अपने पैरों पर दौड़ पड़ी मासूमों की जिंदगी

Update: 2024-03-02 04:26 GMT

मुरादाबाद: इंसान की आंखें ईश्वर से मिला वह आशीर्वाद हैं, जिससे हम रंगीन और खूबसूरत दुनिया को देख पाते हैं, लेकिन इन्हीं आंखों की रोशनी अगर कम या खत्म हो जाए तो जिंदगी अंधकारमय लगती है. धुंधली नजर से भी तमाम तरह की दिक्कतें आती हैं. जिले के तीन बच्चे भी अल्प दृष्टि व भेंगेपन की समस्या से जूझ रहे थे. इन्हें पढ़ने-लिखने से लेकर तमाम परेशानियों से जूझना पड़ रहा था. इन बच्चों के परिजन आर्थिक स्थिति मजबूत न होने से उपचार कराने में असमर्थ थे. सरकारी योजना के तहत प्राथमिक स्कूलों में लगे निशुल्क आई स्क्रीनिंग कैंप के माध्यम से दिल्ली के डॉ़ श्रॉफ चैरिटेबल हॉस्पिटल की टीम ने बच्चों की आंखों का ऑपरेशन पर उनकी जीवन में खुशियों के रंग भर दिये.

प्राथमिक विद्यालयों के ये तीन बच्चे हैं माहिरा, सुभान रजा और मुकुल. चक्कर की मिलक निवासी आठ वर्षीय माहिरा की मां शाहेरून ने बताया कि माहिरा की आंखें बचपन से ही पूरी नहीं खुलती थीं. इससे उसे पढ़ने-लिखने में कोई खास दिक्कत तो नहीं थी, लेकिन उसके भविष्य को लेकर बहुत चिंता थी. क्योंकि जब आंखें पूरी नहीं खुलती हैं तो चेहरा अजीब सा लगता है. ऑपरेशन के बाद देखने से लेकर उसे कोई भी कार्य करने में परेशानी होती है. वहीं कांठ निवासी सुभान रजा के पिता अकील अहमद ने बताया कि तीन वर्ष की आयु में सुभान के सिर पर चोट लगने से उसकी आंखों की रोशनी बेहद कम हो गई थी. ऑपरेशन के बाद से उसकी आंखें बिल्कुल ठीक हैं. जबकि ठाकुरद्वारा निवासी नौ वर्षीय मुकुल के पिता उदय राज सिंह ने बताया कि पांच वर्ष की आयु में मुकुल की आंखों में भेंगापन हो गया था, जिसके बाद उसको देखने और पढ़ने लिखने से लेकर सभी कार्यों में दिक्कत होने लगी थी. अब बेटा ऑरेशन के बाद सभी कार्य अच्छे से कर रहा है.

जब पूरी खुली आंखों से दुनिया को निहारा ऑपरेशन के बाद जब बच्चों ने पूरी खुली आंखों से बाहरी दुनिया को ठीक से देखा तो खुशी से उनकी आंखों से आंसू आने लगे. ऐसा लग रहा था कि जो दृश्य वह देख रहे हैं उसमें पहले इतने रंग नहीं दिख रहे थे. आपस में एक दूसरे से चर्चा कर रहे ये बच्चे हर चीज को बहुत ध्यान से निहार रहे थे. उनके चेहरे पर खुशी साफ देखी जा सकती थी.

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