चित्रकूट में गरीबों के लिए अमेरिकी प्रवासी डॉक्टर ने खोला अस्पताल

Update: 2022-07-02 06:13 GMT

सिटी न्यूज़: दुनिया में अभी भी ऐसे लोग हैं, जो अपना सबकुछ त्यागकर लोगों की सेवा को ध्येय बना लेते हैं। जिनको तीर्थक्षेत्र में आने के बाद ऐसा लगता है कि गरीबों के लिए अपनी सामर्थ्य के अनुसार कुछ करना चाहिए। ऐसी ही एक शख्सियत डा. मिलिंद देवगांवकर एमडी हैं। मूल रूप से नागपुर (महाराष्ट्र) के निवासी डा. मिलिंद अमेरिका के मोरगनटाउन में न्यूरोलाजी स्पेशलिस्ट हैं। इसके अलावा ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी में भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वह लगभग दो साल पहले चित्रकूट आए। यहां तीर्थक्षेत्र में घूमते हुए उनका मन यहीं रम गया।

गरीबों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं: चित्रकूट में चिकित्सा को लेकर तमाम कमियां नजर आईं तो उनके अंदर का चिकित्सक जाग उठा और उन्होंने तय कर लिया कि वह यहीं गरीबों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराएंगे। दीनदयाल शोध संस्थान के प्रधान सचिव अभय महाजन से पूर्व संपर्क का लाभ उनको मिला और डीआरआई में एक भवन उनको आवंटित कर दिया गया।

मातृ सदन नामक अस्पताल: डा. मिलिंद बताते हैं कि लगभग दो साल पहले उन्होंने यहां मातृ सदन नामक अस्पताल खोला। फिलहाल यह अपनी शुरुआती अवस्था में है। डा. मिलिंद के साथ मुंबई निवासी डा. नंद किशोर सेंदानी भी गरीबों की निस्वार्थ सेवा में जुटे हैं। उन्होंने ने बताया कि उनका मुंबई में अपना अस्पताल है, इसके अलावा उन्होंने दादा दरबार बड़वाहा, ओमकारेश्वर, मिशन हास्पिटल सेंधवा आदि में अपनी सेवाएं दी हैं और अब वह डा. मिलिंद के मिशन में उनके साथ हैं। डा. मिलिंद की पत्नी का स्वर्गवास हो चुका है जबकि डा. नंद किशोर अपनी पत्नी के साथ अब यहीं बस गए हैं।

निश्चेतक न होने से हो रही दिक्कत: यहां गर्भवती महिलाओं का इलाज तो होता है पर अभी आपरेशन की व्यवस्था नहीं है। डा. नंदकिशोर ने बताया कि निश्चेतक न होने की वजह से सर्जरी के किसी तरह के केस को यहां नहीं लिया जाता। जल्द ही निश्चेतक के आने की आशा है। पत्नी के स्वर्गवास से हुआ वैराग्य लगभग 54 वर्षीय डा. मिलिंद अमेरिका के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में नियमित सेवाएं दे रहे हैं। वह हर हफ्ते या पंद्रह दिन में चार-पांच दिन के लिए वहां जाते हैं और वहां से जो भी कमाते हैं, अस्पताल में लगा देते हैं।

गरीबों को बहुत कम रकम में उम्दा इलाज: उन्होंने बताया कि उनका सपना है कि यहां गरीबों को बहुत कम रकम में उम्दा इलाज मुहैया हो। इसके लिए वह कई संस्थाओं से भी संपर्क में हैं, जिनसे कुछ फंड मिल सके। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि वह गरीबों की सेवा करते रहेंगे, जब तक उनके पास एक भी रुपया होगा। उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी का ब्रेस्ट कैंसर से स्वर्गवास हुआ तो उनको समझ में आया कि रुपये पैसे भी उस दैवीय शक्ति की इच्छा के सामने तुच्छ हैं।

अस्पताल में हर सुविधा मुहैया कराने की चाह: डा. मिलिंद बताते हैं कि वह चाहते हैं कि उनके अस्पताल में अल्ट्रासाउंड, एक्सरे, सीटी स्कैन आदि तमाम सुविधाएं बहुत कम पैसे में गरीब लोगों को उपलब्ध हो जाएं। इसके लिए वह लगातार प्रयासरत हैं। आशा है कि अन्य समाजसेवियों की मदद से इस अस्पताल को वह जिले में गरीबों की चिकित्सा का विकल्प बना देंगे। यहां हर तरह की जांच, हर रोग का इलाज हो सकेगा। उन्होंने लोगों से इस भागीरथी कार्य में सहयोग की भी अपेक्षा की। डा. मिलिंद ने यह भी कहा कि जो लोग उनके साथ जुड़कर गरीबों की सेवा करना चाहते हैं, वे उनके साथ आ सकते हैं, जिससे मदद का कारवां और लंबा हो।

मरीजों का आना हुआ शुरू: तीमारदारों ने की सेवाभाव की प्रशंसा अस्पताल में अभी से डेढ़ दो सौ मरीजों का आनाजाना शुरू हो गया है। इनमें ज्यादातर मरीज न्यूरो से संबंधित हैं। यहां भर्ती डिंगवाही की राजकुमारी के पति रामजी ने बताया कि उसकी पत्नी को चलने फिरने में दिक्कत होती थी, कई जगह दिखाया पर आराम नहीं मिला। यहां काफी हद तक राहत है। पैसा भी बहुत कम लग रहा है। पहाड़ी निवासी रामरूप ने बताया कि उसके बेटे गुलाब के एक दुर्घटना के बाद से हाथ-पैर सुन्न पड़ गए थे। इलाहाबाद में इलाज में लगभग एक लाख खर्च हो गया पर कोई फायदा नहीं हुआ। यहां लगभग चार दिन के इलाज में उसके हाथ-पैरों में हरकत शुरू हो गई है। तीमारदारों ने यहां की नर्सों व डाक्टरों के व्यवहार की भी प्रशंसा की।

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