गुजरे जमाने की बात हो जाएंगे नीले पीले कोच

Update: 2023-02-06 09:38 GMT

मेरठ: आने वाले समय में रेल की पटरी पर नीले पीले कोच नहीं दौड़ पाएंगे। इनके स्थान पर जर्मन तकनीक से बने सुरक्षा, गति, क्षमता और आराम में बेहतर माने जाने वाले लाल रंग के एलएचबी कोच को लाया जाएगा। अभी तक ऐसे कोच शताब्दी, राजधानी जैसी एक्सप्रेस ट्रेनों में ही लगे हुए देखे जाते हैं। भारतीय रेलवे दुनिया का चौथा और एशिया का दूसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है।

देश में 2200 से अधिक पैसेंजर ट्रेन हैं। भारत में रोजाना करीब 2.5 करोड़ यात्री ट्रेन से यात्रा करते हैं। राजधानी-शताब्दी के खास कोच भारतीय रेल के लाल रंग के कोच को लिंक हॉफमैन बुश (एलएचबी) कहा जाता है। यह कोच जर्मनी से साल 2000 में भारत लाए गए थे। अब यह पंजाब के कपूरथला में रेल कोच फैक्ट्री में बनते हैं। इनकी खासियत यह है कि स्टेनलेस स्टील से बने होते हैं। और दूसरे कोच की तुलना में हल्के होते हैं।

एलएचबी कोच में डिस्क ब्रेक दी जाती है, अपनी इसी खासियत की वजह से यह कोच 200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकते हैं। इनका यूज राजधानी-शताब्दी जैसी तेज गति वाली ट्रेन में किया जाता है। वहीं नीले रंग के आईसीएफ कोच को इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में बनाया जाता है। एलएचबी के उलट यह कोच लोहे के बने होते हैं, और इनमें एयर ब्रेक का इस्तेमाल किया जाता है।

चेन्नई की इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में बने यह कोच मेल एक्सप्रेस और इंटरसिटी के साथ पैसेंजर ट्रेन में भी लगे मिल जाते हैं। रेलवे विभाग के अधिकारियों से मिली जानकारी के मुताबिक बीते वर्षों में आईसीएफ कोच को खूबसूरत बनाने के लिए इसको नीले के बजाय पीला रंग देने का कार्यक्रम बनाया गया। 60 लाख रुपये की लागत से उत्कृष्ट कोच बनाने के लिए यह योजना लाई गई।

इसमें जहां नीले कोच का कलर बदल कर पीला किया गया, और कोच की इंटीरियर सजावट, बेहतर टॉयलेट, वाशबेसिन जैसी विभिन्न सुविधाएं देने का प्रयास किया गया। हालांकि बाद में रेलवे के उच्च अधिकारियों ने यह पाया कि आईसीएफ के कोच 110 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से अधिक नहीं ले पाते हैं। जबकि जर्मनी तकनीक से बनने वाले एलएचबी कोच 200 किलोमीटर तक की गति से चल जाते हैं।

सामान्य ट्रेनों में इंटीग्रल कोच फैक्ट्री पैराम्बूर चेन्नई द्वारा डिजाइन किए गए गहरे नीले रंग के कोच (आईसीएफ) होते हैं। इनके निर्माण की शुरूआत वर्ष 1952 में हुई। चूंकि यह स्टील से बने हुए होते हैं, इसलिए इनका वजन बहुत ज्यादा होता है। इसमें एयर ब्रेक होते हैं, जिनसे ट्रेन काफी दूर जाकर रुकती है। इसके अलावा आईसीएफ में बिजली बनाने के लिए डायनुमो का प्रयोग किया जाता है, जो गति को कम करते हैं।

आईसीएफ कोच के स्लीपर क्लास में 72 सीट होती हैं जबकि एसी-3 क्लास में 64 सीटें मौजूद होती हैं। वहीं, एलएचबी कोच ज्यादा लंबे होते हैं। दुर्घटना के दौरान आईसीएफ कोच के डिब्बे एक दूसरे के ऊपर चढ़ जाते हैं। क्योंकि इसमें डुअल बफर सिस्टम होता है। जबकि एलएचबी कोच दुर्घटना के दौरान एक दूसरे के ऊपर नहीं चढ़ते, क्योंकि इनमें सेंटर बफर कोपलिंग सिस्टम होता है।

एलएचबी लाल रंग के कोच जर्मनी के लिंक हॉफमेन बुश ने तैयार किए हैं। अभी इनका निर्माण कपूरथला में हो रहा है। यह स्टेनलैस स्टील के होने के कारण वजन में हलके होते हैं। इनमें डिस्क ब्रेक होते हैं, इस कारण तेज गति होने पर भी कम दायरे में ट्रेन रुक जाती है। इसमें सस्पेंशन हाइड्रोलिक सिस्टम होता है जिस कारण ट्रेन की आवाज कम होती है। झटके कम लगते हैं, स्पीड भी ज्यादा होती है।

इनके स्लीपर कोच में 80 और थर्ड एसी कोच में 72 यात्री बैठ सकते हैं। एलएचबी कोच को 24 महीने में एक बार ओवरहॉल कराने की जरूरत पड़ती है। इसके विपरीत आईसीएफ कोच को 18 महीने में ओवरहॉल कराना पड़ता है। इस संबंध में मेरठ सिटी स्टेशन के एसएस आरपी सिंह का कहना है कि रेलवे के उच्च अधिकारियों ने यह पाया कि आईसीएफ के कोच को एलएचबी में अपग्रेड कर दिया जाए। क्योंकि यह सुरक्षा, गति, क्षमता और आराम के मामले में बेहतर रहने वाले हैं। विभाग की ओर से इसी दिशा में काम किया जा रहा है। आने वाले दिनों में संभव है कि सभी ट्रेनों में एलएचबी के लाल कोच लगे हों। और नीले-पीले कोच पटरियों पर नजर ही न आ पाएं।

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