कब आएगा 'वन नेशन, वन इलेक्शन' बिल, साथ चुनाव के क्या फायदे-नुकसान, 7 सवालों के जवाब
फायदे-नुकसान, 7 सवालों के जवाब
इस वक्त पूरे देश में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर बहस छिड़ी हुई है। एक संभावना यह भी जताई जा रही है कि विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव साथ ही होंगे। केंद्र सरकार ने लोकसभा का विशेष सत्र 18 सितंबर से बुलाया है। पार्टियां, राजनेता संभावना जता रहे हैं कि इस विशेष सत्र में 'वन नेशन, वन इलेक्शन' बिल लाया जाएगा।
क्या वाकई इस सत्र में 'वन नेशन, वन इलेक्शन' बिल लाया जा सकता है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए भास्कर ने संसदीय नियम-कायदों, व्यवस्था और कार्यों की बारीकी से समझ रखने वाले राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवाड़ी सहित कुछ सांसदों से बात की। कुछ सांसदों ने इस विषय पर बात तो की, लेकिन नाम न छापने की शर्त पर।
एक्सपट्र्स के हवाले से जानिए उन सब सवालों के जवाब जो आप जानना चाहते हैं…
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कई मौकों पर 'वन नेशन, वन इलेक्शन' पर सहमति जता चुके हैं। अब उन्हीं की अध्यक्षता में 'वन नेशन, वन इलेक्शन' संबंधी कमेटी गठित की गई है।
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कई मौकों पर 'वन नेशन, वन इलेक्शन' पर सहमति जता चुके हैं। अब उन्हीं की अध्यक्षता में 'वन नेशन, वन इलेक्शन' संबंधी कमेटी गठित की गई है।
भास्कर : इस सत्र में 'वन नेशन, वन इलेक्शन' बिल लाए जाने की चर्चा है, क्या यह संभव है?
एक्सपर्ट कमेंट : अभी तक 'वन नेशन, वन इलेक्शन' केवल घोषणा मात्र है। ऐसा नहीं है कि इसी सत्र में बिल आएगा और पास हो जाएगा। 18 सितंबर से शुरू होने वाले पांच दिवसीय विशेष सत्र में 12 दिन बचे हैं। 'वन नेशन, वन इलेक्शन' से संबंधित पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी तीन दिन पहले बनी है। रिपोर्ट तैयार करने में वक्त लगेगा। कमेटी की राज्यों, राजनीतिक दलों, विशेषज्ञों के साथ कई बैठकें होना अभी बाकी हैं। इसके बाद कमेटी रिपोर्ट तैयार करेगी। इस रिपोर्ट के आधार पर बिल तैयार किया जाएगा। ऐसे में इस सत्र में बिल लाया जाना संभव नहीं लग रहा है।
एक्सपर्ट कमेंट : कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने जैसे कई उदाहरण हैं, जो बताते हैं कि मोदी सरकार बड़े फैसले लेने में हिचकती नहीं है। ऐसे में 'वन नेशन, वन इलेक्शन' की रूपरेखा जल्द तय होगी और इसे लागू करने में भी वक्त जाया नहीं किया जाएगा। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली 8 सदस्यीय कमेटी की मंगलवार को दिल्ली में पहली बैठक होगी। कमेटी के अध्यक्ष रामनाथ कोविंद ने कमेटी का गठन होते ही काम शुरू कर दिया है। वह कानून और विधि मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात कर चुके हैं, लेकिन ये सिर्फ शुरुआत है। इतने बड़े काम को करने में कमेटी कम से कम दो महीने का वक्त तो लेगी और इस रिपोर्ट के बाद ही बिल तैयार होगा। अगर रफ्तार से काम किया जाए तो भी बिल अगले सत्र में ही लाया जा सकेगा।
एक्सपर्ट कमेंट : इस प्रक्रिया को 6 पॉइंट से समझ सकते हैं।
1. पहले कमेटी की रिपोर्ट आएगी।
2. इस रिपोर्ट को केंद्रीय मंत्रिमंडल में रखा जाएगा। केंद्रीय मंत्रिमंडल इस रिपोर्ट पर विचार करेगा।
3. विचार करने के बाद जिन कानूनों में संशोधन करना होगा और संविधान में संशोधन करना होगा, उसकी रूपरेखा तैयार की जाएगी और संशोधनों के ड्राफ्ट तैयार किए जाएंगे।
