बाट माप-तौल विभाग की उदासीनता और विभाग की मिलीभगत का खामियाजा भुगत रहे उपभोक्ता
मेरठ: इसे बाट माप-तौल विभाग की उदासीनता कहें, या मिलीभगत का नाम दिया जाए, लेकिन आम उपभोक्ताओं को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा रहा है। एक ओर बड़े धर्मकांटे और मिलों समेत विभिन्न इकाइयों की नाप-तौल को परखने के लिए विभाग कोई अभियान नहीं चला पा रहा है।
वहीं, दूसरी ओर साल में एक बार बाट आदि के नवीनीकरण के नाम पर शिविर आदि लगाकर औपचारिकताएं पूरी कर ली जाती है। जबकि बाट माप-तौल विभाग के पास इतने काम हैं, कि इनका पालन कराने पर उपभोक्ताओं को घटतौली जैसी समस्या से हमेशा के लिए निजात मिल सकती है।
विभागीय सूत्र और जागरूक उपभोक्ताओं से मिली जानकारी के मुताबिक धर्म कांटे, शुगर मिल के कांटे, कोल्हू-क्रेशर आदि पर लगने वाले कांटे आदि का निरीक्षण इंस्पेक्टर स्तर पर होता है। आम तौर पर यही देखा जाता है कि विभागीय अधिकारियों और निरीक्षकों का ध्यान छोटे दुकानदारों पर होता है। जबकि बड़े धर्मकांटे और औद्योगिक इकाइयों में, जहां बड़े कांटे होते हैं, वहां बड़े पैमाने पर घटतौली की आशंकाओं के बावजूद कोई ध्यान नहीं दिया जाता।
गन्ना तौल केंद्र पर घटतौली के मामले लगातार सामने आते हैं, लेकिन आज तक मिलों के भीतर कभी भी इसकी जांच नहीं की गई। विभिन्न प्रोडेक्ट की पैकिंग के लिए पीसीआर एक्ट में पंजीकरण भी बाट माप-तौल विभाग में कराना जरूरी होता है। जिनकी देखभाल का काम भी विभाग के इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारी के पास होता है, लेकिन व्यवहारिकता इससे कोसो दूर है।
मेरठ महानगर और जनपद की अगर बात की जाए तो हजारों की संख्या में ऐसी इकाइयां मौजूद हैं, जो अपना सामान पैक करके सप्लाई करती हैं, लेकिन इनमें से अगर पंजीकरण कराने वालों की संख्या की बात हो, तो गिनती के ही निर्माता इस नियम का पालन करते हैं। सूत्र बताते हैं कि केवल सूरजकुंड रोड पर ही सैकड़ों स्पोर्ट्स इकाइयां अपने सामान पैक करके भेजती हैं, लेकिन विभाग के पास इस बात का सही सही उत्तर नहीं है कि उनके द्वारा कितने लोगों के संस्थान पंजीकृत हैं।
आटा चक्की से लेकर छोटे-बड़े फ्लोर मिल भी मेरठ जनपद में सैकड़ों की संख्या में हैं, जो अपने सामान को पैक करके बेचते हैं। जिस पर प्रिट किए जाने वाली मात्रा और गुणवत्ता की जांच करने का दायित्व भी बाट माप-तौल विभाग के पास है। लेकिन इनमें से शायद ही कोई ऐसी इकाई ऐसी हो, जिसका पीसीआर एक्ट के तहत विभाग में पंजीकरण कराया गया हो।
ऐसे में इनकी मात्रा और गुणवत्ता आम उपभोक्ताओं पर कितनी भारी पड़ती है, इसका भी कोई रिकार्ड मिल पाना संभव नहीं है। यही आलम मिष्ठान समेत विभिन्न ऐसे प्रतिष्ठानों पर लागू होता है, जो अपने सामान पैक करके बेचते हैं। जनपद में हालांकि महानगर और सरधना-मवाना तहसील स्तर पर बाट माप-तौल विभाग के आफिस मौजूद हैं, लेकिन इनके पास स्टाफ की कमी किसी से छिपी नहीं है।
ऐसे में विभाग की ओर से जारी किए जाने वाले लाइसेंस लेकर काम करने वालों की जनपद में बाढ़ देखी जा सकती है। यही लोग माप तौल के लिए बाट आदि के निर्माता, विक्रेता और मरम्मत कर्ता का दायित्व निभाकर व्यपारियों के बीच अपना रौब गालिब करते देखे जा सकते हैं। ऐसा नहीं किस सरकार की ओर से इस दिशा में चिंतन न किया गया हो, सूत्र बताते हैं कि करीब डेढ़ दशक पूर्व केंद्र सरकार ने बड़े धर्म कांटों के साथ औद्योगिक इकाइयों में लगे बड़े कांटों की जांच के लिए सचल वैन दस्ते की योजना बनाई थी।
इसके लिए मेरठ समेत मंडल स्तर पर लिफ्टिंग से लेकर वजन तौलने और मापने के सभी उपकरणों से लैस कंप्यूटराइज्ड वैन उपलब्ध कराई गई। लेकिन इसका उपयोग करके कितने धर्मकांटे और मिलों समेत विभिन्न बड़ी इकाइयों के कांटे चेक किए गए, इसका ठीक-ठीक जवाब अधिकारियों के पास मौजूद नहीं है।
सूत्र बताते हैं कि ऐसे ही खड़ी यह वैन कबाड़ा बन चुकी है। इस बारे में डिप्टी कंट्रोलर आनन्द स्वरूप का कहना है कि वैन की अवधि पूरी हो जाने के बाद उसे सुरक्षित खड़ा कर दिया गया है। इसकी वैधता बढ़ाने और अग्रिम आदेश के बारे में मुख्यालय को लिखा गया है। उनका कहना है कि जब तक वैन काम करने लायक रही, उसका प्रयोग किया गया है।