क्या केसीआर तीसरी बार बन पाएंगे तेलंगाना के सीएम

Update: 2023-09-10 14:55 GMT
तेलंगाना: इस साल के आखिरी तक जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें से दक्षिण भारत से सिर्फ एक राज्य तेलंगाना बाकी बचा है। तेलंगाना का सियासी दंगल दो कारणों से बेहद अहम हो जाता है। पहली वजह है कि प्रदेश के अस्तित्व के बाद से ही बीआरएस अध्यक्ष और यहां के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाल रहे के. चंद्रशेखर राव के लिए यह पहला मौका है, जब उन्हें किसी विरोधी दल से दमदार चुनौती मिल सकती है। साथ ही दूसरी वजह कर्नाटक में मिली हार के बाद दक्षिण भारत के 5 बड़े राज्यों में से सिर्फ़ तेलंगाना एक ऐसा राज्य है, जहां पर भाजपा पार्टी की सियासी उम्मीदों को आकार मिलने की संभावना है।
नवंबर-दिसंबर में हो सकते हैं चुनाव
बता दें कि 16 जनवरी 2024 को तेलंगाना विधानसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा है। ऐसे में राजस्थान और मध्यप्रदेश के साथ तेलंगाना में भी नवंबर-दिसंबर में चुनाव हो सकते हैं। साल 2014 से जब से तेलंगाना आंध्रप्रदेश से अलग हुआ है, तब से इस राज्य में के. चंद्रशेखर राव और उनकी पार्टी भारत राष्ट्र समिति BRS का एकछत्र राज कायम रहा है। केसीआर साल 2014 में इस राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। वहीं अलग राज्य बनने के बाद साल 2018 में तेलंगाना में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए थे। इस साल तेलंगाना में दूसरी बार विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में केसीआर के पास एक बार फिर से राज्य के सीएम बनने का मौका है।
हालांकि बीजेपी जिस तरह से यहां पर जीतने के लिए तैयारियों को अंजाम दे रही है। उसे देखते हुए लगता है कि केसीआर के लिए यह मुकाबला आसान नहीं होने वाला है। कुछ महीने पहले तक 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर केसीआर गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेसी विपक्षी मोर्चा बनाने की कवायद में जुटे थे। इसके लिए केसीआर ने बीजेपी और कांग्रेस से इतर कई दलों के शीर्ष नेताओं से मुलाकात की थी। लेकिन उनकी इस मुहिम को खास बल नहीं मिल सका। क्योंकि शरद पवार जैसे दिग्गज नेताओं ने साफ कर दिया था कि बीजेपी और कांग्रेस के खिलाफ गठबंधन बनाना बेकार है।
बीजेपी से मिल सकती है बड़ी चुनौती
केसीआर प्रमुख के. चंद्रशेखर राव को भी इस बात का एहसास है कि बीजेपी पिछले 4-5 साल में बड़ी तेजी से राज्य में मजबूत हुई है। साथ ही भाजपा का प्रयास है कि तेलंगाना में भी उत्तर भारत के राज्यों की तर्ज पर मुस्लिम-हिदू के आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण हो। जिससे कि भाजपा के सत्ता में आने के साथ ही केसीआर की सत्ता में वापसी मुश्किल हो जाए। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य में 85% हिंदू और करीब 13% मुस्लिम हैं। वहीं सवा फीसदी के आसपास राज्य में ईसाई भी हैं।
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हिंदुत्व एक मुद्दा
केसीआर पर राज्य के बीजेपी नेता अक्सर हिंदुओं के साथ भेदभाव का आरोप लगाते रहे हैं। वहीं बीजेपी के तेलंगाना प्रदेश अध्यक्ष बंदी संजय कुमार केसीआर पर आरोप लगाते हुए कहा था कि पुजारियों को मानदेय ना देकर और मंदिरों के निर्माण की अनुमति नहीं देकर वह हिंदुओं के साथ भेदभाव कर रहे हैं। लेकिन अब चुनाव के पास आते ही पिछले कुछ महीनों से केसीआर अब खुलकर जिस तरह से हिंदू से जुड़े मुद्दों को लेकर मुखर दिख रहे हैं। उससे यह साफ पता चलता है कि यह बीआरएस का बीजेपी से आगामी चुनाव में मिलने वाली चुनौती का तोड़ है।
बीजेपी के इस दांव का तोड़ निकालते हुए राज्य सरकार ने पिछले महीने धूप दीप नैवेद्यम कार्यक्रम के अलग-अलग मंदिरो को दिए जाने वाली वित्तीय सहाय़ता को 10,000 रुपए प्रति महीना करने का ऐलान किया है। इससे पहले यह राशि 6,000 रुपए महीने थी। वहीं वैदिक पुजारियों के मानदेय को बढ़ाकर 5000 रुपए महीने किए जाने की घोषणा की गई है। इसके अलावा तेलंगाना सरकार ने 3% की हिस्सेदारी वाले ब्राह्मण समुदाय के लिए कई कल्याणकारी योजनाओं की भी घोषणा की है।
इसके अलावा मुख्यमंत्री केसीआर ने मई महीने में हैदराबाद के गोपनपल्ली में 9 एकड़ में बने ब्राह्मण सदन भवन का उद्घाटन किया। ब्राह्मण सदन भवन में हिंदू धर्मग्रंथों के लिए एक लाइब्रेरी और संतों के लिए आवास की व्यवस्था की गई है। इसके अलावा वैदिक स्कूलों के लिए भी 2 लाख रुपये की एकमुश्त अनुदान को वार्षिक अनुदान में बदले जाने का ऐलान किया गया है।
राज्य की अस्मिता से केसीआर कनेक्शन
विधानसभा चुनाव के दौरान केसीआर खुद को तेलंगाना की स्थानीय पहचान और अस्मिता से जोड़कर भाजपा को बाहरी रास्ता दिखाने का प्रयास करेगी। क्योंकि के. चंद्रशेखर राव की भूमिका को तेलंगाना को अलग राज्य बनाने में अहम माना जाता है। वहीं पिछले 9 सालों में केसीआर सरकार ने राज्य के आर्थिक हालात में पहले से काफी सुधार किया है।
एससी-एसटी समुदाय
बता दें कि राज्य में विधानसभा की 18 सीटें अनुसूचित जाति और 9 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। संविधान के अनुच्छेद 244(1) के तहत तेलंगाना के 33 जिलों में 9 जिले शेड्यूल एरिया में आते हैं। राज्य में 9.34% आदिवासियों की संख्या है। केसीआर की पार्टी की पकड़ एससी और एसटी दोनों ही समुदाय में बेहद मजबूत है। हालांकि राज्य में केसीआर पार्टी की स्थिति काफी ज्यादा मजबूत नजर आती है। क्योंकि राज्य सरकार में दूसरे पेज के तहत 1.50 लाख परिवारों को 'दलित बंधु' योजना देने का ऐलान किया है। इस योजना के तहत दलित परिवार को 10 लाख रुपए की सहायता दी जाती है। ऐसे में केसीआर को आर्थिक विकास और सामाजिक समीकरणों को साधने में महारत हासिल है।
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