ओबीसी कार्ड खेल सकती है बीएसपी, महापौर पद के लिए चर्चित महिला होगी शामिल
सिटी न्यूज़: नगरीय निकाय चुनाव तो अभी दूर है, लेकिन सियासी हलके में बहुजन समाज पार्टी नगर निगम सहित नगर पालिका व नगर पंचायतों के चुनाव को लेकर अंदर खाने समीकरण बैठाने में जुटी है। चुनाव की अधिसूचना जारी होते ही बसपा अपने पत्ते खोल देगी। पार्टी की नजर इस बार महापौर की कुर्सी पर है। मेयर पद के लिए बसपा पिछड़ा वर्ग कार्ड खेलेगी, यह तय है।
अब क्योंकि बसपा के पास मेयर सीट के लिए ओबीसी वर्ग से कोई मजबूत प्रत्याशी नहीं है जो मेयर पद पर खरा उतर सके, इसलिए बसपा ने एक बड़े दल में सेंधमारी कर एक चर्चित महिला नेता को पार्टी में शामिल कराकर मेयर पद के लिए चुनाव मैदान में उतारने की रणनीति बनायी है। जिस महिला को बसपा अपने पाले में लाने की फिराक में है, उससे पार्टी की डील लगभग पक्की हो चुकी है, पर बसपा इस रणनीति तभी सफल हो सकती है, जब वह महिला नेता अपने दल से टिकट पाने में नाकाम रहे।
भाजपा हो या सपा, दोनो ही पार्टियों में सवर्ण वर्ग के कई वरिष्ठ नेता अपनी-अपनी पत्नियों को मेयर पद पर चुनाव लड़ाने के लिए टिकट की लाइन में खड़े हैं। अधिकतर दावेदार ब्राह्मण जाति से आते हैं। लेकिन टिकट किसे मिलेगा यह अभी किसी को पता नहीं है। लेकिन बसपा कैडर से मेयर पद के लिए अभी कोई चेहरा सामने नहीं आया है। बावजूद इसके बसपा मेयर पद पद भाजपा और सपा को बड़ी चुनौती देने की तैयारी कर रही है। हालांकि 2017 के नगर निगम चुनाव में मेयर पद के बसपा प्रत्याशी गिरीश चन्द्र वर्मा अपनी जमानत भी नहीं बचा पाये थे। बसपा उम्मीदवार को मात्र 6033 मत ही मिले थे। लेकिन नगर निगम का सीमा विस्तार होने और 41 गांवों के नगर निगम में शामिल होने के साथ ही इस बार चुनाव की तस्वीर अलग होगी।
बसपा के जोन कोआर्डीनेटर पवन कुमार का दावा है कि नगर निगम के नये परिसीमन का लाभ बसपा को मिलेगा। इसलिए नगर निगम के चुनाव में पार्षदों की संख्या बढ़ाने के साथ महापौर के चुनाव में सपा व भाजपा को पूरी क्षमता और मजबूती के साथ चुनौती देंगे। हालांकि बसपा नेता ने मेयर पद प्रत्याशी को लेकर किसी के नाम पर कोई टिप्पणी नहीं की। लेकिन उनसे बातचीत के आधार पर यह संकेत मिले हैं कि बसपा की नजर दूसरे दल की एक चर्चित महिला नेता पर टिकी है। इसी को लेकर बसपा ने अपनी चुनावी रणनीति बनायी है। माना जा रहा है कि निकाय चुनाव की अधिसूचना जारी होते ही बसपा अपने पत्ते खोल देगी। लेकिन बसपा अपने इस उद्देश्य में तभी सफल हो सकती है कि जिस पिछड़ी जाति की महिला नेता को बसपा अपने पाले में लाना चाहती है उसे अपने दल से टिकट न मिले।