52 साल पहले ही कानपुर में थी कूड़ा अलग करने की प्रणाली

Update: 2023-04-22 09:14 GMT

कानपूर न्यूज़: शहर में सूखा, गीला और खतरनाक कूड़ा घर से ही अलग-अलग करने पर साल भर पहले काम शुरू हुआ है. हकीकत यह है कि 52 साल पहले ही कानपुर में कूड़ा अलग-अलग उठाने की प्रणाली विकसित हो चुकी थी. इसकी शुरुआत वर्ष 1971 में तत्कालीन मेयर रतनलाल शर्मा ने कराई थी.

रतनलाल शर्मा दो बार शहर के मेयर रहे. पहली बार वह जीते थे 5 मई 1964 की सुबह 9 बजे शपथ ली थी. दूसरी बात जीते तो 29 जुलाई 1971 को शपथ ली. पहली बार ही उन्होंने सपना संजोया कि कचरा प्रबंधन बेहतर करना है. मगर तब नगर निगम की माली स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, क्योंकि इसके गठन को सिर्फ 4 साल ही हुए थे. दूसरे कार्यकाल में उन्होंने घरों से कचरा उठवाने के लिए विशेष प्रकार की हाथ गाड़ी बनवाई. यह ब्रिटिश पैटर्न पर थी. इसे ढकेलकर आगे बढ़ाना बहुत आसान था. नीचे रबर के पहिए लगे हुए थे जबकि गाड़ी में तीन डिब्बे रखे हुए थे. तीनों के ऊपर ढक्कन लगे हुए थे. यानी बाहर से यह कूड़ा नहीं दिखता था.

सफाई कर्मियों को दी गई थी विशेष ट्रेनिंग तब सफाई कर्मचारियों को ट्रेनिंग दी गई कि किस तरह का कचरा किस डिब्बे में रखना है. रसोई घरों से निकलने वाला गीला कचरा अलग डिब्बे में रखा जाता था, जबकि सूखा और खतरनाक कचरा अलग डिब्बे में. इसमें से गीले कचरे को मिट्टी के गड्ढे में डाला जाता था. उसमें गोबर आदि भी डाला जाता था ताकि खाद तैयार हो जाए. यह अलग बात है कि तब आज की तरह न तो अत्याधुनिक संयंत्र थे और न ही इंटीग्रेटेड प्लांट मगर शहर की सफाई बेहतर ढंग से होती थी. सड़कों पर कचरा नहीं दिखता था. बाद के वर्षों में स्थितियां बदल गईं.

जनसंख्या वृद्धि के हिसाब से इसके पर्याप्त इंतजाम नहीं किए गए. अब फिर से शहर पटरी पर आ रहा है क्योंकि कई प्लांट चालू हो चुके हैं. यह अलग बात है कि घरों से ही सूखा और गीला कूड़ा एकत्र करने की कवायद 110 वार्डों में से 35 वार्डों में ही सही ढंग से चालू हो सकी है.

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