आगरा: बिहार का लालाराम रिक्शा चलाता है. बस्ती में रहता है. उसके नाम से बैंक खाता था. खाते में प्रतिदिन 10 से 15 हजार रुपये आते थे. आते ही दूसरे खातों में ट्रांसफर हो जाते थे. यह रकम साइबर अपराधी ऑनलाइन खाते में ट्रांसफर कराते थे. ऐसे एक नहीं 1768 किराए के बैंक खाते आगरा साइबर सेल ने पिछले तीन महीने में फ्रीज कराए हैं.
डीसीपी सिटी सूरज कुमार राय ने बताया कि साइबर अपराध के लिए तीन चीजों की जरूरत पड़ती है. डाटा, मोबाइल और बैंक खाते. साइबर अपराधी डाटा खरीदते हैं. सिमकार्ड फर्जी आईडी पर लेते हैं. इसी तरह ठगी की रकम ट्रांसफर करने के लिए खाते भी किराए पर लेते हैं. गरीबों को गुमराह करके खाते खुलवाए जाते हैं. उन्हें इसके एवज में महीने में एक-दो हजार रुपये दिए जाते हैं. कई वारदात की जांच में यह खुलासा हुआ है. स्टार इंडिया के नेटवर्क में सेंध लगाकर चल रहे फर्जी ओटीटी प्लेटफार्म में भी यही हकीकत सामने आई.
साइबर सेल प्रभारी सुल्तान सिंह ने बताया कि पांच हजार रुपये की ठगी में भी दो से तीन बैंक खातों का प्रयोग होता है. साइबर अपराधी ऑनलाइन रकम एक खाते से दूसरे खाते में ट्रांसफर करते हैं. 1930 पर ऑनलाइन शिकायत के बाद वे सभी बैंक खाते फ्रीज हो जाते हैं जिसमें ठगी की रकम जाती है. साइबर अपराधी ऐसा पुलिस से बचने के लिए करते हैं. पुलिस साइबर ठगी की जांच शुरू करती है तो पता चलता है कि रकम बिहार के बैंक खाते में गई थी. उस खाते की जानकारी की जाती है तो पता चलता है कि रकम झारखंड के खाते में ट्रांसफर हो गई थी. झारखंड संपर्क करने पर पता चलता कि रकम को पश्चिमी बंगाल के खाते में ट्रांसफर कर दिया गया था.