त्रिपुरा विधानसभा चुनाव: 'ग्रेटर त्रिपरालैंड' की मांग, क्षेत्रीय पार्टियां बनाएगी मुद्दा

त्रिपुरा के अगले विधानसभा चुनाव (Assembly elections) में जनजातियों के लिए अलग राज्य का मुद्दा जरूर कुछ गुल खिलायेगा।

Update: 2021-12-05 15:29 GMT

त्रिपुरा के अगले विधानसभा चुनाव (Assembly elections) में जनजातियों के लिए अलग राज्य का मुद्दा जरूर कुछ गुल खिलायेगा। ये मांग उठाने वाले हैं त्रिपुरा के विभिन्न जनजातीय ग्रुप जिनका कहना है कि जनजातियों के लिए एक अलग राज्य बनाया जाना चाहिए। इन ग्रुपों का तर्क है कि उनका अस्तित्व खतरे में है।

त्रिपुरा के जनजातीय गुटों ने अलग राज्य की मांग को लेकर हाल में दिल्ली में जंतर मंतर पर धरना दिया था और कांग्रेस, शिवसेना और आम आदमी पार्टी ने उनका सपोर्ट किया है। अलग राज्य की मांग के समर्थन में 'तिपरा मोठ (त्रिपहा इंडिजेनस प्रोग्रेसिव रीजनल अलायन्स) और आईपीएफटी (इंडिजेनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ़ त्रिपुरा) जैसे प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दल भी एक साथ आ गए हैं।
ये दल त्रिपुरा के जनजातीय समुदायों के लिए एक अलग 'ग्रेटर त्रिपरालैंड' (greater tripura land) राज्य की मांग कर रहे हैं। इनकी मांग है कि केंद्र सरकार संविधान के अनुच्छेद 2 और 3 के तहत एक अलग राज्य बनाए। संविधान के अनुच्छेद 2 में नए राज्यों की स्थापना की बात कही गयी है। इसके अनुसार – संसद नए राज्यों को संघ में शामिल कर सकता है या नए राज्य की स्थापना कर सकता है। अनुच्छेद 3 में विद्यमान राज्यों के नाम, क्षेत्र, सीमा में दलाव और नए राज्य के सीमांकन की व्यवस्था है। त्रिपुरा में कुल 19 अनुसूचित जनजातियाँ हैं जिनमें त्रिपुरी (तिपरा और तिपरासा) बहुन्संख्या में हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य में 5.92 लाख त्रिपुरी हैं। जिनके बाद 1.88 लाख रियांग और 83 हजार जमातिया हैं। दरअसल, त्रिपुरा पर 13 वीं शताब्दी से लेकर 15 अक्तूबर 1949 में भारत सरकार के साथ में विलय संधि पर हस्ताक्षर किये जाने तक माणिक्य राजवंश का राज रहा था।
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