चूरू जिला मुख्यालय स्थित सैनिक बस्ती में चंदन की लकड़ी पर महीन कारीगरी का काम 70 के दशक में मालचन्द जांगिड द्वारा शुरू किया गया था. कला की इस परंपरा को पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार द्वारा आज भी आगे बढ़ाने का काम जारी है. इस परिवार को अब तक इनके द्वारा बनायी गयी कलाकृतियों पर कई बार राष्ट्रपति अवार्ड और राज्य अवार्ड मिल चुके हैं. इस कामयाबी के लिए इस परिवार का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकार्डस में भी दर्ज किया जा चुका है. अप्रेल 2022 के बाद आने वाले विदेशी मेहमानों को भी चूरू के चितेरों की कलाकृतियां भेंट स्वरूप दिये जाने की योजना है.
प्रधानमंत्री कार्यालय ने विशेष तौर पर बनवाई
चंदन की लकड़ी पर कलाकारी करने वाले परिवार की तीसरी पीढ़ी के पवन जांगिड़ ने बताया कि करीब एक माह पहले प्रधानमंत्री कार्यालय से फोन आया कि चंदन की कृष्ण मोर पंखी तैयार करें. पवन कुमार ने करीब एक महीने तक प्रतिदिन औसतन 12 घंटे काम करके 18 गुणा 12 इंच की कृष्ण मोर पंखी तैयार कर बस द्वारा दिल्ली भिजवायी. चंदन की इस मोर पंखी में भगवान कृष्ण के जीवन से जुड़े तीन प्रसंगों को उकेरा गया है. बीच में बरगद के पेड़ के नीचे राधा के साथ बंसी बजाते कृष्ण की आकृति को उकेरा गया है. हत्थे में मनाए गए दो ब्लॉक में से एक में बाल कृष्ण को टोकरी में लेटाकर सिर पर रखकर जमुना नदी पार करते वासुदेव का चित्रण किया गया है. दूसरे में कृष्ण की शिक्षा से जुड़े प्रसंग को उकेरा गया है.
हर कलाकृति कई भागों में खुलती है
चंदन की लकड़ी के एक नफीस टुकड़े को अपने सधे हुए हाथों से उस पर कारीगरी कर कलाकृति में तब्दील करने वाले चंदन चित्तेरों ने अपनी शिल्पकला में राजस्थानी संस्कृति, ऐतिहासिक चरित्र, भारत की धरोहर, जन-जीवन और धार्मिक चरित्रों को जीवंत कर दिया है. इनके द्वारा निर्मित मक्खी के आकार की कलाकृति से लेकर आदमकद आकार की कलाकृति तैयार कर उसके हर कोने में कला का जो अद्भुत संसार रचा गया है. वह देखने में अप्रतीम है. चंदन शिल्पकारों द्वारा निर्मित छोटी से छोटी व बड़ी से बड़ी कलाकृति कई हिस्सों में खुलती है और हर हिस्से में अलग-अलग कलाकृतियों का उत्कीर्ण देखते ही बनता है. चंदन शिल्पियों द्वारा हाल ही में निर्मित जाली-झरोखा, मोर पंखी, वीणा, बादाम, देव मूर्तियां, घड़ी और राजस्थानी गुडिया प्रमुख कलाकृतियां हैं.
यू सिरे चढ़ती है ये कलाकृतियां
मालचंद खाती द्वारा शुरू किया गया चंदन शिल्प का यह अदभुत कार्य उनके बेटों से लेकर पड़पोतों तक ने यथावत जारी रखा और आगे से आगे चंदन शिल्पकला का उत्तरोतर विकास किया. ये चंदन शिल्पकार सर्वप्रथम कलाकृति के हिसाब से चंदन के टुकड़े को आरी से काट लेते हैं. उसके बाद उसे अलग-अलग हिस्से कर काठ के चीट बटनों से खोलने और बंद करने का काम करते हैं. उसके बाद हर हिस्से में छैनी, तिकोरी और रैती जैसे महीन औजारों का इस्तेमाल कर कला को उत्कीर्ण किया जाता है. एक छोटी कलाकृति को बनाने में तीन माह का और बड़ी कलाकृति को बनाने में ढाई साल का समय लगता है. इनके द्वारा कलाकृति मांग पर बनायी जाती है. उसके बाद देश-विदेशों में मांग के अनुसार भेजी जाती है.