जान हथेली पर रखकर सफर करते हैं लोग, बना पीपे का पुल बंद

Update: 2022-07-31 14:02 GMT

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के गऊ घाट के पास बना पीपे वाला पुल आज़ादी के पहले से यहां मौजूद है. लेकिन हर साल बरसात के मौसम में इसे हटा दिया जाता है. इस साल भी बरसात का मौसम आते ही गोमती का जलस्तर बढ़ने के कारण इस पुल को हटा दिया गया है. इस पुल का नाम पीपे वाला पुल इसलिए है क्योंकि इस पुल को बनाने के लिए लोहे के बड़े बड़े पीपों का इस्तेमाल किया गया है, जो गोमती नदी में तैरते रहते हैं. उन पीपों को आपस मे बांध कर उन पर लकड़ी की बड़ी- बड़ी बल्ली डाली गई है जिसपर से रोजाना हजारों की संख्या में लोगों का आना जाना होता है.

जर्जर हालत में पुल

गोमती पर बना यह पुल पूरी तरह से जर्जर हो चुका है, इसके बावजूद भी साल के 8 महीने इस पुल का प्रयोग किया जाता है. लोग बताते हैं कि ऐसा करना उनकी मजबूरी है क्योंकि अगर वो इस पुल की बजाय पक्के पुल से निकलें तो लगभग 14 किलोमीटर की दूरी बढ़ जाती है. इसलिए समय बचाने के लिए लोग खतरों से भरे इस पुल का उपयोग करते हैं.

नावों की हालत भी खस्ताहाल

गौरतलब है कि प्रत्येक वर्ष बरसात के मौसम में गोमती नदी का जल स्तर बढ़ने के बाद इस पुल को बंद कर दिया जाता है. पीपे पर पड़ी लकड़ियों को भी हटा दिया जाता है. जिसके बाद आने जाने के लिए लोगों को नाव का सहारा लेना पड़ता है. नाव भी ऐसी की जिसपर बैठते ही आप भगवान को याद करने पर मजबूर हो जाएंगे, क्योंकि इन नावों की हालत भी बहुत जर्जर है, जो रस्सी के सहारे चलाई जाती हैं. एक छोर से दूसरे छोर के हर सफर में 15 से 20 लोग इस नाव की सवारी करते दिखाई देते हैं. लोगों के साथ उनकी साइकिलें, छोटे बच्चे यहां तक कि कई बार उनके मवेशी भी सवार होते हैं.

डर के साये में होता है सफर

यहां सफर करने वाले लोगों का कहना है की नाव से नदी पार करते समय उन्हें डर भी लगता है पर मजबूरी के चलते उन्हें इसका इस्तेमाल करना पड़ता है. बरसात के मौसम में किसी बीमारी के कारण अगर कोई आपात स्थिति आ जाए तो गऊ घाट के दूसरे छोर पर स्थित दाउद नगर के लोग बस एक नाव के सहारे ही मूवमेंट कर सकते हैं. इतना ही नहीं पिछले कुछ सालों में नदी पार करते समय कई दुर्घटनाएं भी हो चुकी हैं.


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