राजस्थान भाजपा गुटबाजी से चुनावी मोड में नहीं आ पाई, फिर नेतृत्व बदलने की तैयारी !

Update: 2023-06-16 12:26 GMT

जयपुर (पॉलिटिकल ब्यूरो)। राजस्थान भाजपा गुटबाजी के कारण संकट के दौर से गुजर रही है। अधिकांश कार्यकर्ताओं का मानना है कि पार्टी अभी भी चुनावी मोड में नहीं आ सकी है। जबकि चुनाव में 3-4 महीने ही बचे हैं। प्रदेश के ज्यादातर नेता अपनी-अपनी ढपली और अपना-अपना राग की तर्ज पर आंदोलन, प्रदर्शन एवं प्रेस कांफ्रेंस करने में जुटे हैं। कार्यक्रमों में से अधिकांश लोग दूरियां बना रहे हैं। हालांकि बतौर राजनीतिक पार्टी कांग्रेस की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है। लेकिन, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत निजी तौर पर चुनावी तैयारियों के लिहाज से काफी आगे निकल चुके हैं। उनका पूरा फोकस अपनी ब्रांडिंग पर है। वे यह संदेश देने में भी कामयाब रहे हैं कि पूर्व सीएम सचिन पायलट भी उनके आगे बहुत ज्यादा कुछ नहीं कर पा रहे हैं और भविष्य की रणनीति को लेकर भ्रमित हैं। उनके समर्थक औऱ कार्य़कर्ता भी असमंजस में हैं।

इधर, राजस्थान भाजपा में गुटबाजी खत्म करने के लिए दिल्ली तक मंथन चल रहा है। कयास लगाए जा रहे हैं कि पार्टी आलाकमान के ना चाहते हुए भी भाजपा के पास पूर्व सीएम वसुंधराराजे को इलेक्शन कैंपेन कमेटी चेयरमैन के नाते आगे करने के अलावा फिलहाल कोई विकल्प नहीं दिख रहा है। राजे समर्थकों का दावा है कि राजस्थान में मुख्यमंत्री के लिए उछलकूद करने वाले ज्यादातर नेता बतौर मंत्री अथवा संगठन पदाधिकारी वसुंधराराजे के नेतृत्व में काम कर चुके हैं। इसलिए उनसे बेहतर कोई विकल्प नहीं हो सकता। लेकिन, पार्टी हाईकमान को जो भी निर्णय लेना है। वह जल्दी लिया जाना चाहिए। क्योंकि अब धरातल पर काम करने का वक्त बहुत कम बचा है। इसलिए माना जा रहा है कि अगले एक महीने में भाजपा के राजस्थान प्रभारी, इलेक्शन कैंपेन कमेटी की एक साथ घोषणा करने के साथ ही संगठन महामंत्री भी बदले जा सकते हैं। हालांकि चर्चाएं मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष सी. पी. जोशी को भी बदले जाने की हैं। कहा जा रहा है कि जिस उद्देश्य के साथ इन्हें अध्यक्ष बनाया गया था। उस पर यह खऱे नहीं उतरे हैं। लेकिन, भाजपा के ही कुछ अन्य लोगों का तर्क है कि ऐन चुनाव के मौके पर प्रदेशाध्यक्ष बदलना संभव नहीं है।

भाजपा संगठन से जुड़े लोगों का तर्क है कि चित्तौड़गढ़ सांसद सीपी जोशी को प्रदेश अध्यक्ष इसलिए बनाया था कि वे सबको साथ लेकर चलेंगे और पार्टी में गुटबाजी खत्म हो जाएगी। लेकिन, पिछले दो-तीन महीनों में वे ऐसा कोई प्रभावी कदम नहीं उठा सके। ना ही कोई प्रभाव छोड़ सके। बल्कि कई लोग उन पर हावी होते या मनमानी करते हुए दिखाई दे रहे हैं।

ऐसी ही स्थिति पूर्व मंत्री और नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ की दिख रही है। वे अब खुद मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल हो गए हैं। उन्हें लग रहा है कि अगर इस बार मुख्यमंत्री नहीं बने तो आगे फिर शायद ही सीएम बनने का मौका मिले। इसलिए वे पार्टी नेताओं की एकजुटता में कम ही रुचि ले रहे हैं। राज्यसभा सांसद डॉ. किरोड़ी लाल मीणा, पूर्व केंद्रीय मंत्री सिंह राज्यवर्धन राठौड़ समेत कई नेता अलग सुर में चुनावी राग अलाप रहे हैं।

संगठन महामंत्री चंद्रशेखर भी हुए फेल

भाजपा नेताओं का कहना है कि पार्टी को एकजुट रखने की मूल रूप से अहम जिम्मेदारी संगठन महामंत्री की होती है। वह प्रदेशाध्यक्ष, पदाधिकारियों, केंद्रीय नेतृत्व और कार्यकर्ताओं के बीच सेतु की तरह काम करता है। लेकिन, संगठन महामंत्री चंद्रशेखर खुद ही गुटबाजी में फंस गए। पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया से उनकी लगभग पूरे समय ही दूरी रही। उससे पहले सतीश पूनिया को इसीलिए पार्टी की कमान सौंपी गई थी कि वे सबको साध कर साथ लेकर चलेंगे। लेकिन, उन्होंने इतनी बड़ी गुटबाजी पैदा कर दी कि अब तक पार्टी एकजुट नहीं हो पा रही है। जहां तक पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधराराजे की बात है तो वसुंधरा समर्थक मंच के नाम से उनका समानांतर संगठन राजस्थान में पहले ही बन चुका है।

दिल्ली में जो मंथन चल रहा है, उससे कयास यह लगाए जा रहे हैं कि जुलाई तक भाजपा में बड़े बदलाव होंगे। बहरहाल, कांग्रेस का यह आरोप भी सही लगता है कि भाजपा में मुख्यमंत्री बनने वालों की फेहरिस्त काफी लंबी है। जबकि कांग्रेस में एकमात्र अशोक गहलोत ही हैं। उनकी भी दिलीइच्छा है कि वे एक बार सरकार रिपीट करवाकर लगातार दो टर्म मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड बनाएं। इसके लिए वे कुछ भी करने को तैयार हैं। बहरहाल चार महीने का समय बचा है। भाजपा को सत्ता में लौटने के लिए सही और सख्त कदम उठाने होंगे। भाजपा अगर इस बार सत्ता में नहीं आई तो उसका संघर्ष काफी लंबा हो जाएगा। फिर सत्ता सिंहासन तक पहुंचने के लिए बहुत कठिन परिश्रम करना होगा।

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