अब आदमखोर भेड़ियों को पकड़ेगी 'doll' शिकार के जाल में ऐसे फंसेगा शिकारी

Update: 2024-09-03 08:17 GMT
Uttar Pradesh उत्तर प्रदेश: के बहराइच जिले में पिछले कुछ महीनों से ग्रामीणों पर हमला कर रहे आदमखोर भेड़ियों को पकड़ने के लिए वन विभाग ने नई तरकीब खोजी है। इस तरकीब के तहत बच्चों की पेशाब में भिगोई गई रंग-बिरंगी गुड़ियों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इन ‘टेडी डाल’ को दिखावटी चारे के रूप में नदी के किनारे भेड़ियों के आरामस्थल और मांद के पास लगाया गया है। ‘टेडी डाल’ को बच्चों के पेशाब से भिगोया गया है, ताकि इनसे बच्चों जैसी गंध आए और भेड़िये इनकी तरह खिंचे चले आएं।
हमलावर भेड़िये लगातार बदल रहे हैं अपनी जगह
प्रभागीय वनाधिकारी अजीत प्रताप सिंह ने सोमवार को बताया कि हमलावर भेड़िये लगातार अपनी जगह बदल रहे हैं। अमूमन ये रात में शिकार करते हैं और सुबह होते-होते अपनी मांद में लौट जाते हैं। ऐसे में ग्रामीणों और बच्चों को बचाने के लिए हमारी रणनीति है कि इन्हें भ्रमित कर रिहायशी इलाकों से दूर किसी तरह इनकी मांद के पास लगाए गए जाल या पिंजरे में फंसने के लिए आकर्षित किया जाए।
सिंह ने कहा कि इसके लिए हम ‘थर्मल ड्रोन’ से भेड़ियों की स्थिति के बारे में जानकारी जुटा रहे हैं। फिर पटाखे जलाकर, शोर मचाकर या अन्य तरीकों से इन्हें रिहायशी गांव से दूर सुनसान जगह ले जाकर जाल के नजदीक लाने की कोशिश की जा रही है। हमलावर जानवर ज्यादातर बच्चों को अपना निशाना बना रहे हैं, इसलिए जाल और पिंजरे के पास हमने बच्चों के आकार की बड़ी-बड़ी गुड़ियां लगाई हैं।
‘टेडी डाल’ को रंग-बिरंगे कपड़े पहनाकर वहां रखेंगे
उन्होंने बताया कि ‘टेडी डाल’ को रंग-बिरंगे कपड़े पहनाकर इन पर बच्चों के मूत्र का छिड़काव किया गया है और फिर जाल के पास व पिंजरों के अंदर इस तरह से रखा गया है कि देखने से भेड़िये को इनसानी बच्चा बैठा होने या सोता होने का भ्रम हो। सिंह के मुताबिक, बच्चे का मूत्र भेड़ियों को ‘टेडी डाल’ में नैसर्गिक इनसानी गंध का एहसास दिलाकर अपने नजदीक आने को प्रेरित कर सकता है। दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के फील्ड निदेशक व कतर्नियाघाट वन्यजीव विहार के डीएफओ रह चुके वरिष्ठ आइएफएस अधिकारी रमेश कुमार पांडे ने तराई के जंगलों में काफी वर्षों तक काम किया है। इन दिनों वह भारत सरकार के वन मंत्रालय में महानिरीक्षक (वन) के तौर पर सेवाएं दे रहे हैं।
पांडे ने कहा कि भेड़िये, सियार, लोमड़ी, पालतू व जंगली कुत्ते आदि जानवर कैनिड नस्ल के जानवर होते हैं। भेड़ियों के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि ब्रिटिश काल में यह इलाका कैनिड प्रजाति में शामिल इन भेड़ियों का इलाका हुआ करता था। भेड़िया आबादी में खुद को आसानी से छिपा लेता है। उस जमाने में भेड़ियों को पूरी तरह से खत्म करने की कवायद हुई थी। बहुत बड़ी संख्या में उन्हें मारा भी गया था। उन्होंने बताया कि तब भेड़ियों को मार डालने योग्य जंगली जानवर घोषित किया गया था और इन्हें मारने पर सरकार से 50 पैसे से लेकर एक रुपए तक का इनाम मिलता था। सिंह के अनुसार, हालांकि ब्रिटिश शासकों की लाख कोशिशों के बावजूद ये जीव अपनी चालाकी से छिपते-छिपाते खुद को बचाने में कामयाब रहे और आज भी बड़ी संख्या में नदियों के किनारे के इलाकों में मौजूद हैं।
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