जिले के कुड़की गांव में बना मीरा फोर्ट, लकड़ी के संदूक में आज भी मीरा की माला

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Update: 2023-02-16 11:18 GMT
पाली। कृष्ण की भक्त मीरा बाई ने अपने पति की मृत्यु के बाद भगवान कृष्ण को अपने सर्वोच्च भगवान के रूप में स्वीकार किया। श्री कृष्ण से इतना प्रेम करती थी कि एक दिन वह उनके आराध्य में विलीन हो गई। इस प्रेम में आसक्त कृष्ण भक्त मीरा का जन्म पाली जिले के कुड़की (जैतारण) में हुआ था। वैलेंटाइन डे पर आज पढ़िए मीरा के जन्म और कृष्ण की भक्ति के बारे में कृष्ण की भक्त मीराबाई का जन्म 1498 ई. में कुड़की गांव निवासी दूदाजी के चौथे पुत्र रतन सिंह के घर हुआ था। बचपन कुडकी महल में बीता। वह शालिग्राम (भगवान कृष्ण) जिसकी वह पूजा करती थी। वह प्राचीन मूर्ति आज भी मीरा के महल में विद्यमान है। मीरा का रथ जिस पर वे फिरती थीं। आज भी यह उनके वंशजों द्वारा संरक्षित है। कृष्ण प्रेम दीवानी मीरा के महल को देखने के लिए हर साल सैकड़ों लोग यहां आते हैं। मीरा के वंशज पुष्पेंद्र सिंह कुड़की बताते हैं कि मीरा का किला 9 बीघे में फैला हुआ है। जिसमें दो मंजिला मीरा किला भी बना हुआ है। उस क्षेत्र में मीरा बाई का मंदिर, शालिग्राम का मंदिर आदि बने हुए हैं। मीरा की माला आज भी एक लकड़ी के बक्से में रखी हुई है। वह उस माला का जाप करके ही कृष्ण की पूजा करती थी। उनकी खड़ाऊ (चप्पल) कमंडल, रुद्राक्ष की माला, शंख आदि धरोहर मौजूद हैं।
एक प्रचलित कथा है कि एक दिन गांव में आई बारात को देखकर मीरा बाई ने अपनी मां से पूछा था कि मेरा दूल्हा कहां है। भगवान कृष्ण की मूर्ति की ओर इशारा करते हुए उनकी मां ने कहा कि यह तुम्हारा दूल्हा है। उस दिन से मीराबाई कृष्ण की दीवानी हो गईं। मीरा का विवाह महाराणा सांगा के पुत्र भोजराज से हुआ था। शादी के कुछ समय बाद ही उनके पति की मृत्यु हो गई। अब उनका अधिकांश समय साधु-संतों के साथ हरि कीर्तन में व्यतीत होता था। भोजराज के परिवार को साधु-संतों की संगति पसंद नहीं थी। कई बार उन्हें मारने का प्रयास किया गया, लेकिन श्री कृष्ण की भक्ति में लीन मीरा को कोई नहीं मार सका। बताया जाता है कि मीरा बाई अपने ससुराल वालों के रोज के व्यवहार से परेशान होकर मेवाड़ छोड़कर वृंदावन चली गईं। यहां से द्वारका गए जहां मंदिर की सीढ़ियों पर मीराबाई ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। कृष्ण की भक्ति के कारण उन्हें बहुत सम्मान भी मिला। हिन्दी कविता में मीराबाई का भी महत्वपूर्ण योगदान है। महल के चारों ओर बड़ी संख्या में तुलसी के पौधे हैं। कहा जाता है कि यहां तुलसी के पौधे अपने आप उग आते हैं। साथ ही पौधे साल भर हरे-भरे रहते हैं। हर साल यहां श्रीकृष्ण जन्माष्टमी बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है।
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