कुपोषण के शिकार बच्चे की एनआरसी ने बचा ली जान, गरीब मां ने सरकार का आभार जताया

Update: 2022-10-20 11:53 GMT
वाराणसी। कुपोषण के शिकार बच्चे की एनआरसी (पोषण एवं पुनर्वास केन्द्र) में इलाज के बाद जान बचने पर मजदूर पिता ने सरकार का आभार जताया है। धूरीपुर-हरहुआ निवासी रामललित पेशे से मजदूर है। रामललित की पत्नी निशा बताती हैं कि 11 माह का उनका बेटा शीनू हमेशा बीमार ही रहता था। उसे कुछ भी नहीं पचता था और शरीर सूखता जा रहा था। हालत बिगड़ी तो गांव में इलाज कर रहे डाक्टर ने भी जवाब दे दिया। हम लोग रोने लगे, तभी वहां पहुंची आशा दीदी ने उन्हें सहारा दिया। सरकारी अस्पताल ले गयीं तब पता चला कि शीनू अति कुपोषित (सैम) हो चुका है। आशा दीदी ने ही शीनू को एनआरसी में भर्ती कराया। एनआरसी की ही देन है कि अब शीनू पूरी तरह स्वस्थ है। यहां बच्चे के भर्ती रहने के दौरान ही हमने पोषक आहारों के महत्व के बारे में भी जाना। कुपोषण क्या होती है, इससे हम पूरी तरह अनजान थे। हमें यह भी नहीं पता था कि इससे हमारे बच्चे की जान भी खतरे में पड़ सकती है। नगवां की रहने वाली सरोज बताती है कि उसकी बेटी सात माह की होने के बाद भी उसका वजन महज तीन किलो था। उल्टी-दस्त से परेशान बेटी का उपचार कराने सरकारी अस्पताल पहुंची तब पता चला कि बेटी अति कुपोषित (सैम) हो चुकी है। एनआरसी में भर्ती होने के बाद उसकी बेटी को नई जिंदगी मिली है।
-क्या होता है कुपोषण
पांडेयपुर स्थित पं.दीन दयाल चिकित्सालय के चिकित्सा अधीक्षक व बाल रोग विशेषज्ञ डा. आरके सिंह कहते है 'आहार में पोषक तत्वों का ठीक ढंग से शामिल न होना ही कुपोषण की समस्या को जन्म देता है। कुपोषण के कारण बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे वे आसानी से कई तरह की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। कुपोषण के कारण बच्चे में एनीमिया, मानसिक विकलांगता जैसी बीमारियां भी होती है। कुपोषण बच्चे की लंबाई और वजन के विकास को बाधित कर उसके बढ़ने क्षमता को सीमित कर देता है। यदि इसका इलाज समय पर नहीं कराया गया तो इसे बाद में ठीक कर पाना मुश्किल होता है। इससे बच्चे की मृत्यु भी हो सकती है।
-बच्चे को कुपोषित होने से इस तरह बचाये
पोषण एवं पुनर्वास केन्द्र की आहार सलाहकार विदिशा शर्मा कहती हैं कि पोषक तत्वों से भरपूर आहार का सेवन और उचित देखभाल ही बच्चे को कुपोषित होने से बचाता है। शिशुओं के लिए इस बात कर खास तौर पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि उसे छह माह तक मां के दूध के अलावा कुछ भी न दिया जाय। छह माह से दो वर्ष तक के बच्चे को स्तनपान कराने के साथ-साथ ऊपरी पोषक आहार दिया जाना चाहिए। शुरू में उसे फलों का जूस या दाल का पानी चावल का माड़ दिया जा सकता है। चूकि इस समय उसे दांत नहीं निकला होता लिहाजा उसे उबला या भांप में पकाया हुआ सेब, गाजर, लौकी, आलू या पालक आदि मसल कर दे सकते हैं। बाद में उसे दलिया, खिचड़ी, बेसन या आटे का हलुआ भी दिया जा सकता हैै। शिशु को पोषक आहार मिले, इसके लिए एक बेहतर और संतुलित आहार योजना का पालन करना चाहिए।

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