समाजवादी पार्टी के लिए आजम के गढ़ में सियासी अनबन से कई चुनौतियां

लोकसभा चुनाव के पहले चरण की नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के साथ ही यह सीट काफी चर्चा में है

Update: 2024-04-09 05:52 GMT

लखनऊ: गंगा-जमुनी तहजीब को जीने वाले रामपुर के दो पहलू हैं. संस्कृति और सियासत. ओर नवाबी खानदान इस शहर को अब भी रियासती रवायत से जोड़ता है तो दूसरी ओर सपा नेता आजम खां ने 10 बार रामपुर विधानसभा सीट जीत कर ऐसी बड़ी सियासी लकीर खींची है जो किसी भी दूसरे नेता के लिए बड़ी चुनौती है. हालांकि लोकसभा चुनाव के पहले चरण की नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के साथ ही यह सीट काफी चर्चा में है.

ओर भाजपा पूरे एनडीए कुनबे के साथ चुनावी मैदान में पूरा जोर लगा रही है, वहीं यूपी में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी में घमासान छिड़ा हुआ है. आजम खां ने इस सीट से सपा मुखिया अखिलेश यादव को चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन वह इसके लिए नहीं माने. उल्टा आजम के किसी करीबी के बजाय मौलाना मोहिबुल्ला नदवी को प्रत्याशी बना दिया. इस पर सपा की स्थानीय इकाई ने पहले तो चुनाव का बहिष्कार किया, लेकिन फिर आजम के करीबी आसिम राजा ने सपा से नामांकन कर दिया. यह बात दीगर है कि नामांकन पत्रों की जांच में उनका पर्चा खारिज हो गया. टिकट को लेकर अखिलेश और आजम के बीच जो खटास आई है, वह निचले स्तर तक साफ दिखाई देने लगी है.

फिलहाल पार्टी रणनीति बनाने के बजाए खेमेबाजी से निपटने में ही जुटी है. ऐसे में आजम के गढ़ में सपा को भाजपा से अपनी छीनी हुई सीट वापस पाना चुनौती बन सकता है.

अहम योगदान किसी जमाने में जरायम की दुनिया से लेकर बॉलीवुड की फिल्मों तक रामपुरी चाकुओं की धूम रही है लेकिन रामपुर की असल पहचान इसके उद्योगों और विश्व प्रसिद्ध रजा लाइब्रेरी से है. वही, प्रदेश से लेकर केंद्र तक की सियासत में रामपुर का अहम योगदान रहता है. यह वह सीट है, जिसने देश को पहला शिक्षा मंत्री दिया.

वर्ष 1951 से लेकर अब तक के लोस चुनाव परिणामों को देखें तो रामपुर में 17 चुनाव और उप चुनाव हुआ है. कुल 18 चुनावों में 10 बार कांग्रेस, बार बीएसडी यानी भारतीय लोकदल, चार बार भाजपा और तीन बार सपा जीती है. यानी आम चुनावों में सपा और भाजपा का जीत का अंक 3-3 की बराबरी पर है.

पहली लोकसभा में देश को अबुल कलाम आजाद सरीखा शिक्षा मंत्री देने वाले रामपुर ने 1998 में भाजपा के अल्पसंख्यक चेहरे मुख्तार अब्बास नकवी और 2004 और 2009 में फिल्मों से सियासत के मैदान में उतरीं जयाप्रदा को संसद में भेजा.

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