प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि आपराधिक इतिहास होने के आधार पर अभियुक्त को जमानत पर रिहा करने से इंकार नहीं किया जा सकता। जब तक कि प्रश्नगत मामले में उसके खिलाफ कोई विश्वसनीय साक्ष्य न हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह स्थापित सिद्धांत है कि जमानत एक नियम है और जेल अपवाद। जमानत देने का उद्देश्य है अभियुक्त ट्रायल के दौरान कोर्ट में उपस्थित हो।
याची के खिलाफ ऐसे कोई तथ्य नहीं कि वह भाग जायेगा या न्याय में कठिनाइयां पैदा करेगा, या अपराध की पुनरावृत्ति करेगा अथवा गवाहों व साक्ष्य को प्रभावित करेगा। इन तथ्यों की मौजूदगी न होने की दशा में अभियुक्त जमानत पाने का हकदार हैं। कोर्ट ने शर्तों के साथ जमानत मंजूर करते हुए इस केस में रिहा करने का आदेश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति विक्रम डी चौहान ने कानपुर नगर के सुमित अवस्थी की जमानत अर्जी स्वीकार करते हुए दिया है।
याची का कहना था कि उसके खिलाफ 46 आपराधिक केस का इतिहास है और उसने सबका खुलासा किया है। याची 11 जून 2015 से जेल में बंद हैं। सह अभियुक्त रवि पर फायरिंग करने का आरोप है। याची को षड्यंत्र के आरोप में फंसाया गया है। उसके खिलाफ अपराध में लिप्त होने का कोई सबूत नहीं है। एक ही घटना को लेकर फर्जी एफ आई आर दर्ज कराई गई है। याची पर साथियों के साथ शिकायतकर्ता को धमकाने का आरोप है। यह भी कहा कि आपराधिक इतिहास के कारण किसी को जमानत देने से इंकार नहीं किया जा सकता। याची के खिलाफ जेल में बंद होने के बावजूद गुजैनी थाने में धारा 386, 307, 506 व 120 बी के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई गई है।