ओमिक्रॉन का प्रकोप: इन चुनावी राज्यों में रैलियों पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल
सुप्रीम कोर्ट
देश में ओमिक्रॉन के बढ़ते मामलों के बीच अगले वर्ष देश में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट एक याचिका दायर की गई है। इसमें मांग की गई है कि ओमिक्रॉन के बढ़ते खतरे को देखते हुए पांच राज्यों में होने वाले चुनावों के मद्देनजर वहां होने वाली राजनीतिक रैलियों पर रोक लगाई जाए।
याचिका में चुनाव आयोग को यह निर्देश देने की मांग की गई है कि वो तमाम राजनीतिक दलों को ओमिक्रॉन के खतरे को देखते हुए डिजिटल रैली करने को लेकर आदेश जारी करे। अधिवक्ता विशाल तिवारी ने अपनी जनहित याचिका में कहा है कि चुनाव आयोग की ओर से राजनीतिक रैलियों को लेकर जो आदेश दिया गया है, उसका पालन नहीं हो रहा है। यह याचिका पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर दाखिल की गई है। इन पांच राज्यों में फरवरी-मार्च 2022 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। दरअसल, चुनाव के मद्देनजर विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा बड़े पैमाने पर सार्वजनिक प्रचार व जुलूस निकाले का काम जोरों पर है।
याचिकाकर्ता के अनुसार हाल ही ओमिक्रॉन वैरिएंट फिलहाल एक बड़ी चिंता बन गई है। ऐसे में यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि वर्तमान प्रचार के साथ-साथ आगामी चुनाव के दौरान सार्वजनिक भागीदारी से कोविड-19 संक्रमण में वृद्धि न हो।
देशभर के हाईकोर्टों में समान न्यायिक संहिता लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका
सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर करके देशभर के हाईकोर्ट को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि वे मामलों का पंजीकरण करने और समान न्यायिक शब्दावली, वाक्यांशों एवं संक्षिप्त शब्दों का उपयोग करने के लिए समान संहिता अपनाने की दिशा में उचित कदम उठाएं। वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने अपनी याचिका में विधि आयोग को यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया है कि वह न्यायिक शब्दावली, वाक्यांशों, संक्षिप्त शब्दों, केस दर्ज करने की प्रक्रिया और अदालत के शुल्क में एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए हाईकोर्टों के साथ विचार-विमर्श करके एक रिपोर्ट तैयार करे।
याचिका में कहा गया है, विभिन्न मामलों में अलग-अलग हाईकोर्ट जो शब्दावली इस्तेमाल करते हैं, उसमें एकरूपता नहीं है। इससे न केवल आम लोगों को, बल्कि कई मामलों में वकीलों एवं प्राधिकारियों को भी असुविधा होती है। इसमें कहा गया है कि एक ही प्रकार के मामलों में उपयोग की जाने वाली शब्दावली ही अलग नहीं है, बल्कि इन शब्दावलियों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले संक्षिप्त शब्द भी अलग-अलग हैं। याचिका में कहा गया है कि देशभर के 25 हाईकोर्टों में अलग-अलग केसों के लिए शब्दावलियां भी अलग-अलग हैं।