने आयकर नियमों के अनुसार मामले की स्क्रूटनी की। जीएसटी के 43.44 करोड़ रुपये के टर्नओवर को आधार बनाया। इस राशि पर आठ फीसदी की दर मुनाफा माना गया। सरचार्ज, टैक्स, पेनल्टी सहित अन्य सभी को जोड़ते हुए देय टैक्स की राशि 3.47 करोड़ रुपये पहुंच गई। रिक्शा चालक को अंतिम रूप से अपनी बात रखने एवं देय टैक्स का चिठ्ठा हाल में उसे फिर भेज दिया गया। यह मिलते ही रिक्शा चालक प्रताप सिंह घबरा गया और विभाग पहुंचा। फर्जी फर्म बनाकर बोगस बिल की बिक्री करने वाले मास्टरमाइंड कई स्तर पर काम करते हैं। एक तरीका तो भोले भाले लोगों को छोटी मोटी रकम का लालच देकर या फिर गुमराह करके उनके पहचान पत्र, आधार कार्ड, पैन कार्ड लेने का है। दूसरा तरीका इनकी डाक से आने वाले ऐसे प्रपत्र हथियाने का है। प्रयोग फर्जी फर्म का जीएसटी में पंजीकरण कराने एवं बैंक खाता खुलवाने में किया जाता है। मथुरा वाले मामले में कोरियर डिलीवरी वाले ने चंद रुपयों के लिए शातिर को पैन कार्ड थमा दिया।

सामान्य सी बात है कि कोई भी बिजनेस रातों रात नहीं चल जाता। इसके लिए मेहनत के साथ बड़ी पूंजी की भी आवश्यकता होती है। लेकिन उक्त मामले में रजिस्ट्रेशन के पहले ही साल 43.44 करोड़ रुपये का टर्नओवर हो गया। जीएसटी अधिकारी कहते हैं कि इस तरह के अब तक जो भी मामले पकड़ में आए हैं, उनमें कभी कोई सप्लाई ही नहीं दी गई। सिर्फ मांग के अनुसार बिल बेचे गए। टैक्स जमा किए बगैर कागजों में ही आईटीसी की एंट्री आगे बढ़ा दी। बिल जारीकर्ता हाथ झाड़ कर अलग हो गया। लगभग दो दशक पहले यूरोप में ऐसे ही फर्जीवाड़े पकड़े गए थे। इसमें एक ही आदमी ने कइयों बोगस कंपनी बना डाली। इनका अस्तित्व सिर्फ कागजों में ही था। वह इन बोगस फर्मों से बिक्री करता था। थोड़ी बहुत नहीं, बहुत ज्यादा क्रेता तो इनपुट क्रेडिट का लाभ ले लेता था परन्तु विक्रेता टैक्स नहीं चुकाता था। कुछ समय बाद विक्रेता गायब हो जाता था। फर्म बंद कर देता था। जब टैक्स की देयता को सीढ़ी दर सीढ़ी चेक किया जाता था, तब कहानी खुलती थी। ऐसे फर्जीवाड़े को केरोउसल फ्रॉड नाम दिया गया।

Tags:    

Similar News

-->