5 फरवरी को पीएम मोदी करेंगे संत रामानुजाचार्य की 216 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पांच फरवरी को हैदराबाद में 11वीं सदी के संत और समाज सुधारक रामानुजाचार्य की 216 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण करेंगे।

Update: 2022-01-20 17:22 GMT

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पांच फरवरी को हैदराबाद में 11वीं सदी के संत और समाज सुधारक रामानुजाचार्य की 216 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण करेंगे। गौरतलब है कि इस प्रतिमा को 'स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी' नाम दिया गया है। यह प्रतिमा हैदराबाद के बाहरी इलाके शमशाबाद में 45 एकड़ के परिसर में स्थित है।

आयोजकों ने गुरुवार को बयान जारी कर कहा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पांच फरवरी, 2022 को 'स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी' को दुनिया को समर्पित करेंगे। इसमें कहा गया कि रामानुजाचार्य की 1000वीं जयंती उत्सव के मौके पर दो फरवरी से कार्यक्रम शुरू होंगे। इन 'समारोहम' के तहत सामूहिक मंत्र-जाप और 1035 यज्ञ जैसी आध्यात्मिक गतिविधियों का आयोजन तय किया गया है। इस आयोजन को रामानुज सहस्राब्दी समारोहम नाम दिया गया है।
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने कहा कि वे और आध्यात्मिक गुरु चिन्ना जियार स्वामी कार्यक्रम के सहआयोजक की भूमिका में होंगे। उनके अलावा कई और राज्यों के मुख्यमंत्री, नेता और सेलिब्रिटी इस कार्यक्रम का हिस्सा बनेंगे। बता दें कि एक हजार करोड़ रुपये के इस प्रोजेक्ट को सिर्फ भक्तों द्वारा दिए गए दान से ही पूरा किया गया है।
क्या है नए मंदिर की खासियत?
मंदिर की खासियत ये है कि यहां रामानुजाचार्य की दो मूर्तियां होंगी और दोनों की ही बनावट अलग तरह से की गई है। पहली मूर्ति अष्टधातु से बनाई गई है और यह 216 फीट ऊंची है। इसे स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी नाम दिया गया है। दूसरी प्रतिमा मंदिर के गर्भगृह में रखी जाएगी, जो संत के 120 सालों की यात्रा की याद में 120 किलो सोने से बनाई गई है। खास बात यह है कि इस अंदरुनी कमरे का उद्घाटन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 13 फरवरी को करेंगे।
कौन थे संत रामानुजाचार्य?
वैष्णव संत रामानुजाचार्य का जन्म सन 1017 में तमिलनाड़ु में हुआ था। उन्होंने कांची में अलवार यमुनाचार्य से दीक्षा ली थी। श्रीरंगम के यतिराज नाम के संन्यासी से उन्होंने संन्यास की दीक्षा ली। पूरे भारत में घूमकर उन्होंने वेदांत और वैष्णव धर्म का प्रचार किया। उन्होंने कई संस्कृत ग्रंथों की भी रचना की। उसमें से श्रीभाष्यम् और वेदांत संग्रह उनके सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ रहे। 120 वर्ष की आयु में 1137 में उन्होंने देहत्याग किया।
रामानुजाचार्य स्वामी ने सबसे पहले समानता का संदेश दिया था। समाज में उनके योगदान को आज तक वो स्थान नहीं मिल पाया, जिसके वो अधिकारी थे। इस मंदिर के जरिए, उनकी समाज के निर्माण में रचनात्मक योगदान को दिखाया जाएगा।
मंदिर में पांच भाषाओं में इतिहास सुन सकेंगे भक्त
मंदिर में दर्शनार्थियों को 5 भाषाओं में ऑडियो गाइड मिल सकेगी। अंग्रेजी, हिंदी, तमिल, तेलुगु सहित एक और भाषा इसमें शामिल होगी। यहां हर तरह की सुविधा होगी। मंदिर के भीतर रामानुजाचार्य के पूरे जीवन को चित्रों और वीडियो में दिखाया जाएगा। साथ ही, दक्षिण भारत के प्रसिद्ध 108 दिव्य देशम् की रेप्लिका भी इस स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी के चारों ओर बनाई जा रही है।
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