मेरठ न्यूज़: कोर्ट के आदेश पर जिस संपत्ति का वार्षिक मूल्य 50 हजार रुपये आंका गया, नगर निगम प्रशासन ने उसका टैक्स बिल ही 15 लाख रुपये थमाते हुए गृह स्वामी से 50 हजार रुपये का चेक भी हासिल कर लिया। इस प्रकरण को जब आरटीआई एक्टिविस्ट ने उठाया, तो बिल पांच लाख बनाकर थमा दिया। अब यह मामला अपील में चल रहा है। यह प्रकरण नगर निगम में हाउस टैक्स के नाम पर एक नागरिक को परेशान करने से जुड़ा बताया गया है। इसके अंदर वादी और नगर निगम के बीच हाउस टैक्स को लेकर एक विवाद लंबे समय तक चला। जिसमें सन 2010 में नगर निगम और वादी के बीच एक रजामंदी हुई। जिसे सुलझाने के लिए न्यायालय में दोनों पक्ष अपने अपने प्रतिनिधि द्वारा या स्वयं एक सहमति पत्र देकर वाद का निपटारा कर लेंगे। जिसमें नगर निगम की ओर से हाउस टैक्स निरीक्षक और वादी की ओर से स्वयं वादी ने हस्ताक्षर किए और सहमति पत्र न्यायालय में दे दिया गया। इस समझौते के अनुसार भवन की वैल्यू 50 हजार रुपये सालाना आंकी गई। जिस पर मार्च 2010 में न्यायालय ने डिक्री कर दिया। जिसके उपरांत नगर निगम 14 साल तक कोई बिल स्वामी को नहीं दिया। जिससे यह स्वामी 95 साल की उम्र में नगर निगम के चक्कर लगाते लगाते परलोक सिधार गया।
बाद में उसके पुत्र मुकुल मित्तल द्वारा काफी प्रयास किए गए। जिसके उपरांत नगर निगम ने 15 लाख का बिल दे दिया और और नगर निगम के अधिकारी जबरदस्ती मुकुल मित्तल से 50 हजार रुपये का चेक ले गए। नगर निगम की ओर से 2022 में एक मांग पत्र भवन स्वामी को भेजा गया जिसमें जिसमें गृह कर जलकर की राशि के साथ-साथ पिछले 20 वर्षों का ब्याज भी जोड़ कर भेज दिया गया। और यह राशि करीब 15 लाख बता दी गई। अगर यह विलंब नगर निगम के किसी अधिकारी के स्तर से हुआ है, तो क्या कर वसूली में इतना विलंब करने वाले किसी अधिकारी या कर्मचारी के विरुद्ध नगर निगम के अधिकारियों ने कोई कार्रवाई की है। उसके बारे में विवरण मांगा गया इस आरटीआई के जवाब में नगर निगम की ओर से बिना किसी मोहर या लेटर हेड के 10 अक्टूबर 2022 को एक सूचना जारी की गई जिसमें कहा गया कि उपरोक्त संबंध में सर्वे 1991-92 में निर्धारित वार्षिक मूल्य के विरुद्ध न्यायालय में वर्ष 2010 में 50 हजार रुपये वार्षिक मूल्यांकन निर्धारित के आदेश पर की गई थी। जिसका अनुपालन किए जाने कर लिए भवन स्वामी द्वारा लिखित तौर पर न्यायालय के आदेश की प्रति के साथ प्रार्थना पत्र उपलब्ध नहीं कराया गया। वर्तमान में न्यायालय के आदेश की प्रति के साथ प्रार्थना पत्र दिया गया।
जिस पर न्यायालय के आदेशों के अनुपालन में तत्काल कार्रवाई करते हुए संशोधित बिल प्रार्थी को उपलब्ध करा दिया गया। उपलब्ध कराए गए बिल के सापेक्ष स्वामी द्वारा पार्ट पेमेंट के रूप में 50 हजार रुपये का चेक भुगतान के लिए कार्यालय में प्रस्तुत किया गया। डॉ. संजीव कुमार अग्रवाल ने इस सूचना को असत्य और भ्रामक बताते हुए नगर निगम के अधिकारियों को एक पत्र प्रेषित किया। जिसमें कहा गया कि जिन बिंदुओं पर उनके द्वारा आरटीआई के माध्यम से जानकारी मांगी गई थी, किसी बिंदू को जवाब में छुआ तक नहीं गया है। उन्होंने ऐसा करने वाले अधिकारियों के विरुद्ध की गई कार्रवाई से भी अवगत कराने की उम्मीद की है। उन्होंने प्रथम अपीलीय अधिकारी के समक्ष इस संबंध में एक अपील भी संबंधित धाराओं में जानकारी और दंडात्मक कार्रवाई की अपेक्षा की है।