एआईटीएच के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के विशेषज्ञों ने किया कमाल

Update: 2022-12-07 11:57 GMT

कानपुर: जल, मृदा और पर्यावरण के लिए समस्या बन चुका प्लास्टिक ही अगर पानी में घुले जहर को साफ कर दे तो क्या कहने। यह कारनामा डॉ. अंबेडकर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी फॉर हैंडीकैप्ड के विशेषज्ञों ने कर दिखाया है। उन्होंने कोल्ड ड्रिंक, पानी की बोतलों की रासायनिक प्रक्रिया कर पानी से आर्सेनिक को शोधित करने में सफलता पाई है। इस तकनीक को अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित किया गया है। निदेशक समेत अन्य अधिकारियों ने विशेषज्ञों को बधाई दी है। तकनीक को पेटेंट कराया जा रहा है। केमिकल इंजीनियरिंग के विभागाध्यक्ष प्रो.आशुतोष मिश्र और असिस्टेंट प्रो. गाजी मोहम्मद सऊद ने शोध किया है।

इस तरह से हुई प्रक्रिया: असिस्टेंट प्रो. गाजी मोम्मद सऊद के मुताबिक सबसे पहले पीईटी प्लास्टिक (कोल्ड ड्रिंक या पानी की बोतल) का पाउडर बनाया। अब पाउडर को मफल भट्टी में 500 से 600 डिग्री सेल्सियस में कार्बन के साथ मिलाया गया। यह प्रक्रिया पैरोलिसिस कहलाती है। इसमें प्लास्टिक का पाउडर काजल की तरह से परिवर्तित हो गया। इस कार्बन को सोडियम हाइड्रोऑक्साइड (एनएओएच) के साथ फिजियो केमिकल अभिक्रिया कराई गई। फिर कार्बन में आयरन डोपिंग (प्रक्रिया) हुई। इससे एडसॉर्बेंट (दूषित कणों को शोखने वाला पदार्थ) हासिल हुआ। यही एडसॉर्बेंट पानी से आर्सेनिक साफ कर सकता है।

आईआईटी से हुई टेस्टिंग: प्रो. आशुतोष मिश्र ने बताया कि आईआईटी कानपुर में कई पैरामीटर में एडसॉर्बेंट की गुणवत्ता जांची गई, जिसकी रिपोर्ट बेहतर आई। शोधित किया गया पानी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानक के अनुरूप मिला। शोध और तकनीक को अंतरराष्ट्रीय जर्नल वॉटर साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित किया गया है।

आर्सेनिक तीन को किया दूर: असिस्टेंट प्रो. गाजी के अनुसार आर्सेनिक तीन और छह सबसे अधिक खरनाक हैवी मेटल्स जाने जाते हैं। इन दोनों में आर्सेनिक तीन अधिक प्रभावी है। शोध में तैयार किए गए एडसॉर्बेंट ने आर्सेनिक तीन को साफ किया है। असिस्टेंट प्रोफेसर शोभित दीक्षित ने बताया कि इससे शहरों में बढ़ रही प्लास्टिक की समस्या को दूर किया जाएगा। अभी इससे कई अन्य मैटल्स को साफ करने की टेस्टिंग की जा रही है।

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