उदयपुर में शिव से पहले यहां होती है रावण की पूजा

Update: 2023-07-17 07:08 GMT

उदयपुर: उदयपुर शहर से करीब 70 किमी दूर झाड़ोल तहसील में करीब 450 साल पुराने कमलनाथ मंदिर में भगवान शिव से पहले रावण की पूजा की जाती है। यह पूजा वर्षों से चली आ रही है। यह प्राचीन मंदिर आवरगढ़ की पहाड़ियों में बना है। जिसमें एक तरफ रावण की मूर्ति स्थापित है तो वहीं पास ही शिवलिंग है। ऐसी मान्यता है कि शिव से पहले यदि रावण की पूजा नहीं की जाए तो पूजा अधूरी मानी जाती है। जानकारी अनुसार जब मुगल शासक अकबर ने जब चित्तौड़ पर आक्रमण किया था। तब महाराणा प्रताप ने भी आपात स्थिति में कुछ समय इसी मंदिर में बिताया था।

तब आवरगढ़ की पहाड़ियां चित्तौड़ की सेना के लिए सुरक्षित स्थान था। मंदिर परिसर में ही एक कुंड बना हुआ है जहां जमीन के अंदर से पानी की एक धार निकलती है जो बहती रहती है। उदयपुर शहर से करीब 70 किमी दूर झाड़ोल तहसील में करीब 450 साल पुराने कमलनाथ मंदिर में भगवान शिव से पहले रावण की पूजा की जाती है। रावण शिवलिंग लेकर यहां रुके थे मंदिर के पुजारी ललित शर्मा बताते हैं- ऐसी मान्यता है कि एक बार लंकापति रावण कैलाश से शिवलिंग लेकर लंका जा रहा थे। तब भोलेनाथ ने रावण को कहा था कि यह शिवलिंग लेकर जहां भी नीचे रखोगे, वहीं इसकी स्थापना हो जाएगी।

ऐसे में आवरगढ़ की पहाड़ियों से गुजरते वक्त रावण कुछ समय के लिए यहां रुके। रावण ने गाय चरा रहे बाल-ग्वालों को हाथों में शिवलिंग थमा दिया था। ग्वाले शिवलिंग नीचे रखकर चले गए। ऐसे में शिवलिंग यहीं स्थापित हो गया। बाद में रावण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग पर रोज 108 कमल पुष्प चढ़ाकर पूजा करते रहे। ऐसा माना जाता है कि रावण की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनके नाभि में अमृत कुंड की स्थापना की। ऐसी मान्यता है कि शिव से पहले यदि रावण की पूजा नहीं की जाए तो पूजा अधूरी मानी जाती है। हल्दी घाटी युद्ध में घायल सैनिकों का उपचार इसी पहाड़ी पर करते थे वर्ष 1576 में महाराणा प्रताप और अकबर की सेनाओं के मध्य हल्दी घाटी का संग्राम हुआ था। हल्दी घाटी के समर में घायल सैनिकों को आवरगढ़ की पहाड़ियों में उपचार के लिए लाया जाता था। युद्ध के बाद झाड़ोल जागीर में स्थित आवरगढ़ की पहाड़ी पर वर्ष 1577 में महाराणा प्रताप ने होली जलाई थी। उसी समय से झाडोल में सर्वप्रथम इसी जगह होलिका दहन होता है। आज भी हर साल महाराणा प्रताप के अनुयायी सहित झाड़ोल के लोग होली के अवसर पर पहाड़ी पर एकत्र होते हैं। जहां पहले कमलनाथ महादेव मंदिर के पुजारी होलिका दहन करते हैं। इसके बाद ही झाड़ोल क्षेत्र में होलिका दहन किया जाता है।

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