खुली नहरों पर टॉप सोलर प्लांट लगें तो बचेंगे हजारों जीवन, वाष्पीकरण भी रुकेगा
कोटा: कोटा सहित हाड़ौती की कृषि के लिए जीवनदायिनी कहलाने वाली दायीं और बायीं नहर में गत सालों में हुई दु:खद घटनाओं के बाद प्रशासनिक और प्रबुद्धजनों सहित आमजन के दिल और दिमाग में ये बात आने लगी है कि गुजरात के अहमदाबाद से कुछ दूरी पर बनी नहरों पर बने कैनाल टॉप सोलर प्लांट की भांति ही यदि कोटा में बह रही नहरों पर कैनाल टॉप सोलर प्लांट बना दिया जाए तो एक नहीं अनेक फायदें होंगे। इससे न केवल दुर्घटनाएं और आत्महत्या रूकेंगी अपितु पानी का वाष्पीकरण भी रूकेगा और बिजली भी बनेगी। इन नहरों पर सोलर प्लांट लगा दिए जाए तो नहरों में होने वाली मौतें ना के बराबर रह जाएंगी। लोगों को रोजगार मिलेगा और बिजली पैदा होगी वो अलग है। सालों पहले किशोरपुरा दरवाजे के वहां जब फैंसिंग करवाई गई तो नहरें लोगों की पहुंच से बाहर हो गई थी।
नहरों की सुरक्षा से दुखांतिकाओं पर रोक संभव
कि शनपुरा ब्रांच के अध्यक्ष अब्दुल हमीद गौड़ बताते है कि सरकारी तंत्र को भी इन असुरक्षित नहरों पर पूर्ण सुरक्षित दीवार, लोहे की जालियां तथा रेलिंग बनवानी चाहिए। ऐसा होने के बाद ही ऐसी दुखांतिकाओं पर रोक लगाई जा सकेगी। उन्होंने गुजरात के अहमदाबाद में बने कैनाल टॉप सोलर प्लांट का उदाहरण देते हुए कहा कि यह सोलर प्लांट अपने आप में अद्भुत है। अहमदाबाद से 45 किलोमीटर दूरी पर नहरों पर बना यह प्लांट हर साल 1.6 एम. यूनिट बिजली बना रहा है और इससे करीब 90 लाख लीटर पानी का वाष्पीकरण रूक रहा है। अगर इसी तरह का नवोन्मेष कोटा क्षेत्र की नहरों पर भी किया जाए तो नहरें ढक भी जाएगी, पानी का वाष्पीकरण भी होगा, बिजली भी बनेगी और कोटा शहर सुरक्षित भी होगा।
तीन सालों में डूबने की 250 से ज्यादा घटनाएं
वाकई में कोटा से निकल रही इन नहरों में बीते तीन सालों में हुई दुघटनाओं के जो आंकड़े सामने आए है वो चौकाने वाले भी हैं और चिन्ताजनक भी। एक जानकारी के अनुसार साल 2019 से लेकर अब तक इन दोनों नहरों ने करीब 95 लाशों को बाहर फैंका हैं। इनमें से भी 30 से ज्यादा लाशें तो निगम के गोताखोरों ने ही निकाली हैं। वर्ष 2021 में इन नहरों में डूबने की लगभग 150 घटनाएं हुई। इनमें से 21 तो काल का ग्रास बन गए और 128 लोगों को जीवित निकाला गया है। सूत्रों के अनुसार दोनों नहरों में बीते चार सालों में डूबने की 250 से ज्यादा घटनाएं हुई है। इनमें से सबसे ज्यादा वर्ष 2021 में (लगभग 150) हुई है। इससे पहले साल 2020 में 21 और उससे पहले 2019 में 28 लोगों की लाशें नहरों से निकाली गई।
नहरों को लेकर जनप्रतिनिधियों का रवैया गैर जिम्मेदाराना
इन आंकड़ों बाद इस शहर के प्रबुद्धजनों का कहना है कि कोटा एक ऐसा शहर है जिसके बीचों-बीच नहरों का पानी बहता है। ऐसा अवसर बहुत ही कम देखने में आया है कि किसी शहर के बीचों-बीच नहरों का पानी बह रह हो। यह नहरें क्षेत्र के लोगों, खासकर किसानों के लिए जीवनदायिनी मानी जाती है लेकिन कई मौकों पर यही नहरें लोगों का जीवन लेने वाली भी साबित हुई है। उसका कारण यहां के जनप्रतिनिधियों और संबंधित उच्च अधिकारियों की नहरों के प्रति उदासीनता और गैर जिम्मेदाराना रवैया है।
यह है कैनाल सोलर प्लांट
दुनिया में कहीं भी ऐसे प्लांट नहीं है। एक किलोमीटर तक की नहर को ढककर इस तरह का प्लांट लगाने से 25 हजार लोगों में बिजली की आपूर्ति की जा रही है। इस योजना के तहत नहर के ऊपर में सोलर पैनल तथा बैट्री सहित अन्य उपकरणों को प्लांट किया जाता है। गुजरात में यह योजना काफी सफल है। वहां पर हर नहर पर इस तरह का सोलर प्लांट बनाकर गांव-गांव में बिजली की निर्बाद्ध आपूर्ति की जा रही है। दिनभर क्लीन एनर्जी मिलती है। नहर के पानी को होने वाली वाष्पीकरण से बचाया जा सकता है। बिजली पावर प्लांट के माध्यम से परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत पर दबाव घटेगा। कोयला व पानी की बचत होगी। चूंकि दिनभर सोलर सिस्टम से बिजली आपूर्ति होगी। इसलिए पीक आॅवर में हाइडल की बिजली लोगों को सालों तक मिल सकेगी।
