Bareilly: ट्रामा सेंटर के गेट पर एंबुलेंस का हूटर बजते ही सौदागर हो जाते हैं सक्रिय

स्ट्रेचर से पहले पहुंच जाते हैं ‘सौदागर’

Update: 2024-07-12 05:51 GMT

बरेली: एसआरएन अस्पताल में यदि कोई मरीज गंभीर अवस्था में इलाज के आया है तो उसे निशुल्क दवा और जांच की उम्मीद ज्यादा नहीं करनी चाहिए. क्योंकि ट्रामा सेंटर में मरीज के लिए स्ट्रेचर पहुंचने से पहले ही दवा और जांच कराने के लिए सौदागर पहुंच जाते हैं. पहले तो वे एंबुलेंस से मरीज को स्ट्रेचर पर रखने और ट्रामा सेंटर के अंदर लाने में मदद करते हैं. इसके बाद बाहर से जांच से लेकर दवा खरीदने तक की व्यवस्था में जुट जाते हैं. इसके लिए तीमारदार को एक्स-रे, ब्लड टेस्ट, अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन, एमआरआई, यूरिन व अन्य जांच पर्ची देते हुए दुकान का पता भी बता देते हैं. मजबूरी में तीमारदार बाहर से जांच कराने के साथ दवा भी खरीदते हैं.

जांच और इलाज के नाम पर वसूली : ट्रामा सेंटर के तीमारदार ने बताया कि को वार्ड के पास आदमी ने दवा लाने के लिए पर्ची दी. बाहर के मेडिकल स्टोर से 700 रुपये की दवा खरीदनी पड़ी. हालांकि डॉक्टर ने बची दवा को वापस करा दिया. वहीं, को ट्रामा सेंटर में भर्ती मुअज्जम महमूद की पत्नी से जांच और दवा के नाम पर 20 हजार रुपये वसूले गए. कौशाम्बी की पटाखा फैक्ट्री में हुए विस्फोट के घायल परिवारवालों से रात में तीन बजे जांच और दवा के नाम पर 11 हजार रुपये वसूलकर ‘सौदागर’ गायब हो गए थे.

ट्रामा सेंटर का एसी खराब, बरामदे में हो रहा इलाज: एसआरएन अस्पताल के ट्रामा सेंटर की तीसरी मंजिल पर स्थित वार्ड नंबर चार में एसी बंद होने से मरीजों को परेशानी हो रही है. गर्मी से परेशान मरीज वार्ड के अंदर से अपने बेड को निकाल करके बरामदे में लगा लिए हैं. बरामदे में कूलर, एसी तो नहीं है, लेकिन खुली जगह होने व पंखा चलने से राहत है. हालांकि मरीजों के बेड के पास जो जीवन रक्षक उपकरण लगे थे वह वार्ड में ही मौजूद हैं. बरामदे में आठ मराजों के बेड लगे हैं. जिन मरीजों के बेड के पास ऊपर सीलिंग फैन नहीं है वे घर से पंखा लाकर लगाए हुए हैं.

प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक ने की कार्रवाई: अस्पताल में बाहरी लोगों पर अंकुश लगाने लिए प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक डॉ. अजय सक्सेना पिछले चार दिन से अभियान चला रहे हैं. ट्रामा सेंटर में दवाओं के स्टॉक का मानक, जांच की स्थिति और कार्यरत कर्मचारियों पर बराबर निगरानी कर रहे हैं. उन्होंने दो कर्मचारियों पर कड़ी कार्रवाई भी की है.

विटामिन की जांच में हो रहा खेल: अस्पताल में तीन माह से विटामिन की जांच नहीं हो रही है. लेकिन मरीजों के पर्चे पर डॉक्टर जरूरत के अनुसार जांच लिखते हैं. मरीज जब केंद्रीय पैथोलॉजी में ब्लड टेस्ट कराने आते हैं तो वहां विटामिन की जांच बाहर से कराने की सलाह दी जाती हैं.

बाहरी लोगों की पहचान मुश्किल: अस्पताल में डॉक्टर, नर्स, इंटर्न, गार्ड, सफाई कर्मचारी सभी कर्मचारियों के ड्रेस तय हैं. लेकिन वार्डब्वाय और कार्यालय में कार्य करने वाले लोगों का ड्रेस तय नहीं है. इसका लाभ बाहरी लोग सहजता से उठाते हैं.

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