नौकरी छोड़कर क्रिकेट के मैदान में उतरे शोहरत हासिल, अब चला रहे ई-रिक्शा

अब चला रहे ई-रिक्शा

Update: 2022-08-18 10:23 GMT

गाजियाबाद. उत्तर प्रदेश टीम की ओर से क्रिकेट खेलते हुए खूब शोहरत बटोरने वाले खिलाड़ी राजा बाबू आज गरीबी में जीवन गुजार रहे हैं. परिवार का खर्च चलाने के लिए ई-रिक्शा चला रहे हैं. कोरोना संक्रमण काल ने इनके करियर और जिंदगी की दिशा बदल दी. अब परिवार चलाने के लिए सड़कों पर खाक छाननी पड़ रही है.

वर्ष 2017 में मेरठ में हौसलों की उड़ान नाम का नेशनल लेवल का क्रिकेट मैच हो रहा था. दिल्‍ली के खिलाफ उत्‍तर प्रदेश के लिए खेलते हुए राजा बाबू ने 20 गेंदों में 67 रन बना दिए. इस पारी के लिए राजा बाबू की खूब तारीफ हुई. उनकी बैटिंग से प्रभावित होकर एक कारोबारी ने राजा बाबू को ई-रिक्‍शा दे दिया. बाएं हाथ के क्रिकेटर की पहचान विस्‍फोटक बल्‍लेबाज के रूप में बनी. दिव्‍यांग क्रिकेट सर्किट में स्‍टेट और नेशनल लेवल के टूर्नामेंट में राजा बाबू का जलवा हो गया.
आज हालात ने इस स्थिति में पहुंचा दिया है कि राजा बाबू परिवार का भरण पोषण करने के लिए ई-रिक्शा चला रहे हैं. राजा बाबू के लिए आज वही ई-रिक्शा काम का आ रहा है जिसे वर्ष 2017 में मैच के बाद एक कारोबारी ने दिया था. तब राजा बाबू ने तब सोचा भी नहीं था कि यह इनाम एक दिन उनके इतना काम आएगा. क्रिकेट खेलने के दौरान भी बाबू को इधर-उधर का काम करना पड़ता था. कभी-कभी ई-रिक्‍शा भी चलाए थे लेकिन असल परेशानी 2020 में आई जब यूपी में दिव्‍यांग क्रिकेटर्स के लिए बनी चैरिटेबल संस्‍था दिव्‍यांग क्रिकेट एसोसिएशन भंग कर दी गई. राजा बाबू के लिए पैसों की आमद रुक गई. वे कहते हैं कि इससे हमारी कमर टूट गई. शुरुआती कुछ महीने मैंने गाजियाबाद की सड़कों पर दूध बेचा और जब मौका मिला ई-रिक्‍शा चलाया. टीम के मेरे बाकी साथी उस दौरान मेरठ में डिसेबल्‍ड ढाबा पर डिलिवरी एजेंट्स और वेटर का काम करते थे. वह ढाबा एसोसिएशन के संस्‍थापक और कोच अमित शर्मा ने खोला था. राजा बाबू अभी बहरामपुर और विजय नगर के बीच प्रतिदिन लगभग 10 घंटे ई-रिक्‍शा चलाते हैं. परिवार में पत्‍नी निधि और बच्‍चे कृष्‍णा 7 वर्ष और शानवी 4 वर्ष शामिल हैं.
वर्ष 1997 में हादसे में खो दिए थे बायां पैर
राजा बाबू 1997 में स्‍कूल से घर लौटते वक्‍त एक ट्रेन हादसे में बायां पैर खो दिए थे. इनके पिता रेलवे में कर्मचारी थे और कानपुर के पनकी में तैनात थे. हादसे के बाद इनकी पढ़ाई रुक गई. वर्ष 2000 में इन्‍होंने कानपुर में आरामीना ग्राउंड पर क्रिकेट की ट्रेनिंग शुरू की. 23 साल की उम्र में जिला स्‍तर के टूर्नामेंट में खेल रहे थे. बाद में राज्य स्तर पर पहुंचे. वर्ष 2015 के उत्‍तराखंड दिव्‍यांग क्रिकेट टूर्नमेंट में इन्हें बेस्‍ट प्‍लेयर का अवार्ड मिला. 2016 में इन्हें यूपी टीम का कप्तान बना दिया. इससे पहले वर्ष 2014 में राजा बाबू नौकरी की तलाश में गाजियाबाद आ गए. वे जूता बनाने वाली एक फैक्‍ट्री में 200 रुपये दिहाड़ी पर काम शुरू किए. पैसा जरूरी था लेकिन क्रिकेट और फैक्‍ट्री के काम में तालमेल बिठा पाना बहुत मुश्किल हो रहा था इसलिए छह महीनों बाद नौकरी छोड़कर सिर्फ क्रिकेट पर फोकस करने की सोची. वर्ष 2016 में वे नेशनल लेवल के टूर्नामेंट में मैन ऑफ द मैच रहे. वर्ष 2020 में कोरोना संक्र्रमण काल में स्थिति एकदम बिगड़ गई.


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