अगली सुनवाई 20 सितंबर को होगी, CBI से हाथरस केस के ट्रायल में प्रगति का मांगा ब्योरा
कोर्ट ने कहा था कि एसओपी की भावना सर्वोपरि है, क्योंकि यह सांविधानिक व मौलिक अधिकारों को छूती है। इस तरह के अधिकारों के संबंध में पूरी प्रक्रिया को गंभीर तरीके से संचालित किया जाना चाहिए।
प्रदेश के बहुचर्चित हाथरस कांड मामले में राज्य सरकार ने मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच को बताया कि ऐसे मुकदमों में शवों के गरिमापूर्ण अंतिम संस्कार की नई योजना (एसओपी) को जल्द अंतिम रूप देकर अधिसूचित किया जाएगा। हाईकोर्ट ने सीबीआई से इस मामले में केस के विचारण (ट्रायल) में प्रगति की जानकारी भी मांगी है। न्यायमूर्ति राजन राय और न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की खंडपीठ ने यह आदेश 'शवों के गरिमापूर्ण अंतिम संस्कार का अधिकार' शीर्षक से खुद संज्ञान लेकर दर्ज कराई गई पीआईएल पर सुनवाई के बाद दिया।
गौरतलब है कि मामले में पिछली सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने कोर्ट के समक्ष एसओपी का प्रारूप पेश किया था। इस पर कोर्ट ने भी कुछ सुझाव दिए थे। कोर्ट ने आदेश दिया था कि राज्य के अधिकारी इस एसओपी के अनुसार इसे अधिसूचित होने पर कार्रवाई करेंगे। वहीं सुझाव के साथ आदेश दिया था कि राज्य के अधीन अधिकारियों और कर्मचारियों को, जो ऐसे शवों के दाह संस्कार में शामिल होने वाले हैं, उन्हें एसओपी का सख्ती से और इस तरह से पालन करने के लिए संवेदनशील और परामर्श दिया जाना चाहिए ताकि उद्देश्य को विफल करने के बजाय प्राप्त किया जा सके।
कोर्ट ने कहा था कि एसओपी की भावना सर्वोपरि है, क्योंकि यह सांविधानिक व मौलिक अधिकारों को छूती है। इस तरह के अधिकारों के संबंध में पूरी प्रक्रिया को गंभीर तरीके से संचालित किया जाना चाहिए। इस एसओपी का पुलिस थानों, अस्पतालों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, जिला मुख्यालयों, तहसीलों आदि में व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए। जिससे हितधारक इस एसओपी से अवगत हो सकें। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 20 सितंबर को नियत की है।
मृतक भी सम्मान का हकदार
कोर्ट ने मामले में कहा था कि एक मृत व्यक्ति को अधिकार है कि उसके शरीर के साथ सम्मान हो। इसका वह अपनी परंपरा, संस्कृति और धर्म के अधीन हकदार होता है। यह अधिकार न केवल मृतक के लिए है बल्कि उसके परिवार के सदस्यों को भी धार्मिक परंपराओं के अनुसार अंतिम संस्कार करने का अधिकार है। एक सभ्य अंत्येष्टि के अधिकार को व्यक्ति की गरिमा के अनुरूप माना गया है। इसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत जीवन के अधिकार के एक मान्यता प्राप्त पहलू के रूप में दोहराया गया है।
यह है मामला
कोर्ट ने पहले 12 अक्तूबर 2020 को सुनवाई के दौरान हाथरस में परिवार की मर्जी के बिना रात में मृतका का अंतिम संस्कार किए जाने पर तीखी टिप्पणी की थी। कहा था कि बिना धार्मिक संस्कारों के युवती का दाह संस्कार करना पीड़ित, उसके स्वजन व रिश्तेदारों के मानवाधिकारों का उल्लंघन है। इसके लिए जिम्मेदारी तय कर कार्रवाई करने की आवश्यकता है। गौरतलब है कि हाथरस के बूलगढ़ी गांव में 14 सितंबर 2020 को दलित युवती से चार लड़कों ने कथित रूप के साथ सामूहिक दुष्कर्म और बेरहमी से मारपीट की थी। युवती को पहले जिला अस्पताल, फिर अलीगढ़ के जेएन मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया। हालत खराब होने पर उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में रेफर कर दिया गया, जहां 29 सितंबर को मृत्यु हो गई थी। इसके बाद आनन-फानन में पुलिस ने रात में उसके शव का अंतिम संस्कार कर दिया था। इसके बाद काफी बवाल हुआ। परिवार का कहना था कि उनकी मर्जी के खिलाफ पुलिस ने पीड़िता का अंतिम संस्कार कर दिया, हालांकि पुलिस इन दावों को खारिज कर रही थी।