आगरा न्यूज़: आगरा में हर दस घंटे में मानवाधिकार उल्लंघन का एक मामला होता है. पुलिस के खिलाफ शिकायत की जाती है. मुकदमे लिखाए जाते हैं मगर नतीजा शून्य ही निकलता है. हिरासत में मौत जैसे गंभीर मामले की विवेचना में आरोपित पुलिस कर्मियों को क्लीनचिट मिल जाती है. पीड़ित परिवार पर इतना दबाव बना दिया जाता है कि वे आवाज उठाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता. हर साल दस दिसंबर को मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है. आगरा में 44 पुलिस थाने हैं. एक जनवरी 2022 से 30 नवंबर 2022 तक 334 दिन में मानवाधिकार उल्लंघन की 780 शिकायतें हुईं. यानि हर दस घंटे में एक मामला सामने आया.
सफाई कर्मचारी अरुण वाल्मीकि की मौत: अक्तूबर 2021 में जगदीशपुरा पुलिस की हिरासत में सफाई कर्मचारी अरुण वाल्मीकि की मौत हुई थी. पोस्टमार्टम हुआ. शरीर पर चोट के निशान थे मगर पोस्टमार्टम रिपोर्ट हैरान कर देने वाली थी. मौत की वजह हार्ट अटैक आई. घरवालों के आरोपों को पुलिस ने सिरे से खारिज कर दिया. हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ. विवेचना दूसरे जनपद से हुई. पुलिस ने अंतिम आख्या लगा दी.
पुलिस हिरासत में मौत पर क्लीनचिट: मारपीट, अवैध हिरासत, फर्जी जेल भेजने जैसे मामले तो मामूली हैं. हिरासत में मौत जैसे गंभीर मामले में फंसी पुलिस को क्लीनचिट मिल जाती है. पुलिस यह सब कैसे करती है किसी से छिपा नहीं है. आरोपित पुलिस कर्मी होते हैं और पुलिस वाले ही उनके खिलाफ दर्ज मुकदमे की विवेचना करते हैं. पीड़ित चीखते रह जाते हैं.
531 शिकायतें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और 249 शिकायतें उत्तर प्रदेश राज्य मानव अधिकार आयोग में दर्ज की गईं. सभी शिकायतें पुलिस के खिलाफ हैं. किसी ने पुलिस पर अवैध हिरासत में रखने का तो किसी ने बेरहमी से पिटाई का आरोप लगाया है. इतना ही नहीं कुछ लोगों ने पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं. चंद मामलों में ही आरोपित पुलिस कर्मियों पर कार्रवाई हो सकी.