Pitru Paksha: पितृपक्ष में संतान पूर्वजों को याद कर श्राद्ध, पितरो को मिलेगा मोक्ष

Update: 2024-09-18 07:37 GMT
Pitru Paksha कानपुर । धर्मशास्त्र अनुसार माता-पिता का आशीर्वाद संतान के साथ हमेशा रहता है। जीवित माता-पिता संतान को प्रत्यक्ष आशीर्वाद देते हैं और दिवंगत आत्माऐं पितरों के रूप में कम से कम तीन पीड़ी तक अपनी संतानों का अप्रत्यक्ष मार्गदर्शन एवं सहायता करती हैं। पितृपक्ष में संतान जब अपने पूर्वजों को याद कर श्राद्ध, तर्पण आदि से संतुष्ट करता है तो पूर्वजों की कृपा बरसती है। आत्मा अजर-अमर है, शरीर के न रहने पर भी
आत्मा का अस्तित्व
रहता है।
संस्थापक अध्यक्ष ज्योतिष सेवा संस्थान के आचार्य पवन तिवारी ने बताया कि आत्मा कभी न नष्ट होने वाली उर्जा है, जो केवल मोक्ष प्राप्त होने पर ईश्वर की अनन्त उर्जा में समाहित हो जाती है। विज्ञान अनुसार उर्जा हमेशा संरक्षित रहती है, यह एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित हो जाती है। इसीलिए धर्मशास्त्र में कहा गया है, मृत्यु अन्त नहीं प्रारम्भ है। जीवित और मृत भेद मात्र स्थूल जगत तक ही सीमित रहता है, सूक्ष्म जगत में सभी जीवित हैं। प्रत्येक शिशु का जुड़ाव उसके पूर्वजों से बना रहता है।
 क्रोमोजोम्स के माध्यम से वैज्ञानिकों ने प्रमाणित किया है कि नवजात शिशु में कुछ गुण दादा व परदादा के व कुछ गुण नानामह व नाना के समाहित रहते हैं। जैनैटिक साइन्स पर शोधकर्ताओं के अनुसार आज भी हम अपने पूर्वजों से जुड़े हुए है, पितरो के डी.एन.ए. का विस्तार ही हमारा अस्तित्व है। वैज्ञानिकों ने पितरों के सूक्ष्म शरीर को ‘एक्टोप्लाज़्म’ की संज्ञा दी है। पितरों के निमित्त श्राद्ध आदि कर्म करने से पितरों के साथ-साथ स्वयं का भी कल्याण होता है।
संतान का अंश पितरों तक
कुछ लोग कभी-कभी यह प्रश्न करते हैं कि श्राद्ध के निमित्त किया गया दान-पुण्य दिवगंत पूर्वज यानि पितरों को कैसे प्राप्त होता है। श्राद्ध के निमित्त श्रद्धापूर्वक किया गया दान-पुण्य, भोजन का सूक्ष्म अंश परिणित होकर उसी अनुपात व मात्रा में पितरों को प्राप्त होता है, चाहें पितृगण किसी भी योनि में हों।
इसे ऐसे समझना चाहिए जैसे विदेश से कोई हमें डॉलर, पॉण्ड, दिनार इत्यादि कोई भी करैंसी भेजेगा, तो भारत में पोस्ट ऑफिस, बैंक आदि उस मूल्य के समकक्ष का भारतीय रूपया हमें प्रदान करेगा। पितृपक्ष के दौरान पितरों के निमित्त जो भी श्राद्ध कर्म, पिण्ड दान आदि किया जाता है, वह उन तक पहुंचता है। पितृपक्ष में जो भी हम पितरों के निमित्त निकालते हैं, वह उसे सूक्ष्म रूप में आकर ग्रहण करते हैं क्योंकि श्राद्धपक्ष में पितृगण अपने-अपने परिजनों के यहां बिना आह्वान किए पहुंचते हैं और पंद्रह दिनों तक वहीं विद्यमान रहते हैं।
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