Agra: जांच में नामी फार्मा कंपनियों की दवाएं भी फर्जी निकली

"छह मेडिकल स्टोर्स पर छापे मारे गए थे"

Update: 2025-01-04 06:03 GMT

आगरा: ताजनगरी में नामी फार्मा कंपनी की दवाएं भी फर्जी हो सकती हैं. तमाम बड़े ब्रांड औषधि विभाग से इसकी शिकायत कर चुके हैं. छापेमारी हो चुकी हैं, जांच के लिए नमूने भी भरे गए हैं. को भी इसी शक पर छह मेडिकल स्टोर्स पर छापे मारे गए थे.

कितनी भी बड़ी कंपनी हो, आगरा में उनका नकली माल तैयार हो रहा है. बीते पांच सालों में छापेमारियों के दौरान कई अवैध फैक्ट्रियां पकड़ी गई हैं. इनमें विख्यात ब्रांड की पैकेजिंग में नकली माल मिला है. कुछ की रिपोर्ट आ चुकी हैं. कुछ अभी जांच प्रक्रिया में हैं. खास बात यह कि इनकी पैकेजिंग हूबहू असली जैसी होती है. ड्रग कंपोनेंट के साथ एमआरपी भी समान होती है. यानि शक की कोई गुंजाइश ही नहीं रहती. मरीज, तीमारदार की छोड़िए, विक्रेताओं के साथ औषधि विभाग के अफसर भी असली-नकली में अंतर नहीं कर पाते. इसीलिए इनके सैंपल केंद्रीय प्रयोगशालाओं में भेजे जाते हैं. बीते तीन महीनों में औषधि विभाग के पास बड़ी कंपनियों की करीब एक दर्जन शिकायतें आई भी हैं. को हुई छापेमारी के पीछे मशहूर ‘एबाट’ कंपनी की शिकायत है.

अभी तक यह दवाएं पकड़ी गईं: आगरा में बीते पांच सालों में सबसे ज्यादा दर्द निवारक और खांसी की सीरप पकड़ी गई है. यह दोनों ही नशे के काम में लाई जाती हैं. साथ ही एंटीबायोटिक दवाएं भी बनाई जाती हैं. कई बार कंपनियों की दवाएं रीफिलिंग करके उनकी डोज बढ़ाई जाती है. बल्केश्वर में पकड़े गए माफिया पंकज अग्रवाल की फैक्ट्री में रीफिलिंग से डोज बढ़ाई जाती थी.

महंगी दवाओं की ही नक्काली: नकली और नशीली दवाएं बनाने वाले अक्सर महंगी दवाइयों की नक्काली करते हैं. इनका मार्केट शेयर भी अधिक होता है. डिमांड पर बिकती हैं. इसलिए अधिक मार्केटिंग करने की जरूरत नहीं पड़ती. केवल रिटेलर को अधिक कमीशन का लालच दिया जाता है. छद्म नामों की अनजान कंपनियों के नाम पर भी ब्रांडेड कंपनियों की नक्काली की जाती है.

बिक्री गिरने पर चलता है पता: दरअसल इन कंपनियों का नकली माल जब मार्केट में आ जाता है तब ब्रांडेड कंपनियों की बिक्री धड़ाम हो जाती है. इसके बाद कंपनियों के प्रतिनिधि आते हैं, बाजार में रेकी करते हैं. ग्राहक बनकर रिटेलरों से उक्त दवाओं को खरीदते हैं. बैच नंबर का मिलान करने पर सच सामने आ जाता है. इसके बाद औषधि विभाग की शरण लेनी पड़ती है.

बसों के जरिए भेज देते हैं माल: करीबी राज्यों और शहरों में नकली दवाइयां भेजने का सबसे अच्छा जरिया रोडवेज या निजी बसें हैं. ड्राइवर और कंडक्टर के साथ माफिया की जुगलबंदी है. बोरियों या कार्टन में माल पैक कराकर बसों की डिकी में डाल दिया जाता है. संबंधित स्टेशन से पहले ही माल को उतार लिया जाता है. माल उतारने वाला ही ड्राइवर-कंडक्टर को भुगतान करता है.

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