कोटा: वैसे तो सम्पूर्ण भू-क्षेत्र का स्वामित्व सरकार का होता है फिर भी सरकारी दफ्तर एक अच्छे सुविधापूर्ण भवन को तरस रहा है। इसका एक उदाहरण परिवहन कार्यालय है। जिसका नया भवन बने सालों गुजर गए लेकिन आज भी वहां सिर्फ लाइसेंस से जुड़े कार्य ही होते हैं जबकि शेष कार्य छत्रपुरा पैलेस स्थित पुराने परिवहन कार्यालय में ही किए जाते हैं। विभागीय अधिकारी भले ही इसका कारण नये भवन में पर्याप्त जगह ना होना बताते है लेकिन इसके मूल में कई अन्य कारणों के होने की भी आशंका है। दरअसल परिवहन कार्यालय के गेट से लेकर पूरी सड़क पर इन तथाकथित यातायात सलाहकारों ने डेरा जमाया हुआ है। सरकारी जमीन पर अपनी गुमटियां जमाकर काबिज हुए बैठे हैं। आम जनता का काम हो या ना हो, इनके जरूर होते हैं। कुछ यातायात सलाहकार तो बिना तनख्वाह के स्वयंभू संविदकर्मी बनकर कुछ मौकों पर बाबूओं के साथ काम करते नजर आते हैं। इसलिए ये लोग हरदम परिवहन कार्यालय को वहां शिफ्ट करने में रोड़ा अटकाते हैं। छोटे-छोटे कमरों में चल रहे इस परिवहन कार्यालय के ना तो कर्मचारियों को सुविधा है और ना जनता को राहत मिल पा रही है। भवन के कई कमरों में तो एक साथ 5 व्यक्तियों के खड़े या बैठने की भी जगह नहीं है। कुछ में सीलन आ रही है। दूसरी ओर शहर के बाहर संचालित परिवहन कार्यालय में दोपहर बाद 2 बजे तक तो काम होता है और इसके बाद वहां कुछ बाबू और इंस्पेक्टर नजर आते हैं। बाकी सूनापन दिखाई देता है।
गौरतलब है कि जहां डीसीएम की ओर जाने वाले मार्ग पर स्थित परिवहन कार्यालय के आसपास बिक्री कर तथा आबकारी विभाग भी संचालित होता है। ऐसे में यहां लोगों और वाहनों की आवाजाही ज्यादा रहती है। उस पर इन तथाकथित यातायात सलाहकारों की गुमटियों के कारण तंग हुए रोड के कारण कई बार जाम की स्थिति भी बन जाती है।
इनका कहना है: अभी तक ऊपर के अधिकारियों ने ऐसे कोई निर्देश नहीं दिए है। इतनी गहराई से तो मुझे भी नहीं मालूम लेकिन किसी ना किसी कारण से ऐसा नहीं हो पाया है। हो सकता है पर्याप्त जगह नहीं होने के कारण शिफ्ट नहीं हो पाया हो।
-दिनेश सागर, एआरटीओ