लखनऊ न्यूज़: समाज कल्याण विभाग व मेटाफर लखनऊ लिटफेस्ट की ओर से आयोजित भागीदारी साहित्य उत्सव में समाज के वंचित वर्गों की दशा और दिशा पर साहित्यकारों, कलाकारों, दलित चिंतकों, लेखकों और शिक्षाविदों ने अपने विचार साझा किए.
गोमती नगर स्थित भागीदारी भवन में पांच सत्रों में चले साहित्य उत्सव का शुभारंभ समाज कल्याण विभाग के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) असीम अरुण ने समाज के वंचित वर्गों को परिभाषित करते हुए किया. उन्होंने विभाग के प्रयासों और सामाजिक न्याय के लिए वृहद स्तर पर किए जा रहे नवीन पहल के बारे चर्चा की.
‘मौजूदा दौर में दलित साहित्य और उसका प्रभाव’ विषय पर दलित चिंतक व लेखक शरण कुमार लिंबाले ने कहा कि दलितों को उनका हम, सामजिक न्याय मिलना चाहिए. दलितों को मजबूत करने की बात करता हूं तो मैं राष्ट्र को मजबूत करने की बात करता हूं. उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय राष्ट्र का सौंदर्य शास्त्रत्त् है. दलित साहित्य जनतंत्र को मजबूत करने वाला साहित्य है. श्यौराज सिंह बेचैन ने अपने जीवन के संघर्षों को रखा. दोनों वक्ताओं ने कहा कि दलित साहित्य किसी जाति, धर्म, क्षेत्र, प्रदेश या देश से जुड़ा न होकर सभी वंचित वर्गों का साहित्य है.
हाशिये पर पड़े लोगों की कहानियों को आवाज दी
दूसरे सत्र में ‘हाशिये के लोगों का सिनेमा’ पर चर्चा करते हुए फिल्मकार अतुल तिवारी व गीतकार डॉक्टर सागर ने विचार व्यक्त किया कि सिनेमा अब और अधिक संवेदनशील हो रहा है. सिनेमा ने हाशिये पर पड़े लोगों की कहानियों को आवाज दी है. डॉक्टर सागर ने कहा कि वंचित वर्ग का सिनेमा में प्रतिनिधित्व बढ़ने के साथ ही हाशिए के लोगों का सिनेमा भी मुखर होकर आएगा