4. इन संशोधन के बाद ही बिल लोकसभा में और फिर राज्यसभा में पेश किया जाएगा।
5. बिलों पर विचार करने के लिए संसदीय समितियां बनी होती हैं। इस बिल को भी स्टैंडिंग कमेटी या जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी में भेजा जाएगा। अध्ययन के लिए बिल कौन-सी कमेटी को भेजा जाए, वह सदन तय करेगा।
6. कमेटी से बिल पर विचार-विमर्श के बाद इसे सदन में फिर रखा जाएगा और चर्चा के बाद ये बिल पारित होगा।
'वन नेशन, वन इलेक्शन' के मुद्दे पर 2019 में हुई सर्वदलीय बैठक की तस्वीर। इसकी अध्यक्षता पीएम नरेंद्र मोदी ने की थी। उस वक्त सपा, टीआरएस, शिरोमणि अकाली दल जैसी पार्टियों ने इस सोच का समर्थन किया था।
'वन नेशन, वन इलेक्शन' के मुद्दे पर 2019 में हुई सर्वदलीय बैठक की तस्वीर। इसकी अध्यक्षता पीएम नरेंद्र मोदी ने की थी। उस वक्त सपा, टीआरएस, शिरोमणि अकाली दल जैसी पार्टियों ने इस सोच का समर्थन किया था।
भास्कर : संसदीय समिति में बिल जाता है तो क्या उसी सत्र में बिल को अध्ययन के बाद समिति सदन में रख सकती है?
एक्सपर्ट कमेंट : आमतौर पर यह है कि बिल पेश होने के बाद संसदीय समिति को सुपुर्द किया जाता है। इसके बाद जब संसद का सत्र आता है तो पहले दिन सदन में बिल की रिपोर्ट प्रस्तुत होती है। दो सत्रों के बीच 2 से 3 महीनों का गैप रहता है। यानी, जब किसी भावी सत्र में 'वन नेशन, वन इलेक्शन' को लेकर बिल आएगा और समिति को सौंपा जाएगा और समिति जल्द अध्ययन करेगी तो भी उससे अगले सत्र में ही सदन में वापस बिल आएगा। प्रक्रिया में न्यूनतम समय जो लगता है, वह तो लगेगा ही।
एक्सपर्ट कमेंट : नहीं, फिलहाल ऐसा नहीं लग रहा। क्योंकि विधानसभा चुनाव में बेहद कम समय बचा है और 'वन नेशन, वन इलेक्शन' अभी सिर्फ एक घोषणा भर है।
एक्सपर्ट कमेंट : इसकी बड़ी वजह यह है कि कुछ ही समय बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। लोग कयास लगा रहे हैं कि विधानसभा चुनावों को आगे खिसका कर लोकसभा चुनाव के साथ ही कराया जाएगा। इसी वजह से ये बहस का मुद्दा बना हुआ है। वरना 'वन नेशन, वन इलेक्शन' कोई नई बात नहीं है। 'वन नेशन, वन इलेक्शन' का विचार संविधान निर्माताओं के दिमाग में भी था और पीपल्स रिप्रजेंटेटिव एक्ट में भी यह व्यवस्था है कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ-साथ हों। चुनावों का साथ-साथ होना ही राष्ट्रहित में है और संसदीय लोकतंत्र के हित में भी है।
एक्सपर्ट कमेंट : मई 2014 में जब केंद्र में मोदी सरकार आई, तो कुछ समय बाद ही एक देश और एक चुनाव को लेकर बहस शुरू हो गई।
दिसंबर 2015 में लॉ कमीशन ने 'वन नेशन, वन इलेक्शन' पर एक रिपोर्ट पेश की थी। इसमें बताया था कि अगर देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराए जाते हैं, तो इससे करोड़ों रुपए बचाए जा सकते हैं। इसके साथ ही बार-बार चुनाव आचार संहिता न लगने की वजह से डेवलपमेंट वर्क पर भी असर नहीं पड़ेगा। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए 2015 में सिफारिश की गई थी कि देश में एक साथ चुनाव कराए जाने चाहिए।
PM मोदी ने जून 2019 में पहली बार औपचारिक तौर पर सभी पार्टियों के साथ इस मसले पर विचार विमर्श के लिए बैठक बुलाई थी। तब केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ BJP नेता रवि शंकर प्रसाद ने कहा था कि देश में कमोबेश हर महीने चुनाव होते हैं, उसमें खर्चा होता है। आचार संहिता लगने के कारण कई प्रशासनिक काम भी रुक जाते हैं। हालांकि, कई पार्टियों ने विरोध दर्ज कराया था।
