मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उस बयान, 80 फीसदी बनाम 20 फीसदी का चुनाव होगा, तो क्या यूपी चुनाव में एकतरफा हो जाएगा मुस्लिम वोट बैंक

Update: 2022-01-15 06:53 GMT

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उस बयान के कारण यूपी की सियासत गरमाई हुई है जिसमें उन्होंने कहा कि राज्य में 80 फीसदी बनाम 20 फीसदी का चुनाव होगा। मुख्यमंत्री के इस बयान पर विपक्ष ने आरोप लगाया है कि योगी का यह बयान राज्य में बहुसंख्यक हिंदू और अल्पसंख्यक मुस्लिम आबादी के बीच ध्रुवीकरण पैदा करने की कोशिश है। आखिर मुख्यमंत्री योगी के बयान के मायने क्या हैं। तो क्या उनके बयान से यह मान लिया जाए कि मुस्लिम वोट बैंक एकतरफा हो जाएगा? जानकारों की माने तो इस तरह की टिप्पणी प्रदेश में मुस्लिम वोट बैंक को बांटने के लिए किया जाता है।

यूपी में 3.8 करोड़ जनसंख्या मुसलमानों की

उत्तर प्रदेश की सियासी दाल विभिन्न मुद्दों के साथ-साथ कई समुदायों के वोटों की आंच पर पकती है। 24 करोड़ की आबादी वाले यूपी में करीब 3.8 करोड़ जनसंख्या मुसलमानों की है, जिनके वोट कई सीटों पर हार या जीत तय करने का माद्दा रखते हैं। 75 जिलों और 18 डिविजन में बंटा उत्तर प्रदेश वोटों के मामले में भी विभाजित है। उत्तर प्रदेश में मुसलमान दूसरे सबसे बड़े (20 प्रतिशत) धार्मिक समुदाय हैं। रामपुर, फर्रुखाबाद और बिजनौर ऐसे क्षेत्र हैं, जहां मुस्लिम आबादी करीब 40 फीसदी है। इसके अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश, रोहिलखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश की कई ऐसी सीटें हैं, जहां चुनावी नतीजों पर मुस्लिम वोट प्रभाव डालते हैं।

कांग्रेस के पतन के बाद हुई मुस्लिम प्रतिनिधित्व में वृद्धि

एक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के प्रतिनिधित्व में ऐतिहासिक रूप से उतार-चढ़ाव आया है। 1970 और 1980 के दशक में समाजवादी पार्टियों के उदय और कांग्रेस के पतन के बाद पहली बार विधानसभा में मुसलमानों के प्रतिनिधित्व में वृद्धि हुई, यह वृद्धि 1967 में 6.6 फीसदी और 1985 में 12 फीसदी तक हुई। 1980 के दशक के अंत में राज्य में पहली बार भाजपा के उदय ने इस प्रतिशत को 1991 में 5.5 फीसदी तक ला दिया। इसी अवधि में उम्मीदवारों के रूप में मुसलमानों की कुल भागीदारी में भी कमी आई है, हालांकि प्रमुख दलों (भाजपा के अलावा अन्य) द्वारा कम नामांकन के कारण भी ऐसा हुआ। मुस्लिमों के प्रतिनिधित्व में वृद्धि का दूसरा चरण 1991 के बाद शुरू हुआ और 2012 तक चला, जब मुस्लिम उम्मीदवारों ने 17 फीसदी विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की।

2002 के पूर्व के आंकड़ों में उत्तराखंड शामिल है

वर्ष विधायकों की संख्या

2017   23

2012   64

२००७   54

2002   64

1996   38

1993   28

143 सीटों पर है मुस्लिम वोटों का असर

कुल मिलाकर बात करें तो उत्तर प्रदेश की ऐसी 143 सीटें हैं, जहां मुस्लिम वोटरों का असर है। करीब 70 सीटें तो ऐसी हैं, जहां मुस्लिम आबादी बीस से तीस प्रतिशत के बीच है और 43 सीट ऐसी हैं, जहां मुस्लिम आबादी तीस फीसदी से ज्यादा है। यूपी की तीन दर्जन यानी 36 सीटें तो ऐसी हैं, जहां पर मुस्लिम प्रत्याशी अपने दम पर जीत हासिल कर सकते हैं। जबकि 107 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां मुसलमान वोटर हार या जीत तय कर सकते हैं।

9 सीटों पर 55 फीसदी मुस्लिम मतदाता

वहीं यूपी वेस्ट की ऐसी 9 सीटें हैं, जहां वोटों से उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला मुस्लिम मतदाता करते हैं। इन 9 सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की तादाद करीब 55 फीसदी है। इन 9 सीटों में मेरठ सदर, रामपुर सदर, संभल, मुरादाबाद ग्रामीण व कुंदरकी, अमरोहा नगर, धौलाना, सहारनपुर की बहट और सहारनपुर देहात शामिल हैं।

मत विभाजन और वोटों की एकजुटता

1991 के बाद से, मुसलमान हर चुनाव में औसतन 18 सीटों पर हार गए हैं। 1996 और 2007 में हारने वाले उम्मीदवारों के आठ और सात मामले थे, जबकि 2012 और 2017 में इस तरह के मामलों की संख्या क्रमश: 26 और 27 थी। भाजपा को इस तरह के समीकरणों से भाजपा को फायदा मिला है। 1991 के बाद से, उसने 126 सीटों में से 104 पर जीत हासिल की है, जिसमें मुस्लिम उम्मीदवारों के बीच विभाजित मतदान हुआ था। मत विभाजन भी समय के साथ एक ही निर्वाचन क्षेत्रों में जरूरी नहीं है, जो इशारा करता है कि यह केवल जनसांख्यिकी का सवाल नहीं है, बल्कि निर्वाचन क्षेत्र के स्तर पर वोटों की एकजुटता का सवाल है।


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