फ्री राशन में अब नहीं मिलेगा अनाज? सस्ता अनाज योजना के लिए खतरे की घंटी
सरकारी स्तर पर रियायती मूल्य पर गेहूं देने की योजना के लिए खतरे की घंटी बजने लगी है।
सरकारी स्तर पर रियायती मूल्य पर गेहूं देने की योजना के लिए खतरे की घंटी बजने लगी है। इस साल सरकारी खरीद केंद्रों पर अब तक महज 19 हजार कुंतल गेहूं ही खरीदा जा सका है। जबकि इस साल 31 मई तक 22 लाख कुंतल गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा गया था। पिछले पांच साल में यह पहला मौका है जब 20 मई तक इतनी कम मात्रा में सरकारी खरीद केंद्रों पर गेहूं आया।
पिछले साल अब तक दो लाख कुंतल से ज्यादा गेहू खरीदा जा चुका था। जिस प्रकार सरकारी केंद्रों की जगह किसानों का सारा गेहूं खुले बाजार में पहुंच रहा है, उससे भविष्य में गेहूं और उससे निर्मित उत्पादों की कीमतों पर असर पड़ने की पूरी आशंका है।
गरीब अन्न कल्याण योजना में भी कम हुआ गेहूं: प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना में गेहूं का कोटा घटाया जा चुका है। कोरोना काल में शुरू हुई इस योजना के तहत एनएफएसए योजना के तहत आने वाले 61.94 लाख लोगों को प्रति माह दो किलो चावल और तीन गेहूं मिलता रहा है। यह योजना सितंबर तक लागू है। लेकिन अगले महीने से इसमें गेहूं की मात्रा घटकर एक किलो रह जाएगी। चावल की मात्रा दो किलो बढ़ा दी है।
राज्य खाद्य योजना से भी गायब होने जा रहा गेहूं: एनएफएसए के दायरे बाहर के परिवारों को राज्य खाद्य सुरक्षा योजना (एसएफए) के तहत हर महीने ढाई किलो चावल और पांच किलो गेहूं दिया जाता रहा है। इस कोटे का अनाज केंद्र सरकार टाइड ओवर के तहत राज्य को देती है।
अगले महीने से इस योजना में भी गेहूं की सप्लाई बंद हो जाएगी। प्रत्येक राशन पर केवल साढ़े सात किलो चावल ही मिलेगा। यह व्यवस्था मार्च 2023 तक लागू रहेगी। उत्तराखंड के साथ केरल और तमिलनाडू का गेहूं भी बंद किया गया है।
एफसीआई पर रहेगा राज्य पूरी तरह से निर्भर:राज्य स्तर पर गेहूं खरीद में कमी होने से राज्य को पूरी तरह से भारतीय खाद्य निगम पर निर्भर रहना पड़ेगा। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि राज्य में सस्ते अनाज से जुड़ी सभी योजना केंद्र द्वारा संचालित हैं। इसलिए राज्य स्तर पर खरीद कम होने की भरपाई एफसीआई के मार्फत हो जाएगी। यह जरूर है कि एफसीआई से अनाज आवंटन और उठान में थोड़ा समय लग सकता है।(संबंधित खबर पेज चार)
देश और प्रदेश में खाद्यान्न की कोई कमी नहीं है। सरकारी केंद्र पर गेहूं बिक्री के लिए न आने का मतलब है कि किसान को खुले बाजार में उसकी फसल का ज्यादा बेहतर दाम मिल रहा है। भाजपा का लक्ष्य ही किसान की आमदनी बढ़ाना है।