Agra: टैक्स की मार से एक चौथाई रह गया जूता कारोबार

अब हालत यह हैं कि 25 जोड़ी जूते की बिक्री कर पाना भी संभव नहीं हो पा रहा

Update: 2024-12-17 05:17 GMT

आगरा: जनपद के 6000 से ज्यादा छोटे जूता निर्माताओं के समक्ष अपना अस्तित्व बचाना मुश्किल हो रहा है. अनेकों छोटे कारखानेदार हैं जो एक दशक पहले तक 100 से 200 जोड़ी रोज आराम से बेच लेते थे. अब हालत यह हैं कि 25 जोड़ी जूते की बिक्री कर पाना भी संभव नहीं हो पा रहा.

तीन दशक पहले इस कारोबार में कदम रखने वाले सरवन सिंह ने बताया कि आगरा में अधिकतर इकाई कारीगर द्वारा स्वयं संचालित की जाती हैं. किसी कारीगर से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह टैक्स के नियमों का भी पालन करे. जीएसटी व्यवस्था में दिखाने भर को कम टर्नओवर वाले छोटे कारखानेदारों को पंजीयन से छूट दी गई है. वास्तविकता यह है कि वे आईटीसी के पेच के कारण बिना पंजीकरण के प्रतिस्पर्द्धा में टिक ही नहीं सकते. पंजीकरण न होने की वजह से आईटीसी का लाभ न ले पाने के कारण ये व्यवस्था से ही बाहर होते जा रहे हैं.

टैक्स विशेषज्ञों के अनुसार जीएसटी में आईटीसी की बड़ी भूमिका है. छोटे कारखानेदार जो माल खरीद कर लाते हैं, पंजीकरण न होने के कारण उस पर मिलने वाली आईटीसी को वह एडजस्ट ही नहीं कर पाते. वे टैक्स वसूलने के लिए भी अधिकृत नहीं. ऐसे में उनकी अधिक लागतें उनको परेशान कर रही हैं. इसी कारण उनको तैयार जोड़ियों के खरीदार ही नहीं मिल रहे. वहीं,बड़ी इकाइयां अपने हर प्रकार के खर्चों को लागत में समायोजित कर लेती हैं. एक तरफ सरकार उद्यमिता को प्रेरित करने के लिए स्कीम ला रही है. दूसरी तरफ छोटे उद्यम को टैक्स के जंजाल में फंसा कर काम करने से रोका जा रहा है.

समस्या की जड़ कच्चा माल जूता उद्योग की समस्या कच्चे माल पर टैक्स की है. जीएसटी लागू होने के समय इसकी दर अधिक रहने के कारण विसंगति बढ़ी है. जो इकाई वाले किन्हीं कारणों से पंजीयन से दूर रहते हैं. वे उत्पादन में प्रयोग होने वाले माल के टैक्स को एडजस्ट नहीं कर पाते. जागरूकता की कमी के कारण यह लोग औपचारिकताओं से दूरी बनाना बेहतर मानते हैं. लिहाजा इनकी लागत 18 फीसदी अधिक हो गई. वहीं,बड़ी इकाई वाले पहले सस्ते जूतों पर टैक्स कम होने की वजह से सुकून में रहे. उनको पांच फीसदी की दर मुफीद लगती थी. यह रकम वे खरीदार से अपने मुनाफों में समायोजित कर लेते थे. 12 फीसदी होने के बाद से वे भी परेशान होने लग गए हैं. इन दोनों की परेशानी का एक ही हल है, कच्चे माल पर टैक्स की दर को कम किया जाना.

आधा रह गया उत्पादन

25 साल से जूते के उत्पादन में हूं. अब तो ऑर्डर मिलना भी मुश्किल हो गया है. खर्च बढ़ते जा रहे, आमदनी कम हो रही. पहले एक जोड़ी पर 30 रुपये मिल जाते थे. अब 15 रुपये में काम चलाना पड़ रहा. ऑर्डर भी कम रह गए.

रवि मौर्य, कारखानेदार

25 जोड़ी बेचना मुश्किल

हम तीन दशक से इस कारोबार में है. पहले 100 जोड़ी बनाते थे, आराम से बिक जाती थीं. अब तो 25 के भी ऑर्डर नहीं मिल रहे. मुनाफे कम होते जा रहे हैं. कुछ समय और यह हाल चला तो कारखाना चलाना भी मुमकिन नहीं रहेगा.

श्याम जरारी, कारखानेदार

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