हाथरस: इस वर्ष श्रावण मास के अधिक होने के कारण पुरुषोत्तम मास या अधिकमास के रूप में श्रावण देखने को मिल रहा है, इन दिनों भगवान शिव के साथ पुरुषोत्तम मास के अधिष्ठात्र देव श्री हरि की विशेष पूजा का फल भी मिलेगा।
वैदिक ज्योतिष संस्थान के प्रमुख स्वामी श्री पूर्णानंदपुरी जी महाराज के अनुसार 59 दिन तक चलने वाले सावन के महीने में पहले 14 दिन यानि 4 जुलाई से 17 जुलाई और अंतिम 15 दिन 17 अगस्त से 31 अगस्त शुद्धमास होंगे वहीं मध्य के 30 दिन 18 जुलाई से 16 अगस्त अधिक मास अथवा लोंद मास लगेगा ऐसे में श्रावण में पड़ने वाले जितने भी पर्व या त्यौहार हैं वह पहले 14 दिन में या अंतिम 15 दिन में रहेंगे जिनमें हरियाली तीज तथा रक्षाबंधन पर्व मुख्य रूप से मनाया जाएगा।
स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने बताया कि जिस मास में एक अमावस्या से दूसरे अमावस्या के बीच में कोई सूर्य की संक्रान्ति अर्थात सूर्य का राशि परिवर्तन न हो उसे अधिक मास कहते है। अधिमास 32 मास 16 दिन तथा चार घड़ी के अन्तर से आता है, एक सौर वर्ष 365 दिन एवं लगभग 06 मिनट का होता है और चंद्र वर्ष 354 दिनों का बनता है। इस प्रकार सौर और चंद्र दोनों वर्षों में 11 दिन, 1 घंटा, 31 मिनट और 12 सेकंड का अंतराल होता है।यह अंतर हर साल बढ़ता है,और तीन साल से एक महीने तक का हो जाता है। जिसे अधिक मास कहते।
अधिकमास के स्वामी भगवान विष्णु एवं श्रावण मास के स्वामी देवाधिदेव महादेव होने के कारण इस माह में हरि और हर दोनों की सेवा का विशेष लाभ मिलेगा। इस महीनें में दान-पुण्य,पूजा पाठ, यज्ञ अनुष्ठान,करने का फल अक्षय होता है। यदि दान न किया जा सके तो ब्राह्मणों तथा सन्तों की सेवा सर्वोत्तम मानी गई है। दान में खर्च किया गया धन क्षीण नहीं होता। उत्तरोत्तर बढ़ता ही जाता है। जिस प्रकार छोटे से बट बीज से विशाल वृक्ष पैदा होता है ठीक वैसे ही मल मास में किया गया दान अनन्त फलदायक सिद्ध होता है।अधिक मास में फल-प्राप्ति की कामना से किए जाने वाले सभी कार्य धार्मिक संस्कार जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह, गृहप्रवेश,नई बहुमूल्य वस्तुओं की खरीद आदि वर्जित होते है