तमिलनाडु में इस समुदाय को नहीं मिलेगा 10.5% आरक्षण, कोर्ट ने किया रद्द

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में गुरुवार को तमिलनाडु के अति पिछड़े लोगों में शामिल वन्नियार समुदाय को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले में दिए गए

Update: 2022-03-31 10:54 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में गुरुवार को तमिलनाडु के अति पिछड़े लोगों में शामिल वन्नियार समुदाय को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले में दिए गए 10.5 फीसदी आरक्षण को निरस्त कर दिया। न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की पीठ ने मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा।

तमिलनाडु विधानसभा ने पिछले साल फरवरी में वन्नियार समुदाय को 10.5 फीसदी आरक्षण देने के तत्कालीन सत्तारूढ़ अन्ना द्रमुक के विधेयक को पारित कर दिया था। मौजूदा द्रमुक सरकार ने इस पर अमल के लिए जुलाई 2021 में एक आदेश पारित किया था।उसने अति पिछड़े समुदाय को दिए कुल 20 प्रतिशत आरक्षण को विभाजित कर दिया था और जातियों को फिर से समूहों में बांटकर तीन अलग श्रेणियों में विभाजित किया तथा वन्नियार को 10 प्रतिशत उप-आरक्षण मुहैया कराया था। वन्नियार को पहले वन्नियाकुल क्षत्रिय के नाम से जाना जाता था।
पीठ ने कहा, "हमारी राय है कि वन्नियाकुल क्षत्रियों के साथ अति पिछड़े समूहों के बाकी के 115 समुदायों से अलग व्यवहार करने के लिए उन्हें एक समूह में वर्गीकृत करने का कोई ठोस आधार नहीं है और इसलिए 2021 का अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन है। अत: हम उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हैं।" शीर्ष न्यायालय ने कहा कि हालांकि जाति आंतरिक आरक्षण का आधार हो सकती है लेकिन यह एकमात्र आधार नहीं हो सकती।
इससे पहले, उच्चतम न्यायालय ने मामले को वृहद पीठ को सौंपने से इनकार करते हुए कहा था कि उसका मानना है कि इस मामले पर वृहद पीठ के सुनवाई करने की आवश्यकता नहीं है। पीठ ने कहा, ''हम इस मामले को वृहद पीठ के पास भेजने की दलील मानने के पक्ष में नहीं हैं, आप अपनी दलीलें रख सकते हैं।''
उच्चतम न्यायालय याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए राजी हो गया था और उसने कहा था कि इस आरक्षण के तहत हुए दाखिले या नियुक्तियां प्रभावित नहीं होंगी। न्यायालय का फैसला तमिलनाडु राज्य, पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) अन्य द्वारा याचिका उन याचिकाओं पर आया है जिसमें वन्नियार को दिया आरक्षण रद्द करने के उच्च न्यायालाय के एक नवंबर 2021 के आदेश को चुनौती दी गयी थी।उच्च न्यायालय ने कहा था कि राज्य सरकार आबादी पर बिना मात्रात्मक आंकड़ों के वन्नियार को आरक्षण देने वाला ऐसा कानून नहीं ला सकती है।


Tags:    

Similar News

-->