BHU में प्रेमचंद की 87वीं पुण्यतिथि पर 'पुलिया प्रसंग' परिचर्चा का आयोजन

Update: 2023-10-08 15:22 GMT
वाराणसी। कथा सम्राट प्रेमचंद की 87वीं पुण्यतिथि पर बीएचयू परिसर की आई. आई. टी. पुलिया पर रविवासरीय संवाद के अंतर्गत 'पुलिया प्रसंग' के सदस्यों द्वारा 'प्रेमचंद का पथ' विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने की। अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि प्रेमचंद का पथ वास्तव में साहित्य का पथ है। जिनकी तरफ सत्ता, संरचना और व्यवस्था की दृष्टि नहीं जाती उन्हें स्वर प्रदान करना ही साहित्य का लक्ष्य होता है और प्रेमचंद उसी पथ के हिमायती हैं। प्रेमचंद का लक्ष्य उपेक्षितों को अपेक्षित दाय प्रदान करना था। प्रेमचंद का पथ मुख्य रूप से श्रम का पथ है और प्रेमचंद का मानना है कि यही पथ राष्ट्रीय निर्माण का पथ है। श्रम में समानता, स्वाभिमान और कृतज्ञता का बोध सम्मिलित है तथा इसे समझना ही प्रेमचंद के पथ को समझना है। प्रेमचंद स्वयं को एक मजदूर ही मानते थे जो शब्दों के माध्यम से श्रम का महत्व स्थापित करते हैं जिसमें श्रमजीवी शक्तियों की पक्षधरता का बोध सम्मिलित है।
प्रो. शुक्ल ने कहा कि प्रेमचंद का पथ पाखंड के प्रतिषेध का पक्ष है और इसके उदाहरण में उनका वह साहित्य है जिसमें वे सामंतवादी व्यवस्था के पाखंड को अनावृत करते हैं। उन्होंने प्रेमचंद को प्रेम का पक्षधर रचनाकार भी बताया। मुख्य वक्त्तव्य देते हुए युवा आलोचक डॉ. विंध्याचल यादव ने कहा कि प्रेमचंद का विश्वास समाज के उपेक्षित वर्ग में है जो गिरी हालत में भी अपना ईमान नहीं छोड़ता और इसी वर्ग के पक्ष में प्रेमचंद खड़े होते हैं। प्रेमचंद वैचारिक रूप से अपनी साहित्यिक यात्रा में बदलाव करते हैं और समय के साथ उनकी जन प्रतिबद्धता बढ़ती जाती है। तमाम वैचारिक घटाटोपों के बीच प्रेमचंद अपना रास्ता बनाते हैं और यह तय करते हैं कि उन्हें किस वर्ग के पक्ष में लिखना है, किसे आवाज़ प्रदान करनी है। प्रेमचंद ने अपने समय मे राष्ट्रीय निर्माण को स्वर प्रदान किया और साथ ही शोषणकारी सामंतवादी व्यवस्था की निरंतर आलोचना भी की।
भौतिक विज्ञान विभाग, बीएचयू में आचार्य प्रो. देवेंद्र मिश्र ने कहा कि प्रेमचंद समाज के दरकिनार किये गए लोगों की बात करते हैं, प्रेमचंद अपने साहित्य में समाज के उपेक्षित वर्ग के संघर्षों की बात करते हैं। शोध छात्र अमित कुमार ने कहा कि प्रेमचंद ने साहित्य के माध्यम से जीवन को एक नई दृष्टि से देखा जो किक जीवन को देखने का यथार्थवादी नजरिया था। शोध छात्र शिवम यादव ने कहा कि प्रेमचंद के वैचारिकी के केंद्र में समाज का दलित, शोषित, उपेक्षित जन है। कार्यक्रम का संचालन शोध छात्र आलोक गुप्ता ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन अक्षत पाण्डेय ने किया।
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