आगरा न्यूज़: मिट्टी खाने से होने वाले पेट के कीड़ों की मर्ज अब जागरुकता के अभाव मं टूटती जा रही है. तीन वर्षों के अथक प्रयासों से पेट के कीड़ों की मर्ज में बड़ी गिरावट आई है. इससे बच्चे बीमारियों के चंगुल से तो बच रहे हैं. साथ ही कई तरह की बीमारियों का खतरा भी उनसे टल रहा है. खून चूसकर बच्चों को एनीमिया का शिकार बना देने वाले पेट के कीड़े की बीमारी 30 फीसदी तक गिर गई है.
डॉक्टर्स के मुताबिक पेट में कीड़े होने के चलते बच्चे-किशोरों में खून की कमी हो जाती है. दरअसल कीड़े पूरा पोषण खा जाते हैं और बच्चा कुपोषित होने के साथ ही एनीमिक भी हो जाता है. बच्चों और किशोर-किशोरियों में कृमि के कारण मानसिक और शारीरिक विकास बाधित हो जाता है. तीन साल पहले तक हर दस में से छह से सात बच्चों के पेट में कीड़े मिलते थे. बच्चे खेलने के दौरान मिट्टी का सेवन करते थे. लेकिन, स्वास्थ्य विभाग की जागरुकता पर लोगों ने इसे गंभीरता से लिया. अब दस में से चार बच्चों के पेट में ही कीड़े की शिकायत होती है. स्वास्थ्य विभाग साल में दो बार पेट के कीड़े निकालने की दवा खिलाता है.
राष्ट्रीय कृमि मुक्ति अभियान के नोडल अधिकारी डॉ. संजीवन वर्मन ने बताया कि आंगनबाड़ी कार्यकत्री की सहायता से एक से पांच साल के बच्चों को दवा दी जाएगी. जबकि, स्वास्थ्य विभाग की टीम स्कूलों में छह से 19 साल तक के बच्चों व किशोरों को शिक्षकों की मदद से दवा खिलाएगी. उन्होंने बताया कि ये दवा चबाकर खाई जाती है. टीम दवा अपने सामने खिलाएगी.