अनुबंधित बसों के संचालन में अव्यवस्थाओं का सफर

Update: 2023-01-15 09:33 GMT

मेरठ: भैंसाली डिपो से संचालित होने वाली अनुबंधित बसों में अव्यवस्थाओं का बोलबाला है। जिनको सही कराने के लिए उप्र परिवहन निगम की ओर से तैनात अधिकारी, निजी बस आॅपरेटरों की मनमानी के सामने नतमस्तक नजर आते हैं।

भैंसाली डिपो से गाजियाबाद, कौशांबी, मुजफ्फरनगर, बड़ौत, बागपत आदि लोकल रूट पर अनुबंधित बसें चलाई जाती हैं। करीब दो दशक पहले इन बसों का संचालन मेरठ डिपो के माध्यम से होता था। इसके बाद अधिकारियों ने एक फैसला लिया, जिसके अंतर्गत भैंसाली के नाम से अलग डिपो की स्थापना कर दी गई।

इसके पीछे अधिकारियों की मंशा यह रही कि निगम को अनुबंधित बसें मिल जाएं जिनके मेंटेनेंस और चलाने का दायित्व निजी आॅपरेटर करें जबकि कंडक्टर के माध्यम से किराया वसूली का काम निगम की ओर से किया जाए। इन दो दशकों में स्थिति यह बन चुकी है कि विभाग के अधिकारी भैंसाली डिपो से चलने वाली अनुबंधित बसों को लेकर बहुत कुछ कहने की स्थिति में नहीं रह गए हैं। निजी आॅपरेटर की मनमानी इस डिपो पर पूरी तरह हावी है। बसों की साफ-सफाई से लेकर उनकी कंडीशन, फिटनेस, मेंटीनेंस, स्पीडोमीटर समेत तमाम मानक को ताक पर रखकर बसों को चलाया जा रहा है।

इन बसों को देखकर कहीं से भी ऐसा नहीं लगता कि इनको एक डिपो के माध्यम से संचालित करने की अनुमति मिल सकती है। लगभग कंडम हो चुकी बहुत सी बसों को के जरिये सफर करना यात्रियों की मजबूरी बन चुका है। क्योंकि इन मार्गों पर दूसरी बसों की व्यवस्था नहीं है। इन बसों में कई ऐसी हैं, जिनके शीशे, खिड़की आदि या तो नदारद हैं, या उनके आगे वाले शीशे चालकों के बाइक मिरर देखने के लिए खोल दिए जाते हैं। ऐसे हालात और हड्डी कंपा देने वाली ठंड के बीच इन बसों में सफर करना यात्रियों के लिए किसी सजा से कम नहीं होता है।

इस रूट पर चलने वाले कुछ चालक परिचालकों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उन्हें मालिकों की ओर से बसों के रखरखाव के लिए एक दिन का रेस्ट तक नहीं दिया जाता। जबकि नियम अनुसार अनुबंधित या निगम की बसों को सप्ताह में एक दिन वर्कशॉप में ले जाकर फोरमैन और उसकी टीम के जरिये निर्धारित मानकों के अनुसार उसकी जांच कराना आवश्यक होता है। अनुबंधित बसों के संचालन में विभाग और आॅपरेटर के बीच एक अनुबंध भी शामिल है कि बसों के रखरखाव और बसों को चलाने के लिए चालक की व्यवस्था आॅपरेटर की ओर से की जाती है।

जबकि बसों में सवार यात्रियों से किराया वसूल करना निगम के परिचालक की जिम्मेदारी होती है। विभागीय अधिकारी दबी जबान में यह बताते हैं कि अनुबंध के अनुसार चूंकि बसों के संचालन और रखरखाव की जिम्मेदारी निजी आॅपरेटर की है, इसलिए वे बहुत अधिक इन पर कोई दबाव भी नहीं दे पाते। केवल अपने परिचालक से ही व्यवस्थित रूप से संचालन के लिए कह पाते हैं। निरन्तर संचालन में रहने के कारण बसों की सफाई और धुलाई का काम तक सुचारू रूप से नहीं हो पाता। जिसके प्रमाण अधिकांश बसों के भीतरी और बाहरी हिस्से में लगी गंदगी के रूप में देखे जा सकते हैं।

इन अनुबंधित बसों को चलाने वाले चालकों के लिए कोई ड्रेस कोड कम से कम बस आॅपरेटर की ओर से तो निर्धारित नहीं किया गया है। हालांकि निगम की ओर से सभी चालकों को एक विशेष ड्रेस पहननी होती है लेकिन निजी बस आॅपरेटरों की मेहरबानी से यह व्यवस्था भी भैंसाली डिपो में लागू नहीं होती। यहां मौजूद चालक को देखकर यह तय कर पाना मुश्किल हो जाता है, कि यह कोई यात्री है या बस को चलाने के लिए उपलब्ध कराया गया चालक है।

संचालन की व्यवस्था देख रहे एक अधिकारी ने यहां तक बताया कि आए दिन चालकों को बदलते रहने की प्रवृत्ति के कारण उनके लिए भी चालकों को पहचान पाना आसान नहीं रह जाता है। उनका कहना है कि अपने स्तर से वे निजी आॅपरेटर और अधिकारियों का ध्यान इस ओर आकर्षित कराते रहते हैं। लेकिन व्यवस्था में कोई फर्क नहीं आ सका है।

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