जानिए- क्यों थम गया एक समय पर चुनाव का सिलसिला
वर्ष 1952 से लेकर 1967 तक लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ ही होते थे। 1968 के बाद कुछ राज्यों की सरकारें भंग हुई और फिर लोकसभा भी किसी न किसी कारण से 4 बार भंग हुई। इस कारण से चुनाव आगे-पीछे होने लगे और एक समय पर चुनाव की परंपरा ही टूट गई।
नुकसान क्या : पूरे देश में साल भर कोई न कोई चुनाव चलता रहता है। आचार संहिताएं लागू होती हैं, विकास रुक जाता है। केंद्र सरकार और राज्य स्तर पर सरकारें, राजनीतिक दल, नेता, सरकारी मशीनरी और लोग चुनाव के कामों में लगे रहते हैं।
फायदा क्या : पूरे देश में एक समय चुनाव होंगे तो आर्थिक रूप से बड़ा फायदा होगा। अरबों रुपयों की बचत होगी, विकास प्रभावित नहीं होगा। एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में 60,000 करोड़ रुपए खर्च हुए थे।
एक बार खर्च बढ़ेगा, लेकिन बाद में फायदा : 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अगस्त 2018 में लॉ कमीशन की एक रिपोर्ट आई थी। इसमें कहा था कि अगर 2019 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ होते हैं तो उससे 4,500 करोड़ रुपए का खर्च बढ़ेगा। ये खर्चा इसलिए क्योंकि EVM ज्यादा लगानी पड़ेंगी। इसमें ये भी कहा गया था कि साथ चुनाव कराने का सिलसिला आगे बढ़ता है तो 2024 में 1,751 करोड़ रुपए ही एक्स्ट्रा खर्च होंगे और धीरे-धीरे ये खर्च कम होता जाएगा।
कितनी ईवीएम खरीदनी पड़ेंगी : यदि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होंगे तो 2 लाख अतिरिक्त ईवीएम की जरूरत पड़ेगी। इनकी खरीद में एक बार पैसा खर्च होगा। ईवीएम भारत सरकार की कंपनियां भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक ऑफ इंडिया ही बनाती हैं।
50 प्रतिशत विधानसभाओं की मंजूरी जरूरी : 21वें विधि आयोग (2015-2018) के तत्कालीन अध्यक्ष न्यायाधीश बी. एस. चौहान ने 'वन नेशन, वन इलेक्शन' पर 30 अगस्त-2018 को पेश की गई अपनी रिपोर्ट में बताया है कि देश में इस सिस्टम को लागू करना आसान नहीं है। देश के संवैधानिक ढांचे में लोक प्रतिनिधि अधिनियम-1950 के तहत संसद में इस विषय पर व्यापक चर्चा होने के बाद देश की 50 प्रतिशत विधानसभाओं में भी इसे मंजूर करवाने की आवश्यकता है। एक समय पर ही चुनाव करने के लिए संसद कानून बना सकती है या इसके लिए दो-तिहाई राज्यों की रजामंदी की जरूरत होगी।
पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ कराने का सुझाव दिया था।
पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ कराने का सुझाव दिया था।
भैरोसिंह शेखावत ने मनमोहन सिंह को दिए थे दो सुझाव
पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत ने तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को दो सुझाव दिए थे। सुझाव सुनने के बाद डॉ. मनमोहन सिंह ने शेखावत से कहा था कि आपने बिलकुल सही दो बीमारियां बताई हैं और उनका सही उपचार भी बताया है।
पहला सुझाव: देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ
कारण : देश के संसाधनों, धन, ऊर्जा, समय आदि की बचत होगी। भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी, क्योंकि एक साथ चुनाव हुए तो राजनीतिक दलों को अलग-अलग चंदा नहीं लेना पड़ेगा। साथ ही बार-बार लगने वाली चुनाव आचार संहिता से छुटकारा मिलेगा। संहिता लागू होने के बाद कई सारे विकास के काम बाधित होते हैं। जनता को यह सब झेलना पड़ता है।