उत्तरप्रदेश। सन् 1984 में भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान के विरूद्ध शियाचिन ग्लेशियर पर चलाए गए ऑपरेशन मेघदूत के नायक रहे सेंकेंड लेफ्टिनेंट प्रदीप सिंह पुण्डीर की शहादत को 38 साल बाद एक बार फिर सम्मानित किया। केंद्र सरकार के निर्देश पर चक जीरो रोड उनके आवास पर एक सम्मान समारोह आयोजित किया गया। जिसमें मुख्य अतिथि प्रयागराज की महापौर श्रीमती अभिलाषा गुप्ता नंदी, 17वीं बटालियन एनसीसी के कर्नल एस वेंकटेश और एसएम आनंद बल्लभ ने शहीद प्रदीप सिंह पुण्डीर के छोटे भाई नीरज सिंह पुण्डीर को शौर्य स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम में शामिल उनके बाल सखा और उनके मित्रों ने उनसे जुडे कई संस्मरण सुनाकर एक बार फिर उनकी याद ताजा कर दी।
आजादी के अमृत महोत्सव पर शहीदों को शत शत नमन कार्यक्रम के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनसीसी को यह कार्य दिया है कि वे अमर शहीदों के परिवार से सम्पर्क कर उन्हें यह विश्वास दिलाएं कि देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले अमर शहीदों के वीर परिवारों के साथ पूरा देश खड़ा है। इस कार्यक्रम का यह भी उद्देश्य है कि अमर शहीदों की शहादत, शौर्य और पराक्रम को उनके क्षेत्र के युवाओं तक पहुंचाया जाए। इसी कार्यक्रम के तहत अमर शहीद सेंकेड लेफ्टिनेंट प्रदीप सिंह पुण्डीर की शहादत को याद किया गया। कार्यक्रम की शुरूआत प्रयागराज की महापौर श्रीमती अभिलाषा गुप्ता नंदी, 17वीं बटालियन एनसीसी के कर्नल एस वेंकटेश और एसएम आनंद बल्लभ ने दीप प्रज्जवलित किया और शहीद प्रदीप सिंह पुण्डीर के चित्र पर माल्यार्पण करके उन्हें श्रद्धांजलि दी। इसके बाद कार्यक्रम मे आए सभी लोगों ने अमर शहीद के चित्र पर श्रद्धासुमन अर्पित किया। इसके बाद एनसीसी कैडेट्स ने देशभक्ति गीत ए मेरे वतन के लोगों गाकर सभी को भावुक कर दिया।
कार्यक्रम में संबोधन के दौरान महापौर श्रीमती अभिलाषा गुप्ता नंदी ने अमर शहीद जवानों को नमन करते हुए उन्हें सम्मान देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि देश में रहने वाले हर व्यक्ति की पहचान राष्ट्र से है, राष्ट्र है तो हम हैं। इसी लिए हमें भी अपने बच्चों में देश के प्रति समर्पण भाव को भी देखना चाहिए और अपने बच्चों को सेना में जाकर देश की सेवा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो देश की सुरक्षा कौन करेगा और देश असुरक्षित हो जाएगा। महापौर ने कहा कि हमारे आसपास अभी बहुत से ऐसे लोग होंगे जिन्होंने देश के लिए अपना कुछ न कुछ न्योछावर किया होगा और ऐसे लोग अभी सबके सामने नही आए है। उन्होंने ऐसे लोगो को खोजने को कहा जिससे उनका भी सम्मान किया जा सके। कार्यक्रम का संचालन कर रहे क्षेत्र के पार्षद नेम यादव ने क्षेत्र का नाम शहीद के नाम पर रखने और मानसरोवर चौराहे पर उनकी प्रतिमा लगाने की मांग की। जिसपर महापौर ने एक प्रस्ताव बनाकर देने को कहा।
मेजर का बचपन से ही सेना में जाने का सपना था :
शहीद प्रदीप सिंह पुण्डीर के बाल सखा अभय अवस्थी ने कहा कि वे बचपन से ही अनुशासित थे। इस कारण उन्हें हम सभी लोग मेजर कहकर बुलाते थे। व्यापारिक क्षेत्र में रहने के बावजूद वे अपना हर काम समय पर किया करते थे। उनके नस-नस में एक सैनिक जैसा व्यवहार था। बचपन से ही उन्हें सेना में जाने का सपना था।
1981 में सेना में हुए थे कमीशन्ड :
अमर शहीद प्रदीप सिंह पुण्डीर का जन्म 5 जुलाई को हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमएससी तक की पढाई थी। उसके बाद 1981 में सेना में कमीशन्ड हुए और ओटीए चेन्नई से प्रशिक्षण पूरा किया। उनकी कर्मठता और वीरता को देखते हुए उनकी पहली पोस्टिंग विश्व के सबसे कठिन और उंचे युद्ध क्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर में ऑपरेशन मेघदूत में अक्टूबर 1982 को 19 कुमाउं रेजिमेंट में किया गया। वहां पर सीमाओं पर दुश्मन के साथ मौसम का भी बड़ा संघर्ष था। परन्तु उन्होंने अपने शौर्य, पराक्रम और अपनी बहादुरी से अपने कर्तव्यों को बखूबी निभाया।
ऑपरेशन मेघदूत में दिया अपना सर्वोच्च बलिदान :
मई 1984 में बटालियन लीडर लफ्टिनेंट प्रदीप सिंह पुण्डीर के नेतृत्व मे 19 सैनिकों की एक टीम ऑपरेशन मेघदूत के लिए निकली थी। 29 मई को भारी हिमस्खलन से पूरी बटालियन दब गई थी। जिसमे मेघदूत दल का नेतृत्व कर रहे सेंकेंड लेफ्टिनेंट पीएस पुण्डीर समेत भारतीय सेना के 18 जवान शहीद हो गए थे। 14 जवानों के शव उसी समय मिल गए थे, जबकि चार शव लापता थे। जिसके बाद सभी को शहीद घोषित कर दिया गया था। पुण्डीर का शव 74 दिनों के बाद मिली थी।
सेना पदक से किया जा चुका है सम्मानित :
अमर शहीद प्रदीप सिंह पुण्डीर को इससे पहले 17 दिसम्बर 1999 में सेना के सेना पदक से सम्मानित किया जा चुका है। यह सम्मान शहीद प्रदीप के भाई नीरज सिंह पुण्डीर को जनरल वेद मलिक ने दिया था। इसके अलावा सेना द्वारा प्रदीप सिंह पुण्डीर की शहादत स्थल को पुण्डीर पोस्ट का नाम दिया गया है। उनकी शहादत के 25 साल पूरे होने पर उन्हें कुमाउ रेजिमेंट की ओर से भी सम्मानित किया जा चुका है।