70 वर्षीय बेटी कमला गुप्ता बताती हैं कि 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग

Update: 2022-08-15 09:15 GMT

न्यूज़क्रेडिट: अमरउजाला

काशी नारायण की 70 वर्षीय बेटी कमला गुप्ता बताती हैं कि 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। देश आजाद होने के बाद मेस्टन रोड पर मंदिर में पहली बार उनके पिता ने तिरंगा लहराया था। बताया कि गांधी जी से प्रेरित होकर वे स्वच्छता अभियान से जुड़े थे।

आजादी की वीरगाथाओं में कानपुर के नारियल बाजार वाली मंगली हलवाई की दुकान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। ये वही दुकान है, जहां स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. काशी नारायण गुप्त दुकान में बने कोयले के गोदाम में हथियार छिपाकर रखते थे। इसी दुकान में बने गुप्त तहखाने में शालिग्राम शुक्ल, गणेश शंकर विद्यार्थी, सुरेंद्रनाथ और वीरेंद्र नाथ पांडेय जैसे क्रांतिकारी बैठकें करते थे।

इतना ही नहीं सख्ती होने पर इसी तहखाने में कई-कई दिन तक छिपे रहते थे। स्व. काशी नारायण के 93 वर्षीय बेटे प्रताप नारायण गुप्त ने बताया कि उस दौर में उनके पिता की दुकान देशी घी से बनी मिठाई के लिए मशहूर थी। एक किस्सा अभी तक याद है जब कुछ अंग्रेज सिपाही एक युवक को नारियल बाजार वाली गली में पीट रहे थे, तभी पिता जी ने रिवॉल्वर लेकर उनको दौड़ा लिया था।

1930 में सल्पोसिव एक्ट के तहत नारियल बाजार में हुए बम कांड में भी पिता डेढ़ साल तक जेल में रहे। 1931 में हुए सांप्रदायिक दंगों में भी पीड़ितों को सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया। इसी दंगे में गणेश शंकर विद्यार्थी की मौत हो गई थी। बताया कि पिता के कहने पर 17 साल की उम्र में विदेशी कपड़ों की होली जलाई और आंदोलनों में हिस्सा लिया। 26 जनवरी 1995 को उनकी बीमारी से मौत हो गई थी।

बेटी का दावा: पिताजी ने कानपुर में फहराया था पहली बार तिरंगा

काशी नारायण की 70 वर्षीय बेटी कमला गुप्ता बताती हैं कि 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। देश आजाद होने के बाद मेस्टन रोड पर मंदिर में पहली बार उनके पिता ने तिरंगा लहराया था। बताया कि गांधी जी से प्रेरित होकर वे स्वच्छता अभियान से जुड़े थे। गलियों में सफाई करते थे।

देश के लिए लड़े, पकड़े नहीं गए और पेंशन नहीं भी नहीं ली

भूसाटोली कछियाना के रहने वाला स्व. सूर्यदेव शुक्ला और उनके पुत्र स्व. भूदेव शुक्ला ने भी आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया। खास बात यह है कि दोनों को अंग्रेज कभी पकड़ नहीं पाए। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने के बाद भी किसी ने पेंशन या अन्य योजना का लाभ नहीं लिया। भूदेव शुक्ला के बेटे स्वदेश ने बताया कि बाबा सूर्यदेव सिंकदरपुर कर्ण जिला उन्नाव में रहते थे। स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने की वजह से घर पर पुलिस की दबिश पड़ने लगी। इसके चलते परिवार के साथ कानपुर आ गए और ठेकेदार बनकर स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया।

Tags:    

Similar News

-->