दिवाली पर कंदील की सतरंगी छटा लोगों को खूब लुभाती है। मान्यता है कि कंदील सूर्य देव को समर्पित कर सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। लोग घर की छत पर इसे लगाते हैं या फिर कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा में प्रवाहित कर देते हैं, लेकिन आधुनिकता के बढ़ते प्रभाव के चलते कंदील का प्रचलन कम हो गया है। युवाओं में भी इस परंपरा को आगे बढ़ाने में रुझान कम है।
कंदील बनाने में बांस की कमानी, गत्ता और रंगीन कागज का प्रयोग किया जाता है। अधिकतर कंदील षटकोणीय होते हैं, हालांकि अब इन्हें मंदिर, जहाज, जेट विमान आदि के रूप में भी तैयार किया जा रहा है। बांस की कमानी बनाकर उस पर रंगीन कागज चिपका दिया जाता है। उसमें दीप जला कर रखते हैं। रंग-बिरंगे डिजाइनों में बने कंदील लोगों के आकर्षण के केंद्र बने हैं। बाजार में यह छोटे-बड़े साइज में उपलब्ध हैं। इस बार लकड़ी से तैयार कंदील भी लोगों को भा रहे हैं। इसके अलावा कई और आकर्षक डिजाइन की कंदील भी बाजार में आई हैं।
घर में ही अपने लिए तैयार करते हैं कंदील
प्रेमनगर निवासी राजेश्वरी देवी ने बताया कि परंपरागत कंदील को लेकर पहले हर वर्ग के लाेगों में बहुत उत्साह रहता था। दुकानों पर भी इसकी भरमार रहा करती थी, लेकिन अब इस परंपरा में कमी आई है। इस परंपरा का निर्वहन करने के लिए घर के बच्चे खुद ही काफी संख्या में कंदील तैयार कर लेते हैं।
ग्रीनपार्क निवासी सुभाष चंद्र मिश्रा ने बताया कि कंदील के पीछे मान्यता है कि दिवाली की रात के बाद आने वाली सुबह का प्रकाश सभी के जीवन में खुशहाली लाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार सूर्य देव की कृपा से ही सुख और समृद्धि प्राप्त होती है। इसलिए कंदील को सूर्य देव को समर्पित करने की परंपरा है, लेकिन अब इसका प्रचलन काफी कम हो गया है।