'भारत माता' के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी पर मद्रास HC ने पादरी की FIR रद्द करने से किया इनकार

तमिलनाडु में कैथोलिक पादरी द्वारा भारत माता कहे जाने के मामले में मद्रास हाई कोर्ट ने FIR रद्द करने से इनकार कर दिया है.

Update: 2022-01-09 07:16 GMT

तमिलनाडु में कैथोलिक पादरी द्वारा भारत माता कहे जाने के मामले में मद्रास हाई कोर्ट ने FIR रद्द करने से इनकार कर दिया है. बता दें पादरी को पिछले साल जुलाई में गिरफ्तार किया गया था. मद्रास उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को फैसला सुनाया कि 'भारत माता' के खिलाफ उनकी टिप्पणी आईपीसी की धारा 295 ए के तहत धार्मिक भावनाओं को आहत करने का अपराध है. अदालत ने पी जॉर्ज पोन्नैया के खिलाफ सात में से चार आरोपों को खारिज कर दिया.

दरअसल अपने भाषण में पोन्निया ने अपमानजनक टिप्पणी करते हुए भारत माता को 'बीमारी फैलाने वाली' कहा था. पोन्निया ने भारत माता के सम्मान में चप्पल पहनने से परहेज करने वाले नागरकोली के बीजेपी विधायक एमआर गांधी पर तंज कसते हुए ऐसा कहा था. 'वो (भाजपा विधायक) इसलिए चप्पल नहीं पहनते क्योंकि वो अपनी भारत माता को दर्द नहीं देना चाहते और हम यह सुनिश्चित करने के लिए चप्पल पहनते हैं कि हमारे पैर गंदे न हों और भारत माता के कारण हमें कोई बीमारी न हो.इसके अलावा उन पर विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के लिए आईपीसी की अन्य धाराओं में भी मुकदमा दर्ज किया गया था.

'गैर-ईसाई कृत्य करने के लिए मिलेगी चेतावनी'

कन्याकुमारी में दिवंगत कार्यकर्ता स्टेन स्वामी को श्रद्धांजलि देने के लिए एक चर्च में आयोजित एक बैठक में 18 जुलाई को उन्होंने ऐसा कहा था. इसी बीच मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ के न्यायमूर्ति जीआर स्वामीनाथन ने कहा, 'मुझे यकीन है कि फैसले के दिन, भगवान याचिकाकर्ता को गैर-ईसाई कृत्य करने के लिए चेतावनी देंगे. डॉ बी आर अंबेडकर के साथ अपने स्वर की तुलना करने वाले याचिकाकर्ता के तर्क पर, अदालत ने कहा, 'एक तर्कवादी सुधारवादी या अकादमिक या कलाकार से आने वाले धर्म या धार्मिक विश्वासों से संबंधित एक कठोर बयान एक अलग स्तर पर खड़ा होगा.
कोर्ट ने कहा, 'हमें सार्वजनिक जीवन और प्रवचन में चार्ल्स डार्विन, क्रिस्टोफर हिचेन्स, रिचर्ड डॉकिन्स, नरेंद्र दाभोलकर, एम एम कलबुर्गी और ऐसे ही कई लोगों की जरूरत है. जब स्टैंड-अप कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी या अलेक्जेंडर बाबू मंच पर प्रदर्शन करते हैं, तो वे दूसरों का मजाक उड़ाने के अपने मौलिक अधिकार का प्रयोग कर रहे होते हैं. अदालत ने कहा कि पोन्नैया द्वारा कहे गए शब्द "पर्याप्त रूप से उत्तेजक" थे और वे द्वेष और वर्चस्ववाद की निंदा करते हैं.अदालत ने कहा कि पोन्नैया का भाषण आईपीसी की धारा 153ए के तहत अपराध के अंदर आता है. मामले को आईपीसी की धारा 143, 269 और 506 (1) और महामारी रोग अधिनियम, 1897 की धारा 3 के तहत रद्द करने से इनकार कर दिया गया है.


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