Gaziabad: सीता कुंड वार्ड में गंगा व सरयू संगम पर परम्परागत मेला लगेगा

भाद्रपद अमावस्या के पर्व पर स्थानीय मेला लगता है

Update: 2024-09-17 04:38 GMT

गाजियाबाद: नगर निगम के सीता कुंड वार्ड में स्थित पौराणिक सीता कुंड के निकट ही सरयू व तिलोदिकी गंगा का संगम स्थल है. इस संगम स्थल पर प्राचीन काल से ही भाद्रपद अमावस्या के पर्व पर स्थानीय मेला लगता है.

अमावस्या पर्व को कुशोत्पाटिनी अमावस्या के रूप में जाना जाता है इसलिए यहां लगने वाले मेला में सबसे अधिक कुशा की बिक्री होती है जिसे खरीदने व संगम स्थल पर आचमन करने श्रद्धालु आते हैं. यहां वैदिक आचार्य भी आते हैं और वह वैदिक मंत्रोच्चार के जरिए संगम स्थल के इर्द-गिर्द कुशा को स्वयं निकालते हैं. अमावस्या के पर्व पर परम्परागत मेला दो को लगेगा. इसकी तैयारियां शुरू हो गई है. क्षेत्रीय पार्षद विनय जायसवाल ने बताया कि इस पर्व पर मेला समिति की ओर से परम्परागत बिरहा गायन का भी आयोजन किया गया है. उधर इस अवसर पर यहां आने वाले श्रद्धालु सीता कुंड में आचमन और दीपदान के साथ कुशा की खरीददारी करते हैं. वहीं वैदिक आचार्य एवं साधक वैदिक मंत्रों से कुशा को निकालकर पूजन के लिए ले जाते हैं. इस मेला के आयोजन में सहयोगी वीर हनुमान मंदिर के महंत व प्रसिद्ध कथा वाचक कौशल्या नंद वर्द्धन ने बताया कि शास्त्रत्त्ीय दृष्टि से भाद्रपद अमावस्या की तिथि पर वैदिक रीति से निकाली गयी कुश का प्रयोग विभिन्न अनुष्ठानों में वर्ष पर्यन्त किया जा सकता है. इसलिए इस तिथि पर कुशा की खरीददारी भी होती है और निकाली भी जाती है. हनुमत संस्कृत महाविद्यालय के सेवानिवृत्त आचार्य हरफूल शास्त्रत्त्ी का कहना है कि चूंकि इस बार अमावस्या तिथि के साथ की भी युति है इसलिए यह सोमवती अमावस्या कहलाएगी.

इस तिथि पर कुशा निकालने का बड़ा महत्व है क्योंकि इस कुशा का 12 वर्षों तक प्रयोग किया जा सकता है. इस संगम स्थल पर एडवर्ड तीर्थ विवेचना सभा के तत्वावधान में 1902 ईस्वी में अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा की परिधि में पड़ने वाले तीर्थों, ऋषि- मुनियों की तपस्थलियों व कुंडों को मिलाकर 148 स्थानों पर शिलालेख लगवाए गये थे.

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