प्रदर्शनी में दिखी लोककला की जीवंत झलक

Update: 2023-02-24 13:38 GMT

बस्ती न्यूज़: मंगल कामना को लेकर बनने वाला कोहबर कुल देवता के आह्वान से जुड़ा है. विवाह के समय घर की महिलाएं संस्कार गीत के साथ भित्ति पर कोहबर को अलंकृत करती हैं. कोहबर यह दर्शाता है कि लोककला हमारी मूल संस्कृति से जुड़ा है.

यह बातें राज्य ललित कला अकादमी उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग और बस्ती विकास समिति के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित परंपरा कोहबर कार्यशाला के प्रदर्शनी का टाउन क्लब में उद्घाटन करते मुख्य अतिथि संस्कार भारती गोरक्ष प्रान्त के प्रांतीय उपाध्यक्ष डॉ. अशीष श्रीवास्तव ने कही. श्री श्रीवास्तव ने कहा कि संस्कार गीतो में गारी गीत, शेरो शायरी आदि से पूरा आंगन गुंजित होता है. दादी, नानी, बुआ, मौसी और मां के साथ यह सांझी विरासत आज भी अस्तित्व में है. कार्यक्रम संयोजक डॉ. नवीन श्रीवास्तव ने बताया कि कोहबर कार्यशाला में प्रकृति की वस्तुएं, गोबर, आम के पत्ते, रंग, सिंदूर, गेरू, डली, हल्दी सहित अन्य सामग्रियों का उपयोग किया जा रहा है. समिति के संस्थापक अध्यक्ष राहुल श्रीवास्तव ने कहा कि भारतीय संस्कृति परंपरा को जीवंत रखने के प्रयास कोहबर कार्यशाला है. मंच संचालन कोषाध्यक्ष सरिता शुक्ला ने किया. अरुणा मिश्रा, प्रीति श्रीवास्तव, चेतना सक्सेना, सरिता शुक्ला ने पारम्परिक लोक गीत सुनाया.

कोहबर बनाने में नैसर्गिक रंगों प्रयोग होता हैकार्यक्रम के सह संयोजक चित्रकार डॉ. संदीप ने कहा कि कोहबर का अर्थ कौतुकगृह या कोष्ठवर से है. कोहबर चित्रकला में नैसर्गिक रंगों का प्रयोग होता है. लाल, पीला, सफेद रंग पेड़ की छाल व मिट्टी से बनाए जाते हैं. सफेद रंग के लिए दूधी मिट्टी का प्रयोग किया जाता है.

कोहबर कार्यशाला में दिखी इनकी प्रतिभाकोहबर कार्यशाला में डॉ. कुमुद सिंह, डॉ. रेखारानी, डॉ. रमा शर्मा, सरिता सिंह, नीलिमा गौतम, ऋतु , कमलवटी, डॉ. शैलजा सतीश, डॉ. शिवा त्रिपाठी, रजनी चौधरी, विभा श्रीवास्तव, दिव्या त्रिपाठी, सरिता शुक्ला, शालिनी मिश्र ने प्रतिभाग किया.

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