बीजेपी अपने हिंदुत्व मुद्दे की रक्षा के लिए जातिगत जनगणना से भागती है दूर
लखनऊ (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश में क्षेत्रीय दलों द्वारा जाति आधारित जनगणना का मुद्दा उठाए जाने के साथ ही राजनीति का 'मंडल' ब्रांड लगभग तीन दशकों के बाद हिंदी पट्टी में वापसी करने के लिए तैयार है। प्रदेश की मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी को प्रतीत होता है कि 2024 में भारतीय जनता पार्टी के किले में सेंध लगाना लगभग असंभव है, क्योंकि तब तक राम मंदिर तैयार हो जाएगा और भाजपा का हिंदुत्व मुद्दा पहले की तरह सिर उठाएगा।
राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहले ही 2024 के चुनावी मुद्दों पर अपनी मंशा जाहिर कर चुके हैं। हाल ही में उन्होंने कहा था कि चुनाव 80 बनाम 20 होगा।
समाजवादी पार्टी ने अब अंकगणित को 85 बनाम 15 में बदलने के लिए जातिगत जनगणना कार्ड खेला है। 85 ओबीसी और दलित हैं और 15 उच्च जातियां हैं।
राष्ट्रीय जातीय जनगणना की मांग को केंद्र सरकार की हालिया अस्वीकृति ने सपा को बदले की भावना से जाति कार्ड खेलने और भाजपा को कटघरे में खड़ा करने के लिए मजबूर कर दिया है।
भाजपा का मानना है कि ऐसी कोई भी कवायद जाति आधारित सामाजिक और राजनीतिक भावनाओं को भड़काएगी और हिंदुत्व-राष्ट्रवादी मुद्दे को नुकसान पहुंचाएगी। जाति हमेशा भारतीय लोकतंत्र का एक आंतरिक घटक रही है।
भाजपा के एक वरिष्ष्ठ पदाधिकारी कहते हैं, किसी की जाति राजनीतिक शक्ति, भूमि, और पुलिस या न्यायिक सहायता तक पहुंच को नियंत्रित कर सकती है। जातियां कुछ क्षेत्रों में स्थानीय होने के कारण स्थानीय राजनीति को भी प्रभावित करती हैं। जातिगत जनगणना कुछ लोगों में जाति की भावनाओं को बढ़ा सकती है। उन्होंने कहा, इससे झड़पें हो सकती हैं। राजनीतिक दल विशिष्ट जातियों के हितों का प्रतिनिधित्व करेंगे और नीति निर्माण की समावेशिता खत्म हो जाएगी।
दूसरी ओर, समाजवादी पार्टी का मानना है कि जातिगत जनगणना में ओबीसी की गणना से विभिन्न राज्यों में उनकी संख्या के बारे में ठोस आंकड़े उपलब्ध होंगे।
विभिन्न राज्य संस्थानों में ओबीसी की हिस्सेदारी की जांच के लिए इन आंकड़ों का उपयोग किया जाएगा।
एक सपा नेता ने कहा, यह स्पष्ट है कि सत्ता के अधिकांश क्षेत्रों, जैसे कि न्यायपालिका, शैक्षणिक संस्थान और मीडिया सामाजिक अभिजात वर्ग द्वारा नियंत्रित हैं। इन क्षेत्रों में दलित-बहुजन समूहों की मामूली उपस्थिति है। विभिन्न संस्थानों में ओबीसी-दलित का प्रतिनिधित्व उनकी जनसंख्या के अनुरूप नहीं है। जातीय जनगणना से सामाजिक रूप से हाशिए पर रहने वाले समूहों के बीच एक नई राजनीतिक चेतना उभरेगी, जो उन्हें सामाजिक न्याय के लिए एक नया आंदोलन शुरू करने के लिए मजबूर कर देगी।
दिलचस्प बात यह है कि उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने पिछड़ी राजनीति को बढ़ावा देते हुए अप्रत्याशित घटनाक्रम में जाति आधारित जनगणना की विपक्ष की मांग का समर्थन किया है। विपक्ष इस मुद्दे पर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को घेरने की योजना बना रहा है।
मौर्य ने कहा, मैं इसके लिए पूरी तरह तैयार हूं। उन्होंने कहा, न तो मैं और न ही मेरी पार्टी इस विषय पर विपक्ष में हैं।
हालांकि, उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि उत्तर प्रदेश ने अभी तक बिहार के उदाहरण का अनुसरण क्यों नहीं किया है, जहां जातिगत जनगणना की घोषणा की गई है।
इस मुद्दे पर सक्रिय भूमिका निभा रही सपा ने कहा, 'जाति जनगणना की मांग का समर्थन कर बीजेपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद ने अब केंद्र और यूपी में अपनी ही पार्टी की सरकारों पर सवाल खड़ा कर दिया है।
समाजवादी पार्टी अपने गैर-यादव ओबीसी चेहरे स्वामी प्रसाद मौर्य का इस्तेमाल हिंदू महाकाव्य 'रामचरितमानस' में पिछड़ों के कथित अपमान के मुद्दे को उठाकर पिछड़ों और दलितों से जोड़ने के लिए करती रही है और साथ ही साथ जातिगत जनगणना की मांग भी करती रही है।
पार्टी ने बड़ी चालाकी से जाति को धर्म से जोड़ दिया है। और उसे इसके आगे बढ़ने की उम्मीद है।
राजनीतिक विश्लेषकों को लगता है कि इस तरह के माहौल में बीजेपी निश्चित रूप से हाशिए पर चली जाएगी और जातिवाद के चक्रव्यूह में उसका 'हिंदू फस्र्ट' कार्ड शायद काम न आए।
जाति आधारित जनगणना आरक्षण पर बहस में वस्तुनिष्ठता लाने में काफी मददगार साबित हो सकती है।
ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत कोटा के समान पुनर्वितरण को देखने के लिए गठित रोहिणी आयोग के अनुसार ओबीसी आरक्षण के तहत लगभग 2,633 जातियां शामिल हैं।
कुछ जातियों के अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग नाम होते हैं, और कुछ जातियों के अलग-अलग उच्चारण होते हैं। कुल मिलाकर भारत में 3,000 जातियां और 25,000 उप-जातियां हैं, प्रत्येक एक विशिष्ट व्यवसाय से संबंधित हैं।
2011 की जनगणना से जाति जनगणना के आंकड़े जारी करने की मांग की गई है।
हालांकि जातिगत जनगणना के आंकड़ों को जारी करने और जनगणना श्रेणी के रूप में जाति के उपयोग के खिलाफ समाचार रिपोटरें में सबसे महत्वपूर्ण तर्क यह है कि इस तरह के डेटा आगे जातिगत विभाजन पैदा करेंगे और राजनीतिक दलों द्वारा विभाजन के लिए उपयोग किए जाएंगे।
इसलिए भाजपा अपने राष्ट्रवादी भावना के जरिए इस विभाजनकारी मुद्दे को पीछे रखना चाहती है।
--आईएएनएस