बासमती के दामों ने छुआ आसमान

Update: 2023-01-10 09:41 GMT

मोदीपुरम: दुनिया के सबसे लंबे बासमती चावल का निर्यात करने वाले भारत का डंका दुनिया भर में बज रहा है। देश को सशक्त और मजबूत स्थिति में पहुंचाने वाले देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समय में देश एक के बाद एक कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। अब बासमती को दुनिया भर में पसंद किया जा रहा है। क्योंकि इस बार बासमती के दाम भी आसमान छु रहे है। क्योंकि इस बार 1509 बासमती का चावल 4500 रुपये कुंतल बिक रहा है।

जबकि 1121 5000 हजार रुपये कुंतल बिक रहा है। इस वर्ष बासमती के दामों में कई गुना वृद्धि हुई है। बासमती की खेती पंजाब, हरियाणा और वेस्ट यूपी में की जाती है। इस बार मौसम की खराबी होने के कारण बासमती चावल की खेती पर ज्यादा असर पड़ रहा है। खासकर पाकिस्तान में बासमती की खेती बर्बाद हो गई है। जिसके बाद हिंदुस्तान में बासमती की खेती के उत्पादन में बेहद वृद्धि हुई है।

इस बार बासमती की खेती के लिए हिंदुस्तान में मौसम भी अनुकूल रहा है। जिसके चलते यहां बंपर पैदावार हुई है। इस बार 1509 बासमती की किस्म के दामों में भारी वृद्धि हुई है। पिछले वर्ष यह किस्म तीन हजार रुपये प्रति कुंतल थी, लेकिन इस वर्ष 4500 रुपये कुंतल है। 1121 किस्म पिछले वर्ष 3600 रुपये कुंतल थी। इस वर्ष 5 हजार रुपये प्रति कुंतल है। बीईडीएफ के प्रधान वैज्ञानिक डा. रितेश शर्मा का कहना है कि इस बर्ष बासमती के दामों ने आसमान छु रखे है।

पंजाब के बाद हरियाणा में किया जाता है पेस्टीसाइड दवाओं का अधिक इस्तेमाल

बासमती की ख्ोती करने वाले किसानों अंधाधुंध पेस्टीसाइड का इस्तेमाल करते है। हालांकि अत्यधिक पेस्टीसाइड का इस्तेमाल करने से इसकी पैदावार पर असर पड़ता है। हालांकि सबसे ज्यादा पंजाब फिर हरियाणा में पेस्टी साइड का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन वेस्ट यूपी में पेस्टीसाइड का कम इस्तेमाल होता है। लेकिन वेस्ट यूपी के किसान कम अनुभवी है। बासमती खेती करने में यहां के किसान कम अनुभव होने के कारण उन्हे जागरुक करने के लिए अभियान भी चलाया जा रहा है।

प्रयोगशालाओं के माध्यम से किया जा रहा है जागरूक

बीईडीएफ के प्रधान वैज्ञानिक डा. रितेश शर्मा का कहना है कि किसानों को पेस्टीसाइड का कम इस्तेमाल करने के लिए जागरुक किया जा रहा है। 2021 में किसानों को 75 कार्यशाला आयोजित की गई थी। जिसमें किसानों को प्रशिक्षण दिया गया। 2022 में 37 प्रयोगशालाएं आयोजित की गई है। इन प्रयोगशालाओं के माध्यम से किसानों को जागरुक किया जा रहा है। किसानों के खेत तक जाकर उन्हे प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

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