सुप्रीम कोर्ट ने सिविल सेवा में उम्मीदवार की नियुक्ति पर विचार करने का दिया निर्देश

Update: 2022-06-15 12:23 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, निजी बचाव का अधिकार अनिवार्य रूप से एक रक्षात्मक अधिकार है और यह तभी उपलब्ध होता है जब परिस्थितियां बिना द्वेष के की गई कार्रवाई को उचित ठहराती हों। सुप्रीम कोर्ट ने त्रिपुरा में बांग्लादेश सीमा पर घुसपैठ करने वाले एक तस्कर को गोली मारने के मामले में बीएसएफ के एक कांस्टेबल के निजी रक्षा के अधिकार की स्वीकार किया और उसके खिलाफ लगाए गए हत्या के आरोप को गैर इरादतन हत्या में बदल दिया।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस हिमा कोहली की अवकाशकालीन पीठ ने हत्या के अपराध में दोषी ठहराए जाने के बाद पहले ही 11 साल कैद की सजा काट चुके कांस्टेबल महादेव को रिहा कर दिया। मामले के मुताबिक, बांग्लादेश की सीमा से सटे त्रिपुरा के बामुतिया में 5 जून 2004 को गश्त ड्यूटी के दौरान अपीलकर्ता ने नंदन देब पर अपनी राइफल से गोली चलाने की बात स्वीकार की थी। गोली लगने से हुए जख्म के परिणामस्वरूप उसकी मृत्यु हो गई थी।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, निजी आत्मरक्षा का अधिकार परिस्थितियों को देखते हुए अपीलकर्ता के पक्ष में जाता है। अभियुक्त को निजी बचाव का अधिकार तब उपलब्ध होता है जब वह या उसकी संपत्ति खतरे का सामना कर रही हो और उसकी सहायता के लिए राज्य की मशीनरी के आने की बहुत कम गुंजाइश हो। साथ ही सभी अदालतों को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अपनी या अपनी संपत्ति का बचाव करने के लिए आरोपी द्वारा की गई हिंसा का अनुपात चोट के अनुपात में होना चाहिए।

जवान के पास नहीं था विकल्प

कोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता को अचानक घुसपैठियों के एक समूह से सामना करना पड़ा था, जो खतरनाक रूप से उसके करीब आ गया था और हथियारों से लैस था और उस पर हमला करने के लिए तैयार था। ऐसे में उसके पास कोई अन्य विकल्प नहीं बचा था। जिस कारण उसने अपनी राइफल से उन पर गोली चलाकर अपनी जान बचाई और इस प्रक्रिया में एक तस्कर को दो गोलियां लगीं, जिससे उसकी मौत हो गई।

पीठ ने कहा, इसलिए हमारी राय है कि अपीलकर्ता को मृतक की हत्या करने के लिए दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए था।

बीएसएफ की तस्करों की सूची में शामिल था मृतक

पीठ ने यह भी कहा, मृतक तस्करी गतिविधियों में लिप्त था और उसका नाम बीएसएफ द्वारा रखी गई तस्करों की सूची में शामिल था। पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपील को आंशिक रूप से स्वीकार किया। हाईकोर्ट ने हत्या और आजीवन कारावास की सजा के खिलाफ याचिकाकर्ता की अर्जी खारिज कर दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने सिविल सेवा में उम्मीदवार की नियुक्ति पर विचार करने का निर्देश दिया

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को संविधान के अनुच्छेद -142 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए केंद्र सरकार को एक ऐसे उम्मीदवार की नियुक्ति पर विचार करने का निर्देश दिया जो सिविल सेवा परीक्षा, 2014 में सफल रहा था लेकिन आवश्यक बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) नेे होने के कारण उसे अस्थायी रूप से अयोग्य घोषित कर दिया गया था।

जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि चूंकि उम्मीदवार के. राजशेखर रेड्डी को बाद में पुन: चिकित्सा परीक्षण में फिट पाया गया था, इसलिए उनके मामले पर चार सप्ताह के भीतर विचार किया जाना चाहिए।

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