हाड़ौती की जीवनदायिनी नहरों की स्थिति
दाईं मुख्य नहर कोटा की लाइफ लाइन चंबल नदी पर बने कोटा बैराज के नीचे दाईं और बाई मुख्य नहरों से हाड़ौती संभाग के कोटा, बारां, बूंदी जिले के अलावा मध्यप्रदेश के ग्वालियर संभाग में नहरी तंत्र से सिंचाई होती है। बाई मुख्य नहर से बूंदी जिले में 1.2 हजार हैक्टयर जबकि दांई मुख्य नहर से कोटा और बारां जिले के कुछ हिस्सों में 1.27 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि में सिंचाई का प्रावधान है। इसी तरह से मध्य प्रदेश के ग्वालियर संभाग के कुछ इलाकों में भी सहायक होती है।
1111 किमी क्षेत्र में फैली बाईं नहर
बाईं नहर की कुल क्षमता 1500 क्यूसेक की है। बाईं नहर 1111 किमी क्षेत्रफल में फैली हुई है। नहर से 1 लाख 20 हजार हैक्टेयर में सिंचाई होती। दोनों नहरों से हाड़ौती संभाग के 15 उपखंड सिंचित होते हैं। अक्टूबर में नहरों में जल प्रवाह किया जाता है। विभागीय अधिकारियों के अनुसार जल प्रवाह से पूर्व सफाई कराई जाती है। जिसमें किसान गेहूं, सरसों, चना, धनिया की बुवाई कर सकें। बायीं नहर से बूंदी, तालेड़ा, केशवरायपाटन क्षेत्र के गांवों में सिंचाई होती है। इस नहर में 3 ब्रांच हैं और 27 सब ब्रांच हैं। इसके अलावा 180 माइनर हैं। चंबल परियोजना से प्रदेश के 757 गांवों की 2 लाख 29 हजार हैक्टेयर कृषि भूमि हर साल सिंचित होती है।
शहर के बीच से खुले रूप में नहरोंं का बहना खतरनाक
कोटा की चंबल नदी अनेकों जीवों के लिए प्राणदायी है और इससे निकली नहरें तो दूर-दूर तक खेती के लिए जीवनदायी साबित हो रही है। वास्तव में यह आश्चर्य का विषय है कि किसी शहर के बीचों-बीच से अपार जलसंपदा तीव्र गति से बहते हुएं बीते समय हुई घटनाएं यह सवाल पैदा करती है कि ये नहरें इतनी असुरक्षित क्यों है? नहरों के दोनों किनारों पर सुरक्षित दीवार क्यों नहीं है? क्या सरकार और प्रशासन ने नहरें बनाकर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली है? ऐसी भयावह घटना अब और नहीं हो, इसके लिए हमें, समाज और प्रशासन को कटिबद्ध होना चाहिए। इसके लिए शुरूआत हम से ही हो, हम पहले जागरूक होकर इन खुली असुरक्षित नहरों के दुष्परिणामों के बारे में जाने और एक स्वर में समाज के साथ मिलकर अपनी बात आगे बढ़ाए। बस एक ही ध्येय हो सुरक्षित नहरें-सुरक्षित कोटा।
-एएच जेदी, नेचर प्रमोटर
सुरक्षित नहरें सुरक्षित कोटा
निकले। परन्तु आश्चर्य तो तब होता है जब ये नहरें बिना किसी सुरक्षा के खुले रूप से बह रही हो। जब ये नहरे लोगों के लिए काल का रूप लेने लगे तो मन क्षोभित होता है। कभी मानव तो कभी पशु। आए दिन दुर्घटनावश नहरों में गिरकर अपना जीवन खो रहे हैं।
- कुंदन चीता, पर्यावरण प्रेमी
इनका कहना हैं
गुजरात की तर्ज पर यहां की नहरों पर भी कैनाल टॉप सोलर प्लांट बनाया जाना संभव है। बिल्कुल बन सकता हैं। इस पर विचार करेंगे।
- राजपाल सिंह, अतिरिक्त संभागीय आयुक्त।
कोटा की इन नहरों पर सीएडी विभाग बैरिकेटिंग की नहीं करवा रहा है। शहर के आवासीय इलाकों से नहरें खुले रूप से बह रही हैं। नहरों के तेज बहाव वाले क्षेत्रों में नहाने के लिए घाट और बना रखें हैं। गुजरात की तर्ज पर यहां की नहरों पर भी कैनाल टॉप सोलर प्लांट बनाया जाना
- विष्णु श्रृंगी, निगम गोताखोर।